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देवदूत प्रार्थना में संत पापा : डरो मत, पिता हमारी चिंता करते है
वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में एकत्रित विश्वासियों के साथ रविवार 21 जून को संत पापा फ्राँसिस ने देवदूत प्रार्थना का पाठ किया, देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।
इस रविवार के सुसमाचार पाठ में (मती.10:26-33) येसु का अपने शिष्यों के लिए निमंत्रण की ध्वनि गूँजती है कि वे नहीं डरें, मजबूत रहें और जीवन की चुनौतियों के सामने दृढ़ बने रहें जो उन्हें उन प्रतिकूलताओं का पूर्वाभास कराती है जो उनका इंतजार कर रही हैं। आज का पाठ मिशनरी प्रवचन का हिस्सा है जिसमें गुरूवर, ईश्वर के राज्य की घोषणा के लिए प्रथम अनुभव हेतु प्रेरितों को तैयार करते हैं। येसु लगातार उनसे कहते हैं कि वे नहीं डरें, भयभीत न हों और इसके साथ ही येसु उन्हें तीन ठोस परिस्थितियों के बारे बतलाते हैं जिसका सामना उन्हें करना पड़ेगा।
विरोध
पहली और सबसे महत्वपूर्ण परिस्थिति है कि शत्रु जो ईश्वर के वचन को कलंकित करना और इसका प्रचार करनेवालों को चुप कराकर इसे दबाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में येसु मुक्ति के संदेश जिसको उन्हें सौंपा गया है अपने शिष्यों को फैलाने का प्रोत्साहन देना चाहते हैं। अब तक उन्होंने इसका प्रचार सावधानी से, छिपे हुए रूप में, अपने शिष्यों के छोटे दल में किया था, किन्तु शिष्यों को उनके सुसमाचार को प्रकाश में लाना होगा। खुले में आकर सार्वजनिक रूप से उसका प्रचार करना होगा।
अत्याचार
दूसरी कठिनाई जिसका सामना ख्रीस्त के मिशनरियों को करना पड़ेगा, वह है शारीरिक चेतावनी। उन्हें व्यक्तिगत रूप से अत्याचार सहना पड़ेगा, उन्हें मार डाला जाएगा। संत पापा ने कहा कि येसु की भविष्यवाणी हर युग में पूरी हुई है। यह एक दुखद सच्चाई है किन्तु यह विश्वासियों को साक्ष्य देने का अवसर प्रदान करता है। कितने ख्रीस्तीय आज भी विश्वभर में अत्याचार सह रहे हैं। वे सुसमाचार के लिए सहर्ष दुःख झेल रहे हैं वे हमारे समय के शहीद हैं और हम दृढ़ता के साथ कह सकते हैं कि उनकी संख्या आरम्भिक कलीसिया से कहीं अधिक है। बहुत अधिक लोग सिर्फ ख्रीस्तीय होने के नाम पर शहीद हुए हैं। येसु उन शिष्यों को सलाह देते हैं जो अतीत में और आज भी अत्याचार के शिकार हो रहे हैं- "उन से नहीं डरो जो शरीर को मार डालते हैं किन्तु आत्मा को नहीं मार सकते।” (पद. 28) उनसे डरने की जरूरत नहीं है जो घमंड और हिंसा से सुसमाचार प्रचार की शक्ति को नष्ट करना चाहते हैं। निश्चय ही, वे आत्मा के विरूद्ध कुछ नहीं कर सकते, ईश्वर के साथ संबंध को नहीं बिगाड़ सकते हैं। इसे शिष्यों से कोई नहीं छीन सकता क्योंकि यह ईश्वर का उपहार है। शिष्यों के लिए एक ही डर है कि इस ईश्वरीय वरदान को खो देना। ईश्वर के साथ सामीप्य एवं मित्रता को खो देना, सुसमाचार के अनुसार जीना बंद कर देना, इस तरह यह नैतिक मृत्यु का अनुभव है जो पाप का प्रभाव है।
शिष्यों का जीवन ईश्वर के हाथ में
तीसरी परीक्षा, जिसकी ओर येसु इशारा करते हैं कि उसका सामना शिष्यों को करना पड़ेगा, वह है ईश्वर द्वारा त्यागा महसूस करना। कुछ शिष्यों को लग सकता है कि ईश्वर ने उन्हें छोड़ दिया है, उनसे दूर चले गये हैं और चुप हो गये हैं। यहाँ भी येसु कहते हैं, डरो मत, क्योंकि इन चीजों एवं अन्य प्रकार के नुकसान का अनुभव करने के बावजूद शिष्यों का जीवन ईश्वर के हाथ में सुदृढ़ रह सकता है जो हमें प्यार करते और हमारी देखभाल करते हैं।
इस प्रकार ये तीन प्रलोभन हैं – सुसमाचार को कलंकित करना, अत्याचार एवं ईश्वर द्वारा त्यागा महसूस करना। येसु ने भी जैतून पहाड़ और क्रूस पर इसे सहा। येसु ने पुकार कर कहा, "पिता तूने मुझे क्यों त्याग दिया?” जब कोई आध्यात्मिक अनुर्वरता महसूस करे, तब उसे नहीं डरना चाहिए। पिता हमारी देखभाल करते हैं क्योंकि हम उनकी नजरों में मूल्यवान हैं। महत्वपूर्ण बात है, विश्वास का साक्ष्य देने के लिए खुलापन और साहसी होना, दूसरों के सामने येसु को स्वीकार करना एवं अच्छा काम करते रहना।
तब माता मरियम से प्रार्थना करते हुए संत पापा ने कहा कि अति निष्कलंक कुँवारी मरियम, प्रतिकूलता और खतरे की घड़ी में ईश्वर में विश्वास और त्यागे जाने का अनुभव करने की आदर्श, हमें सहायता दे कि हम कभी निराशा के सामने हार न मानें बल्कि हमेशा उनपर और उनकी कृपा पर भरोसा रखें क्योंकि ईश्वर की कृपा, बुराई से हमेशा अधिक ताकतवर होती है।
इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।
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