सन्त पिता फ्राँसिस ने रविवार को इताली शहर ग्रेचो की यात्रा के दौरान इस पत्र पर हस्ताक्षर किया

सन्त पिता फ्रांसिस

ग्रेचो एक पहाड़ी गाँव है जहाँ संत फ्राँसिस असीसी ने अपनी पहली चरनी 1223 में येसु की याद में निर्मित की थी। सन्त पिता फ्राँसिस ने रविवार को इस गाँव का दौरा कर अपने प्रेरितिक पत्र "अदमिराबिले सेन्यूम" का उद्घाटन किया।

प्रेरितिक पत्र के लातीनी शीर्षक का अर्थ है क्रिसमस चरनी का "एक अद्भुत दृश्य", जो हमेशा विस्मित और आश्चर्यचकित करता है। येसु के जन्म का चित्रण अपने आप में ईश्वर के पुत्र के शरीरधारण का सहज एवं आनन्दमाय घोषणा है।

सन्त पिता फ्रांसिस ने पत्र में लिखा है कि चरनी का दृश्य एक जीवित सुसमाचार है जो पवित्र धर्मग्रंथ के पृष्ठों से प्रेरित है। क्रिसमस की कहानी पर चिंतन करना आध्यात्मिक यात्रा है जिसकी शुरूआत ईश्वर की विनम्रता से होती है जो मानव बन गये ताकि सभी लोगों से मुलाकात कर सकें। अतः उनका प्रेम महान है कि वे हम में से एक बन गये ताकि हम भी उनके समान बन सकें।

सन्त पिता फ्रांसिस की आशा है कि यह प्रेरितिक पत्र पारिवारिक परम्परा को प्रोत्साहन देगा किन्तु यह कार्यस्थलों, स्कूलों, अस्पतालों, कैदखानों एवं शहर के चौराहों पर चरनी निर्माण की प्रथा को भी बढ़ावा देगा। चरनी निर्माण में काल्पनिक शक्ति के प्रयोग एवं रचनात्मकता की सराहना करते हुए संत पापा ने लिखा है कि उनकी आशा है कि यह प्रथा कभी न खोए। उन्होंने कहा है कि जहाँ इससे बनाने की प्रथा धूमिल हो रही है वहाँ इसे पुनः जागृत किया जाए।

संत पिता फ्राँसिस ने क्रिसमस की चरनी के उदगम की याद दिलाते हुए लिखा है कि इसका उदगम सुसमाचार में है। "इस दुनिया में आने के लिए ईश पुत्र उस जगह पर लेटे जहाँ पशुओं को चारा दिया जाता है। सूखी घास उनका पहला बिछावन बना और बाद में उन्होंने स्वयं प्रकट किया कि वे ही स्वर्ग से उतरी हुए रोटी हैं।" चरनी येसु के जीवन के कई रहस्यों पर चिंतन करने हेतु प्रेरित करता है और हमारे दैनिक जीवन में उन्हें हमारे नजदीक लाता है।

प्रेरितिक पत्र में संत पापा फ्राँसिस हमें इताली शहर ग्रेचो ले जाते हैं जहाँ 1223 ई. में संत फ्राँसिस असीसी ने दौरा किया था। उन्होंने वहाँ एक गुफा देखा जो उन्हें बेतलेहेम के ग्रामीण इलाके की याद दिलायी। 25 दिसम्बर को धर्मबंधुओं और गाँव के लोगों ने मिलकर, फूलों और मशालों से सजाया। जब फ्राँसिस वहाँ पहुँचे तब उन्होंने चरनी में सूखी घास एवं बैल तथा गधों को पाया। एक पुरोहित ने चरनी के पास ख्रीस्तयाग अर्पित किया एवं ईश्वर के पुत्र के शरीरधारण एवं ख्रीस्तयाग के बीच संबंध पर प्रकाश डाला।

संत पिता ने लिखा कि इस तरह हमारी परम्परा की शुरूआत हुई, "गुफा के नजदीक खुशी से एक साथ जमा होना जिसमें सच्ची घटना एवं उनके रहस्यों में सहभागी होने में ज्यादा अन्तर नहीं था।" संत फ्राँसिस ने महान सुसमाचार प्रचार के कार्य हेतु साधारण चिन्हों को अपनाया। उनकी शिक्षा आज भी जारी है जो हमें साधारण किन्तु हमारे विश्वास की सुन्दरता को व्यक्त करने की सच्ची शिक्षा प्रदान करती है।

संत पिता फ्राँसिस ने बतलाया कि चरनी हमें गहराई से प्रभावित करती है क्योंकि यह ईश्वर के कोमल प्रेम को प्रकट करती है। संत फ्राँसिस द्वारा इसकी शुरूआत के समय से ही चरनी हमें उस गरीबी पर चिंतन करने हेतु प्रेरित करती है जिसको ईश पुत्र ने शरीरधारण करने के लिए अपनाया। यह हमें उन भाई बहनों से मुलाकात करने एवं उनकी सेवा करने तथा उनके प्रति दया दिखाने का निमंत्रण देती है जो जरूरतमंद हैं।

सन्त पिता फ्रांसिस ने चरनी के तत्वों पर प्रकाश डाला। उन्होंने तारों से जड़ा अंधकारमय आकाश एवं नीरव रात की पृष्ठभूमि का अर्थ बतलाते हुए कहा कि यदि हम सोचते हैं कि हम रात के अंधेरे को अनुभव कर रहे हैं तब भी ईश्वर हमें नहीं छोड़ते हैं। जहाँ अंधकार है उनका सामीप्य प्रकाश लाता तथा दुःख की छाया में चलने वालों को रास्ता दिखलाता है।

संत पापा ने चरनी में भू-दृश्य की भूमिका पर प्रकाश डाला जिसमें साधारणतया प्राचीन खंडहर या घर का दृश्य प्रस्तुत किया जाता है। उन्होंने कहा कि खंडहर पतित मानवता की निशानी है हर चीज का निश्चित रूप से पतन हो जाता है। यह दृश्य बतलाता है कि येसु का आगमन हुआ है कि वे चंगा और पुनः निर्माण करें, दुनिया को बचायें और हमारे जीवन को सच्चा वैभव प्रदान करें।

चरवाहे जो दूसरे लोगों की तरह कई चीजों में व्यस्त नहीं थे उन्होंने सबसे आवश्यक चीज मुक्ति के वरदान को प्राथमिकता दी और येसु का दर्शन करने आये। वे विनम्रता एवं दीनता से येसु का दण्डवत किये। इस प्रकार चरवाहों ने प्रेम, कृतज्ञता एवं आदर से ईश्वर का प्रत्युत्तर दिया जो बालक येसु के रूप में हमसे मुलाकात करने आते हैं।

गरीब एवं अकेला व्यक्ति हमें याद दिलाता है कि ईश्वर मनुष्य बन गये उन लोगों के लिए जिन्हें उनके प्रेम की जरूरतमंद हैं। चरनी से येसु विनम्रता पूर्वक किन्तु दृढ़ता से घोषित करते हैं कि गरीबों के साथ बांटना दुनिया का सबसे मानवीय एवं भाईचारापूर्ण रास्ता है जिसमें कोई बहिष्कृत नहीं होता।

संत पापा ने चरनी में ऐसे सदस्यों पर गौर किया जिनका जिक्र सुसमाचार में नहीं किया गया है जैसे लोहार, रोटीवाला, संगीतकार, पानी लाती महिलाएँ एवं खेलते हुए बच्चे। उन्होंने कहा कि ये सभी दैनिक जीवन की पवित्रता के बारे बोलते हैं। हमें प्रतिदिन के साधारण कार्यों को खुशी पूर्वक असाधारण तरीके से करना है।

येसु के माता-पिता मरियम और जोसेफ पर चिंतन करते हुए संत पापा ने कहा, "मरियम एक ऐसी माता हैं जो अपने बच्चे पर ध्यान देती एवं उसे हर अतिथि को दिखलाती है। वे सभी लोगों को उनके आदेशों का पालन करने की सलाह देती है। जोसेफ उनके बगल में खड़े हैं जो बालक और उनकी माता की रक्षा करने के लिए तैयार होने का प्रतीक है। जोसेफ संरक्षक हैं, एक धर्मी व्यक्ति जिन्होंने अपने आपको ईश्वर की इच्छा के लिए हमेशा समर्पित किया।

जब हम चरनी में बालक येसु की प्रतिमा को स्थापित करते हैं तब चरनी का दृश्य सजीव हो जाता है। यह असंभव लगता है किन्तु यह सच है कि येसु में ईश्वर एक बालक बन गये और इस तरह वे मुस्कुराने एवं सभी लोगों के लिए अपनी बाहों को खोलने के द्वारा अपने प्रेम की महानता को प्रकट करना चाहते हैं। चरनी हमें इस अनोखे और अद्वितीय घटना को देखने और स्पर्श करने का अवसर प्रदान करती है जिसने मानव इतिहास को बदल दिया। यह हमें अपने जीवन पर चिंतन करने के लिए भी प्रेरित करती है कि हमारा जीवन किस तरह ईश्वर के इस जीवन का हिस्सा है।

जब प्रभु प्रकाश का पर्व आता है तब हम तीन आजाओं को भी जोड़ देते हैं। उनकी उपस्थिति हर ख्रीस्तीय की जिम्मेदारी की याद दिलाती है कि उसे सुसमाचार का प्रचार करना है। ज्योतिषी सिखलाते हैं कि लोग लम्बे रास्ते से ख्रीस्त के पास आ सकते हैं किन्तु घर वापस लौटते हुए वे दूसरों को मसीह के साथ उनके अदभुत मुलाकात के बारे बतला सकते हैं। इस तरह राष्ट्रों के बीच सुसमाचार का प्रचार होता है।

जब हम बच्चे थे तब क्रिसमस चरनी के सामने खड़े होने की याद हमें स्मरण दिलाती है कि इस अनुभव को हमें अपने बच्चों और हमारे दादा-दादी को बांटना है। संत पापा ने कहा कि यह अधिक मायने नहीं रखता कि चरनी किस तरह से बनायी गयी है बल्कि मायने रखता है कि यह हमारे जीवन को क्या सीख देती है।

चरनी महत्वपूर्ण है जो विश्वास को हस्तांतरित करने की मांग करती है। बचपन से लेकर हमारे जीवन के हर पड़ाव पर हमें सिखलाती है कि हम येसु पर चिंतन करें, अपने लिए ईश्वर के प्रेम को महसूस करें और विश्वास करें कि ईश्वर हमारे साथ हैं और हम उनके साथ।

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