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दूसरों से अपने प्रति जैसा व्यवहार चाहते हो, तुम भी उनके प्रति वैसा ही किया करो।
"दूसरों से अपने प्रति जैसा व्यवहार चाहते हो, तुम भी उनके प्रति वैसा ही किया करो।"
हम हमेशा से यही चाहते है कि अन्य व्यक्ति हमारा आदर करें, हमें सम्मान दे, हमें प्राथमिकता दे एवं हमें अच्छा महसूस करवाए। प्रत्येक मनुष्य की यही चाह होती है कि सामने वाला व्यक्ति उसे भरपूर मान-सम्मान दे। दूसरों से सम्मान प्राप्त करने का सिर्फ एक ही स्वर्णिम नियम है कि "दूसरों से अपने प्रति जैसा व्यवहार चाहते हो, तुम भी उनके प्रति वैसा ही किया करो।" (सन्त लूकस 24:42)
उक्त वाक्य पवित्र बाइबिल में सन्त लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार अध्याय 24 वाक्य संख्या 42 से ली गई है। जिसमे सम्मान पाने का आदर्श नियम की व्याख्या की गई है।
हम जाने अनजाने में दोहरी ज़िन्दगी जीते है। खुद के प्रति अलग व्यवहार की अपेक्षा करते है मगर दूसरों के साथ वैसा व्यवहार नहीं करते। हम यह चाहते है की जब हमसे कोई गलती हो जाए तो लोग हमें माफ़ कर दे। मगर जब बात दूसरों की आती है तो हमारा परिस्थितियों को देखने का नजरिया ही पूर्णतः बदल जाता है। हम ईश्वर से भी यही आशा करते है कि ईश्वर हमारे पापों को पूर्णतः क्षमा प्रदान करे मगर हम दूसरों की गलती के लिए उनको क्षमा नहीं देते है। अगर यही रवैया लेकर हम जियेंगे तो ईश्वर भी हमारे पापों को क्षमा प्रदान नहीं करेगा। इसलिए दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा खुद के साथ चाहतें हो।
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