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एक महीने का बच्चा बीमार हुआ तो परिवार वाले तांत्रिक के पास ले गए
एक महीने के मासूम बादल के सीने पर गर्म सरिये के ये 15 जख्म अंधविश्वास का नमूना है। सर्दी, खांसी जुकाम और सांस चलने पर समोई गांव के अवार फलिया के कमलेश हटीला खुद पारा से रजला के बीच सेमलिया बड़ा गांव में एक तांत्रिक (आदिवासी इसे बड़वा कहते हैं) के पास बेटे को ले गए थे। गर्म सरियों से दागने पर भी जब आराम नहीं पड़ा तो परिवार वाले उसे पिटोल में एक निजी डॉक्टर के पास ले आए। यहां डॉॅक्टर ने परिवारवालों काे डांट लगाई और इलाज शुरू किया। अब बादल पहले से ठीक है, लेकिन सीने पर दागी गई गर्म सलाखों का दर्द बार-बार उठने से चीख पड़ता है। डॉक्टर ने कहा- इलाज किया जा रहा है। वह अब ठीक है।
डॉक्टर ने परिवार वालों को लगाई डांट
सांस तेज चलने की इस बीमारी को यहां हापलिया कहा जाता है। गर्म सलाखों से दागने को डामना कहते हैं। अंधविश्वास में मासूमों को डामने की ये बर्बरता नई नहीं है। सिर्फ अनपढ़ गांव वाले आदिवासी ही नहीं, कई पढ़े-लिखे भी इसकी गिरफ्त से बाहर नहीं आए। कई बार ये भी खबरें आती हैं कि परंपराओं के कारण ही बच्चों को सीने पर दाग दिया जाता है। बादल के पिता ने तांत्रिक को इसके लिए 200 रुपए भी दिए। ठीक नहीं हुआ तो रविवार को पिटोल में एक डॉक्टर को दिखाया।
पहले तो डॉक्टर ने परिवार वालों को जमकर डांट लगाई, फिर उपचार शुरू किया। उपचार करने वाले डाॅक्टरों ने बताया, सामान्य सर्दी के कारण सांस लेने में दिक्कत थी। अक्सर बच्चों के साथ ऐसा होता है। इस तरह से डामने वाले बच्चे आए दिन देखने को मिलते हैं, लेकिन एक साथ 15 निशान देखकर मैं खुद सोच में पड़ गया कि इस बच्चे ने ये सब कैसे सहा होगा।
महीने में 3-4 केस आ जाते हैं
जिला अस्पताल के एसएनसीयू (सिक न्यूबोर्न केयर यूनिट) के प्रभारी डॉ. आईएस चौहान ने बताया, महीनेभर में 3 से 4 ऐसे बच्चे आ जाते हैं, जिनके सीने पर डामने के निशान होते हैं। सर्दी, जुकाम होने या निमोनिया होने पर सांस चलती है। इसका उपचार भी है, लेकिन अंधविश्वास में लोग तांत्रिकों के पास जाते हैं।
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