कोरोनावायरस के साथ बैक्टीरिया का संक्रमण खतरा बढ़ा सकता है, फेफड़ों में इन दोनों का एक साथ होना जानलेवा

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कोरोनावायरस से जूझ रहे मरीजों में बैक्टीरिया के गंभीर संक्रमण का खतरा है। ये दो संक्रमण मिलकर मरीज की जान भी ले सकते हैं। यह दावा, आयरलैंड की क्वींस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने किया है। उनके मुताबिक, कोविड-19 के मरीजों को हॉस्पिटल में इलाज या थैरेपी दिए जाने के दौरान बैक्टीरिया का संक्रमण हो सकता है। ट्रीटमेंट के दौरान मरीजों के लिए यह दोहरा संकट पैदा हो सकता है।

दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं
शोधकर्ता प्रो. जोज़ का कहना है जब बैक्टीरिया और वायरस फेफड़ों में मौजूद होते हैं तो एक-दूसरे को उस हिस्से को डैमेज करने की क्षमता पर असर डालते हैं। फेफड़ों में बैक्टीरिया मौजूद होने पर ट्रीटमेंट के दौरान दी जाने वाली दवाओं का असर वायरस पर अलग होता है। इससे हालत और बिगड़ सकती है। 

अच्छे बैक्टीरिया पर कोरोना का बुरा असर
शोधकर्ताओं के मुताबिक, जब कोरोनावायरस शरीर को संक्रमित करता है तो शरीर को फायदा पहुंचाने वाली बैक्टीरिया पर बुरा असर होता है। ये घटते हैं तो इम्युनिटी भी घटती है। ऐसे में संक्रमण का दायरा बढ़ता है, जो बीमारी को गंभीर बनाता है। प्रोफेसर जोज़ का कहना है कि पहले से संक्रमित मरीज में दोबारा किसी सूक्ष्मजीव का संक्रमण होने से जान का जोखिम बढ़ जाता है।

डब्ल्यूएचओ ने एंटीबॉयोटिक पर चेतावनी दी
बैक्टीरियल इंफेक्शन पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने चेतावनी जारी की है। डब्ल्यूएचओ के जनरल डायरेक्टर ट्रेड्रोस अधानोम का कहना है कि कोविड-19 से जूझ रहे मरीजों को एंटीबायोटिक्स अधिक दी जा रही हैं, इस पर लगाम लगाने की जरूरत है।

ऐसा बरकरार रहने पर बैक्टीरियल रेसिस्टेंस बढ़ेगा और एक समय बाद उन पर असर होना कम हो जाएगा। काफी संख्या में इंफेक्शन के मामलों में बैक्टीरियल रेसिस्टेंस बढ़ा था क्योंकि मरीजों पर एंटीबायोटिक्स का अधिक इस्तेमाल किया जा रहा था।

कुछ को ही एंटीबायोटिक की जरूरत
संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी का कहना है कि ऐसा देखा गया है कि कोविड-19 के कुछ ही मरीजों को एंटीबायोटिक्स की जरूरत पड़ती है। लेकिन इसे गैरजरूरी ढंग से मरीजों को दिया जा रहा है जो एक ट्रेंड बन सकता है। अगर कोरोना के मरीज में हल्के लक्षण दिख रहे हैं तो उसे एंटीबायोटिक्स थैरेपी या प्रोफेलैक्सिस देने की जरूरत नहीं है। 

एंटीबायोटिक्स की मांग-आपूर्ति गड़बड़ाई
डब्ल्यूएचओ के जनरल डायरेक्टर ट्रेड्रोस का कहना है कि साफतौर पर यह देखा जा रहा है कि कई देशों में एंटीबायोटिक्स की ओवरडोज दी जा रही है। वहीं मध्यम आय वर्ग वाले देशों में यह दवाएं उपलब्ध नहीं हैं जो वहां के लोगों मौत की वजह बन रही है।

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