परिवार (रिश्तों) के बिना मानवीय जीवन का कोई मूल्य नही! 

एक परिवार एक परिवार

जो लोग अपने घरों से कामकाज के सिलसिले में दूर रहकर कार्य करते है, ऐसे लोंगो के प्रति मेरे मन में हमेशा ही सहानुभूति रहती है। अपने एवं अपनो का पेट पालने के लिए जो कोई अपने घरों से मीलों दूर रहकर कार्य करता है, ऐसे लोग वाकई में तारीफ के काबिल होते है। मगर आज कोरोना संकट में जब मैं लोगों को शहरों से अपने घरों को जाता हुआ देखता हूँ तो मन में सिर्फ एक ही सवाल बार बार उमड़ता है कि - "ऐसी कौन सी चीज है जो इन मजदूरों को अपने घरों की ओर खींच रही है?" जो ये लोग सैकड़ों एवं हज़ारों मीलों की दूरी पैदल ही तय करने को राजी है।
पहले इस बारे में मैं यह सोचता था कि केवल भूख ही एक ऐसी वजह है जिस कारण ये लोग अपने अपने घरों को कूच कर रहे है। मगर सोशल मीडिया पर प्रवासी मजदूरों का पैदल शहरों से अपने घरों की ओर पलायन करते हुए का मैंने वीडियो देखा। उस वीडियो ने प्रवासी मजदूरों के प्रति मेरी सोच में 360 डिग्री का परिवर्तन लाकर रख दिया। पैदल अपने घरों को जाते मज़दूरों से जब पूछा गया कि आप पैदल ही अपने घर क्यो जा रहे है तो उसने छलकती आंखों से जवाब दिया कि- "यहाँ मरने से अच्छा है कि मैं अपने परिवार में, अपने गाँव मे मरु।" 
उसका यह जवाब दर्शाता है कि परिवार की कीमत क्या होती है। कोई अपनी मर्ज़ी से काम की तलाश में अपने परिवार से दूर नही जाता है। परिस्थियां उन्हें मजबूर कर देती है घर छोड़ने को। और जब वे अपने सीने पर पत्थर रखकर, अपने परिवार से सैकड़ों-हज़ारों मीलों दूर काम करने के लिए जाते है तो दिल घर-परिवार के प्यार के लिए तरस जाता है, मन बार बार घर पर माँ के हाथ के बनाये खाने की याद दिलाता है। जुबान चिरपरिचित स्वाद की चाहत करती है। मन में घर परिवार एवं गलियों की तस्वीरें निरंतर घूमती रहती है। त्यौहार के समय पर तो उनकी हालत और भी खराब हो जाती है जब वे त्यौहार से जुड़ी उनकी परिवार के साथ जुड़ी यादों को याद करते है। तब अकेलापन उनको खाने दौड़ता है। साल भर भरपूर लगन व मेहनत के साथ ओवरटाइम करके अपने परिवार के लिए एक-एक पैसा जोड़ते है। जब कहीं साल में एक आध बार अपने घर जाते है तो न जाने किस वजह से उनके हृदय की धड़कन बढ़ जाती और होठों से इबादत के शब्द निकलने लगते है। मैं अपने अनुभव से कह सकता हूं कि घर से दूर जाकर कमाने वाले प्रवासी लोग बहुत शिद्दत से अपने परिवार के लिए दुआ मांगते हैं। घर लौटते वक्त जब वे अपने प्रान्त की सीमा में प्रवेश करते है तो उनका हृदय अजीब सी खुशियों से सराबोर हो जाता है। ज्यों-ज्यों वे घर के निकट पहुंचने लगते है उन्हें पुनः स्वर्गीय आनंद की अनुभूति होने लगती है। घर पहुंचना उनके लिए स्वर्ग में पहुंचने से कम खुशी नही देता।
लिहाज़ा कहा गया है कि- "जीना है तो रिश्तों में जियो, परिवार (रिश्तों) के बिना मानवीय जीवन का कोई मूल्य नही!" 
परिवार क्या होता है? रिश्ते क्या होते है? जिम्मेदारी क्या होती है? कर्तव्य क्या होता है? इन सवालों का जवाब हमें इन प्रवासी मजदूरों के द्वारा बखूबी मिल सकता है। कोरोना संकट में प्रवासी मजदूरों की पैदल घर जाते हुए की तस्वीरें हृदय में अजीब सा दर्द उत्पन्न कर रही है। रिश्तों की बात करें तो इन्होंने जो पैगाम लोगों को दिया है वो किसी इबादत से कम नही है। रिश्तों की वास्तविकता प्रस्तुत करती तस्वीरें जिसमें एक में एक माँ अपने दिव्यांग बच्चे को उठाकर 1100 किलोमीटर की यात्रा तय की। एक अन्य तस्वीर में अपनी माँ को पीठ पर उठाकर पैदल की सैकड़ो मीलों की यात्रा की, अपने बूढ़े पिता को अपने कंधे पर रखकर बेटे ने शहर से अपने गाँव पहुंचाया। एक माँ अपने दो बच्चों को एक को अपनी गोद में एवं एक को अपने कंधे पर रखकर पैदल घर जा रही है। एक बूढ़ा व्यक्ति अपनी माँ को अपनी पीठ पर लादकर अपनी यात्रा कर रहा है। इनके अलावा और अनेकों ऐसी तस्वीरें है जो असल मायनों में परिवार एवं रिश्तों के महत्व को दर्शाती है। अगर ये लोग चाहते तो अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़कर अपना जीवन खुशी से बसर कर सकते थे। मगर इन्होंने परिवार एवं रिश्तों को महत्व दिया ना कि खुद की परेशानियों को। 
आत्मीय रिश्तों की खुशी से बढ़कर इस दुनिया मे और कोई खुशी नही है। क्योंकि पैसों से हम रिश्ते तो बना सकते है मगर उनमे आत्मीयता नही ला सकते है। ईश्वर ने मनुष्य को रिश्तों में जोड़ा है जिससे कि वह परिवार के रूप जीवन का सही आनंद ले सके। यह हम सभी की जिम्मेदारी बनती है कि हम अपने रिश्तों का स्वाद कायम रखे। प्यार, कर्तव्य, जिम्मेदारी, त्याग, संयम, विश्वास आदि ये महत्वपूर्ण चीज़े है जो परिवार को बाँधे रखती है। रिश्तों को डोर बहुत नाजुक होती है। हमें इसे समय समय पर मजबूत करने की आवश्यकता है। मैं आपसे बस इतना ही कहना चाहता हूँ कि इस संसार में परिवार से बढ़कर कुछ नही है। जीना है तो रिश्तों में जियो, रिश्तों के बिना मानवीय जीवन का कोई महत्व नही है।

  याद रहे बड़े सपने देखें, उन्हें हासिल करें और यदि आपके माता-पिता और बहन-भाई आपके आसपास है तो आपसे ज्यादा सौभाग्यशाली और कोई नहीं हैं। इसलिए जितना हो सके उनके लिए समय निकले, उनसे नजदीकी बनाएं। क्योंकि विषम परिस्थिति में ये लोग ही हमारे काम आएंगे।

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