इंदौर में प्लाज्मा थैरेपी के बेहतर परिणाम, तीन में दो कोरोना पॉजिटिव मरीज की रिपोर्ट निगेटिव

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शहर में प्लाज्मा थैरेपी के बेहतर परिणाम आने की उम्मीदों को बल मिला है। रविवार को कोरोना पॉजिटिव तीन मरीजों पर प्लाज्मा थैरेपी का ट्रायल किया गया था। मंगलवार को दो मरीजों की कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई। हालांकि डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना संक्रमित पर प्लाज्मा थैरेपी के अंतिम परिणाम आने में अभी समय लगेगा।

केन्द्र सरकार की अनुमति के बाद इंदौर के अरबिंदो मेडिकल कॉलेज में रविवार से प्लाज्मा थैरेपी से कोरोना पॉजिटिव मरीजों का उपचार शुरू किया गया था। दिल्ली और चंडीगढ़ के बाद इंदौर देश का तीसरा शहर था जहां इस पद्धति से उपचार किया गया। कोरोना से स्वस्थ हुए तीन डॉक्टर इकबाल कुरैशी, इजहार मुंशी और आकाश तिवारी के ब्लड से प्लाज्मा लिया गया था। कोरोना पॉजिटिव मरीजों के ब्लड ग्रुप से मिलान के बाद इस प्लाज्मा को तीन मरीजों इंदौर विकास प्राधिकरण के अधिकारी कपिल भल्ला, प्रियल जैन और अनीश जैन को चढ़ाया गया। मरीजों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ी या नहीं, यह जानने के लिए मंगलवार को जांच की गई। कोरोना पॉजिटिव तीन मरीजों में से दो की रिपोर्ट निगेटिव आई।

टीबी अस्पताल में भी होगा प्लाज्मा से इलाज
एमआर टीबी अस्पताल में भी कोरोना के गंभीर मरीजों पर प्लाज्मा थैरेपी के परीक्षण की तैयारी की जा रही है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद इसकी अनुमति दे चुका है। संभवतः इसी सप्ताह इसे शुरू किया जाएगा। एमवायएच ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ. अशोक यादव ने बताया कि हम इसी हफ्ते टीबी अस्पताल में मरीजों पर क्लीनिकल ट्रायल शुरू कर देंगे। पहले ठीक होने वाले मरीजों का एंटीबॉडी टेस्ट करवाएंगे। इससे पता चल पाएगा कि उसमेंं कितने प्रतिशत एंटीबॉडी विकसित हुई है। शुरुआत में गंभीर रूप से बीमार मरीजों पर इसका इस्तेमाल किया जाएगा। दो डॉक्टर और ब्लड बैंक के एक टेक्नीशियन ने प्लाज्मा देने की इच्छा जताई है। तीनों कोरोना संक्रमण से मुक्त हो चुके हैं।

प्लाज्मा थैरेपी- वह सब जो आप जानना चाहते हैं

क्या होता है प्लाज्मा : खून में मुख्यत चार चीजें होती हैं। रेड ब्लड सेल, व्हाइट ब्लड सेल, प्लेटलेट्स व प्लाज्मा। यह प्लाज्मा खून का तरल हिस्सा होता है, जिसके जरिए एंटीबॉडी शरीर में भ्रमण करते हैं। यह एंटीबॉडी संक्रमण से पीड़ित व्यक्ति के खून में मिलकर रोग से लड़ने में मदद करती है। हालांकि इस थैरेपी से कोरोना के मरीज ठीक होने के पुख्ता प्रमाण नहीं है, लेकिन स्वाइन फ्लू जैसे संक्रमण में इसका सफल प्रयोग हो चुका है।
क्या है यह थैरिपी : कोरोना से पूरी तरह ठीक हुए लोगों के खून में एंटीबॉडीज बन जाती हैं, जो उसे संक्रमण को मात देने में मदद करती हैं। प्लाज्मा थैरेपी में यही एंटीबॉडीज, प्लाज्मा डोनर यानी संक्रमण को मात दे चुके व्यक्ति के खून से निकालकर संक्रमित व्यक्ति के शरीर में डाला जाता है। डोनर और संक्रमित का ब्लड ग्रुप एक होना चाहिए। प्लाज्मा चढ़ाने का काम विशेषज्ञों की निगरानी में किया जाता है।
कैसे निकालते हैं प्लाज्मा : कोरोना संक्रमण से ठीक हुआ व्यक्ति भी क्वारैंटाइन पीरियड खत्म होने के बाद प्लाज्मा डोनर बन सकता है। एक डोनर के खून से निकाले गए प्लाज्मा से दो व्यक्तियों का इलाज किया जा सकता है। एक बार में 200 मिलीग्राम प्लाज्मा चढ़ाते हैं। किसी डोनर से प्लाज्मा लेने के बाद माइनस 60 डिग्री पर, 1 साल तक स्टोर किया जा सकता है। दिल्ली में इसी थेरेपी से एक 49 वर्षीय संक्रमित तुलनात्मक रूप से जल्दी ठीक हो गया।

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