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सन्त पापा फ्राँसिस के विचार गर्भवती महिलाओं के प्रति अभिमुख
वाटिकन स्थित सन्त मर्था प्रेरितिक आवास के प्रार्थनालय में शुक्रवार को ख्रीस्तयाग अर्पण के अवसर पर प्रवचन करते हुए सन्त पापा फ्राँसिस ने गर्भवती महिलाओं के लिये विशेष रूप से प्रार्थना की तथा डिजीटल माध्यमों के जरिये "आभासी" विश्वास की अभिव्यक्ति के प्रति सचेत कराया। कोविद-19 महामारी से उत्पन्न अनिश्चित्ता के क्षण में, सन्त पापा फ्राँसिस ने, गर्भवती महिलाओं को याद किया।
वाटिकन स्थित सन्त मर्था प्रेरितिक आवास के प्रार्थनालय में शुक्रवार को ख्रीस्तयाग अर्पण के अवसर पर प्रवचन करते हुए सन्त पापा फ्राँसिस ने गर्भवती महिलाओं के लिये विशेष रूप से प्रार्थना की तथा डिजीटल माध्यमों के जरिये "आभासी" विश्वास की अभिव्यक्ति के प्रति सचेत कराया।
गर्भवती महिलाओं के लिये प्रार्थना
सन्त पापा ने कहा, "मेरी मंगलकामना है कि हम आज गर्भवती महिलाओं के लिये प्रार्थना करें, उनके लिये जो माँ बननेवाली हैं तथा उत्कंठित एवं चिन्तित हैं। वे प्रश्न कर रही हैं, "मेरा बेटा कैसी दुनिया में जीवन यापन करेगा?" हम सब मिलकर उनके लिए प्रार्थना करें, ताकि प्रभु उन्हें इस विश्वास के साथ इन बच्चों को जनने का साहस दें कि निश्चित रूप से यह एक अलग दुनिया होगी, लेकिन यह हमेशा एक ऐसी दुनिया होगी जिससे प्रभु ईश्वर बहुत प्रेम करेंगे।"
प्रवचन में, सन्त पापा ने एक प्रकार के ज्ञानवादी विश्वास के ख़तरे के प्रति सचेत किया, जिसका पालन मानवीय संपर्कों के बिना, केवल स्ट्रीमिंग के माध्यम से किया जा रहा है।
सुपरिचय और आत्मीयता
आज के लिये निर्धारित सन्त योहन रचित सुसमाचार पाठ पर चिन्तन करते हुए सन्त पापा ने कहा, "पुनरुत्थान के बाद तिबेरियुस समुद्र तट पर येसु ने शिष्यों को दर्शन दिये तथा उनके कहने पर उन्होंने जाल डाला और उसे मछलियों से भर लिया। सन्त पापा ने कहा कि शिष्य ऐसा इसलिये कर पाये क्योंकि उन्हें येसु पर पूरा विश्वास था, वे येसु से परिचित थे। उन्होंने कहा, इसी तरह हम ईसाइयों को भी इसी विश्वास, सुपरिचय और आत्मीयता में विकसित होना चाहिये, जो व्यक्तिगत है किन्तु साथ ही सामुदायिक भी।"
ज्ञानवादी विश्वास का जोखिम
उन्होंने कहा, "समुदाय के बिना, कलीसिया के बिना तथा संस्कारों के बिना परिचय और विश्वास ख़तरनाक है, इसमें ज्ञानवादी विश्वास का जोखिम है, जो ईश प्रजा को अलग कर सकता है। उन्होंने कहा महामारी की इस अवधि में मीडिया के माध्यम से हम सम्पर्क में हैं, किन्तु सामुदायिक रूप से एक साथ नहीं हैं, जैसा कि आज के ख्रीस्तयाग में हो रहा है। यह एक कठिन स्थिति है जिसमें विश्वासी केवल आध्यात्मिक रूप से पवित्र परमप्रसाद ग्रहण कर सकते हैं। इस स्थिति से उभरना नितान्त आवश्यक है वरना कलीसिया पर भी "वायरल" होने का जोखिम खड़ा हो सकता है। हम मिलकर प्रार्थना करें कि प्रभु ईश्वर हमें, कलीसिया में, संस्कारों के साथ तथा भक्त समुदाय के संग, परिचित होना तथा आत्मीय होना सिखायें।"
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