कोरोना ने जिंदगी ही नहीं, मौत की रस्में भी बदलीं: श्मशान में अकेली चिताएं, न तीये की बैठक न बारहवां; मोबाइल से श्रद्धांजलि

तस्वीर मध्य प्रदेश के इंदौर की है। यहां अंतिम संस्कार के बाद अस्थियां मुक्तिधाम में ही रखी गई हैं।तस्वीर मध्य प्रदेश के इंदौर की है। यहां अंतिम संस्कार के बाद अस्थियां मुक्तिधाम में ही रखी गई हैं।

कोरोना ने न सिर्फ जिंदगी जीने के तरीके बदल दिए हैं, बल्कि मौत की रस्में भी बदल डाली हैं। प्रदेश में कोरोना से भले ही अब तक 6 मौतें हुई हों, लेकिन दूसरी बीमारियों डायबिटीज, हार्ट अटैक, किडनी फेलियर से या प्राकृतिक वजहों से मौतें जारी हैं। बदले हुए हालात में अब न तो अर्थी चार कंधों पर श्मशान तक जाती है, न चिता के आसपास अपनों की भीड़ जुटती है। अंतिम संस्कार के बाद न तीये की बैठक बुलाई जाती है और न बारहवां होता है। कोरोना ने मौत के बाद होने वाली ये सारी रस्में बदल दी हैं। किसी की मृत्यु पर भेजे जाने वाले शोक संदेशों में इन दिनों एक कॉमन लाइन लिखी जा रही है- लॉकडाउन के कारण दिवंगत आत्मा की शांति हेतु घर से ही प्रार्थना करें या दुआ-ए-मगफिरत अपने घर से ही करें। सभी शोक संदेशों में यही निवेदन होता है कि रिश्तेदार अपने घर से श्रद्धांजलि मैसेज मोबाइल के जरिए भेज दें। यहां तक कि लोगों से अंतिम संस्कार में शामिल न होने की अपील भी की जाती है। ऐसा करने का संदेश सिर्फ इतना ही है कि रस्में निभाने से जीवन को बचाना ज्यादा जरूरी है।

सब्र : खूंटी पर टंगी अस्थियों को विसर्जन का इंतजार 
अंतिम क्रियाकर्म से जुड़े पंडित नरेन्द्र जोशी बताते हैं कि लोग क्रियाकर्म को लेकर बेहद संवेदनशील होते हैं। कई बार बहुत समझाने के बाद ही वे मानते हैं। लॉकडाउन के चलते अस्थियों को प्रवाहित करने के लिए परिजनों को इंतजार करना पड़ रहा है। हाल में अपनी पत्नी को खोने वाले राजेन्द्र सिंह बताते हैं, हमने अस्थियां संभाल कर रखी हैं। लॉकडाउन खुलने के बाद उन्हें गंगा में प्रवाहित करेंगे। इसी तरह क्रबिस्तान व चर्च में भी इन नियमों का पालन हो रहा है। सभी दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए शव दफनाएं जा रहे हैं

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