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अपने चरवाहे पोप फ्राँसिस के साथ ईश प्रजा
लॉकडाउन के कठिन समय में साथ देने एवं संत मर्था में अर्पित दैनिक ख्रीस्तयाग में सहभागी होने का अवसर प्रदान करने के लिए धन्यवाद देते हुए लाखों लोगों ने संत पापा फ्राँसिस के लिए संदेश एवं तस्वीर भेजी है।
वाटिकन के वरिष्ठ पत्रकार मस्सीमसियानो मनिकेत्ती के कहा, "धन्यवाद ख्रीस्त को सभी के घरों में लाने के लिए", "शुक्रिया मदद करने और बल देने के लिए।" "आशा के संदेश के लिए धन्यवाद", "आध्यात्मिक एकता के लिए धन्यवाद", महामारी के अंत के लिए प्रार्थना करने, सभी के लिए, हरेक दिन संत मर्था आवास में ख्रीस्तयाग अर्पित करने के लिए, इसने हमें अच्छा महसूस कराया।" धन्यवाद अकेला नहीं छोड़ने के लिए। मैं विश्वास नहीं करता था किन्तु अब क्रूस के सामने रोता हूँ।" इस तरह के लाखों संदेश पाँचों महादेशों से आ रहे हैं। व्यक्तिगत संदेश, कृतज्ञता, प्रार्थना, फोटो एवं विडीयो भेजे जा रहे हैं।"
संत मर्था में संत पापा फ्राँसिस द्वारा दैनिक मिस्सा बलिदान की शुरूआत 9 मार्च को हुई थी और अंत 18 मई को हुआ। संत पापा फ्राँसिस ने प्रथम दिन ख्रीस्तायाग शुरू करते हुए, कोविड-19 से पीड़ित मरीजों, डॉक्टरों, नर्सों, स्वयंसेवकों, उनके परिवारवालों, वृद्ध आश्रम में रहने वाले बुजूर्गों और जेल के कैदियों के लिए प्रार्थना की थी।
70 दिनों तक, जब कोरोना वायरस बढ़ रहा था और कई देशों में विश्वासियों के साथ ख्रीस्तयाग समारोहों को बंद करने का दबाव बन रहा था, तब संत पापा ने सुसमाचार एवं ईश वचन द्वारा मुक्ति की ठोस आशा प्रदान की। रोम के धर्माध्यक्ष ने हर सुबह ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए दिन के पाठों पर साधारण एवं छोटा चिंतन प्रस्तुत करते हुए उपदेश दिया। मिस्सा के दौरान प्रार्थना और मौन के लिए भी स्थान था। मिस्सा के अंत में कुछ समय के लिए परमपावन संस्कार की आराधना भी की जाती थी।
लाखों लोग प्रार्थना में हर रोज भाग लेते थे भाषा और समय लोगों के लिए बाधक नहीं थे। लोग : रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट और सोशल मीडिया के दरवाजों से वाटिकन के उस छोटे प्रार्थनालय में घुस जाते थे। सभी समुदायों, परिवारों, मजदूरों, बच्चे, वयस्क और धर्मसमाजियों ने इसमें भाग लिया। ख्रीस्त के पावन शरीर को पुनः ग्रहण करने के इंतजार में उन्होंने ईश वचन सुना, प्रार्थना की और आध्यात्मिक एकता को महसूस किया। संत पापा द्वारा अर्पित ख्रीस्तयाग उन लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण हो गया जो कम ही बार गिरजा जाते थे या गिरजा ही नहीं जाते थे। बहुत सारे गैर विश्वासी भी उनका उपदेश सुनना चाहते थे।
अनगिनत किन्तु एक बड़ी संख्या में विश्व के लोगों ने संत पापा के साथ महामारी का सामना किया, जिन्होंने बारम्बार दुहराया है कि जरूरतमंदों, भूखों, बच्चों और युद्ध से भागे लोगों को न छोड़ा जाए। संत पापा ने शासकों के लिए प्रार्थना की है जो निर्णय लेते और वैज्ञानिक जो इस कठिन समय में समाधान ढूँढ़ रहे हैं। उन्होंने उन सभी लोगों को धन्यवाद दिया जो मदद करते हैं, विशेषकर, इन भय एवं पीड़ा के दिनों में बुजूर्गों एवं विकलांग जैसे सबसे कमजोर और असुरक्षित लोगों की मदद करते हैं।
संत पापा ने विभिन्न धर्मसमाजियों के लिए प्रार्थना की जो अपना जीवन देते हैं, जो पीड़ा एवं विपत्ति में पड़े लोगों के नजदीक रहते हैं। उन्होंने महामारी के शिकार सभी लोगों एवं उनके परिवारवालों के लिए प्रार्थना की। उन्होंने हर प्रकार के कर्मचारियों विशेषकर, डॉक्टर, नर्स, दवाखानों में काम करने वालों, शिक्षकों, पुलिस अधिकारियों, स्वयंसेवकों और मतृकों को दफनाने वालों की याद की। निकट भविष्य में बच्चों को जन्म देने वाली माताओं एवं उनकी चिंताओं, कलाकारों, विद्यार्थियों और महामारी के बाद की समस्याओं का समाधान करने हेतु भविष्य की चिंता करनेवालों के लिए भी प्रार्थना की।
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