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सन्त पापा फ्राँसिस ने अन्तरराष्ट्रीय काथलिक धर्मतत्वविज्ञान आयोग के सदस्यों को सम्बोधित किया
वाटिकन में शुक्रवार को सन्त पापा फ्राँसिस ने अन्तरराष्ट्रीय काथलिक धर्मतत्वविज्ञान आयोग के सदस्यों को सम्बोधित कर कलीसियाई जीवन एवं तीर्थयात्रा में सहभागिता को अपरिहार्य बताया।
50 वीं वर्षगाँठ पर बधाई
अन्तरराष्ट्रीय काथलिक धर्मतत्वविज्ञान आयोग की 50 वीं वर्षगाँठ पर सन्त पापा फ्राँसिस ने आयोग के अध्यक्ष कार्डिनल लूईस फ्राँसिसको लदारिया फेरेर तथा आयोग के सदस्यों के प्रति हार्दिक बधाइयाँ अर्पित की तथा कहा कि यह वर्षगाँठ, आयोग द्वारा विगत पचास वर्षों में सम्पन्न कार्यों के इतिहास के लिये, ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन का सुअवसर है।वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में प्रकाशित सेवानिवृत्त सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें के सन्देश को उद्धृत कर सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा कि उक्त आयोग की स्थापना सन्त पापा पौल षष्टम द्वारा द्वितीय वाटिकन महासभा के फलस्वरूप की गई थी ताकि धर्मतत्व विज्ञान एवं कलीसिया की धर्मशिक्षा के बीच एक सेतु का निर्माण किया जा सके।
आयोग द्वारा प्रकाशित दस्तावेज़
सन्त पापा फ्रांसिस ने आयोग के कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि कलीसियाई जीवन में प्रशिक्षण एवं ईशशास्त्रीय चिन्तन हेतु आयोग ने 29 दस्तावेज़ प्रकाशित किये हैं। तथापि, इनमें दो दस्तावेज़ प्रमुख हैं, प्रथम दस्तावेज़, कलीसियाई जीवन और मिशन में सहभागिता की नितान्त आवश्यकता पर बल देता है, जबकि दूसरा दस्तावेज, आज विश्व में व्याप्त धार्मिक स्वतंत्रता की विभिन्न व्याख्याओं पर विचार-विमर्श का प्रस्ताव रखता है।
सहभागिता एवं धार्मिक स्वतंत्रता
सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा, "कलीसियाई जीवन में सहभागिता पर अपने परमाध्यक्षीय काल से ही मैं बल देता रहा हूँ इसलिये कि मेरा अटल विश्वास है कि सहभागिता के बिना कलीसियाई जीवन में खालीपन आ जायेगा।" उन्होंने कहा, "सहभागिता एक शैली है, यह एक साथ मिलकर जीवन की तीर्थयात्रा में आगे बढ़ना है, और तीसरी सहस्राब्दी की कलीसिया से ईश्वर यही उम्मीद करते हैं।"
धार्मिक स्वतंत्रता की विभिन्न व्याख्याओं के प्रति ध्यान आकर्षित कराते हुए सन्त पापा ने कहा, "एक ओर वे लोग हैं जो लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता के मूलभूत अधिकार से वंचित करना चाहते हैं तो, दूसरी ओर, उन लोगों की भी कमी नहीं जो, जन कल्याण का बहाना कर "नैतिक रूप से तटस्थ" राज्य के विचार को प्रसारित करते तथा धर्मों को हाशिये पर रखने की कोशिश करते हैं।"
सन्त पापा ने कहा कि इसके विपरीप जन कल्याण हेतु यथार्थ सम्वाद एवं भलाई करने की इच्छा की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि ईमानदारीपूर्वक "राज्य और धर्मों के बीच तथा स्वयं विभिन्न धर्मों के बीच यथार्थ विचारों के आदान-प्रदान एवं सम्वाद को पोषित करने के द्वारा धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा दिया जा सकता है जो, सभी की भलाई और लोगों के बीच शांति स्थापना में एक महान योगदान होगा।"
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