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ख्रीस्तयाग के समय सन्त पापा ने की परिवारों के लिये प्रार्थना
वाटिकन स्थित सन्त मर्था प्रेरितिक आवास के प्रार्थनालय में शुक्रवार को सन्त पापा फ्राँसिस ने परिवारों के लिये विशेष प्रार्थना की। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 15 मई "विश्व परिवार दिवस" घोषित किया गया है। सन्त पापा ने कहा, "विश्व के समस्त परिवारों के लिये हम मिलकर प्रार्थना करें, ताकि परिवारों में प्रेम, सम्मान एवं स्वतंत्रता की भावना पोषित होती रहे।"
ख्रीस्तयाग प्रवचन में सन्त पापा फ्राँसिस ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि प्रभु येसु ख्रीस्त में विश्वास आनन्द एवं मुक्ति प्रदान करता है, जबकि संकीर्णता एवं कठोरता पीड़ा, भय एवं उथल-पुथल का कारण बनती है।
प्रेरित चरित ग्रन्थ के उस पाठ पर सन्त पापा ने चिन्तन किया जिसमें पौल एवं बरनाबस अन्ताखिया के मनपरिवर्तित लोगों के बीच भेजे जाते हैं। वे नवख्रीस्तीयों में ढारस बँधाते तथा उन्हें समझाते हैं कि मूसा की संहिता के अनुसार ख़तना करने की फरीसियों की मांग को पूरा करने के लिये वे बाध्य नहीं थे।
शान्ति और कलह
सन्त पापा ने कहा कि आरम्भिक कलीसिया में शान्ति के क्षणों के साथ-साथ कलह एवं उथल-पुथल के भी क्षण थे, इसी के सन्दर्भ में आज के पहले पाठ में उथल-पुथल के समय की बात कही गई है। उन्होंने कहा कि जिन ग़ैरविश्वासियों ने ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन कर लिया था, "उन्होंने ख्रीस्त में अपना विश्वास प्रकट कर बपतिस्मा ग्रहण कर लिया था तथा पवित्रआत्मा से परिपूर्ण होकर वे आनन्दित थे।" लेकिन कुछे ऐसे भी थे जो यहूदी से ईसाई बने थे। इनका दावा था कि ग़ैरविश्वासी प्रत्यक्षतः ख्रीस्तीय नहीं बन सकते, उन्हें पहले यहूदी बनना होगा और उसके बाद ही वे ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन कर सकते थे, यही था उथल-पुथल और बहस का कारण।
पवित्रआत्मा कठोरता नहीं लाते
सन्त पापा ने कहा कि ऐसे ही लोग नवख्रीस्तीयों में सन्देहों को उत्पन्न कर रहे थे, स्वतः को पंडित माननेवाले इन्हीं फरीसियों ने लोगों के अन्तःकरणों में हेर-फेर का प्रयास किया था तथा उनमें कठोरता उत्पन्न कर दी। जबकि, सन्त पापा ने कहा, प्रभु येसु के पुनःरुत्थान ने हमें पवित्रआत्मा का वरदान दिया है, और पवित्रआत्मा कठोरता नहीं लाते, इसलिये कि कठोरता ख्रीस्त के पुनःरुत्थान से मनुष्य को मुफ्त में मिली मुक्ति पर प्रश्न उठाती है।
सन्त पापा ने सचेत किया कि आज भी कुछेक ख्रीस्तीय संगठन ऐसे हैं जो कठोर नियमों की प्रस्तावना करते हैं। वे, उचित ढंग से, अपने कार्यों को तो अनजाम देते हैं किन्तु, उनके अन्तर में भ्रष्टाचार व्याप्त होता है। उन्होंने कहा कि स्वार्थी मनुष्यों द्वारा बनाये गये कठोर नियमों के अन्तर्गत विश्वास को बन्द नहीं किया जा सकता, क्योंकि, विश्वास पवित्रआत्मा का वरदान है, वह स्वेच्छा से ईश्वर के नियमों के पालन द्वारा प्रस्फुटित होता है।
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