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सच्ची शांति स्थापक, मेल-मिलाप की चाह रखते, संत पापा
संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर सातवें धन्य वचन पर धर्मशिक्षा माला देते हुए मेल-मिलाप पर प्रकाश डाला।
संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन प्रेरितिक निवास के पुस्तकालय से सभों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एव बहनों सुप्रभात आज की धर्मशिक्षा माला सातवें धन्य वचन पर आधारित है, “धन्य हैं वे जो मेल कराते हैं” वे ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे। मुझे खुशी है कि यह धन्य वचन पास्का के तुरंत बाद आता है क्योंकि येसु ख्रीस्त की शांति हमारे लिए उनकी मृत्यु उपरांत पुनरूत्थान के द्वारा प्राप्त होती है। इस शांति को समझने हेतु हमें शब्द “शांति” के अर्थ की व्याख्या करना जरूरी है जिससे हम इस परम आनंद को समझ सकें जिसे कई बार हम समझने में गलती करते हैं।
शालोम और शांति
शांति के संदर्भ में हमें दो विचारों पर अपने में व्यवस्थित करने की जरूरत है, पहला शब्द, धर्मग्रंथ बाईबल में वर्णित “शालोम” जिसका तत्पर्य प्रचुरता, समृद्धि और खुशहाली से है। ईब्रानी भाषा में जब कोई किसी को शालोम कहते हुए अभिवादन करता है तो हम उसे जीवन की खुशी, परिपूर्णतः और जीवन की समृद्ध के साथ-साथ सच्चाई और न्याय की कामना करते हुए पाते हैं जो मुक्तिदाता, शांति के राजकुमार के आने में अपनी पूर्णतः को प्राप्त करता है (इसा.9.6,मीका.5,4-5)।
वहीं हम इसके दूसरे अर्थ को जो अपने में अधिक विस्तृत है “शांति” के रुप में देखते हैं जो हमारी आंतरिक शांतिमय स्थिति को निरूपित करती है। “मैं शांति मैं हूँ, मैं अविचलित हूँ...। संत पापा ने कहा कि यह हमारे लिए आधुनिक, मनोवैज्ञानिक और अधिक व्यक्तिपरक विचार को प्रस्तुत करता है। सामान्य रुप से शांति का अर्थ अपने में चैन, एकता और आतंरिक रुप में संतुलित रहने का बोध कराती है। “शांति” शब्द का यह अर्थ अपने में अधूरा है और इसे पूर्ण नहीं किया जा सकता है, क्योंकि जीवन में बेचैनी विकास का एक महत्वपूर्ण क्षण हो सकता है। उन्होंने कहा कि बहुत बार ईश्वर स्वयं हममें बेचैनी के बीज बोते हैं जिससे हम उनके पास, उन्हें खोजने और उनसे मिलने जायें। इस अर्थ में यह हमारे लिए विकास का एक महत्वपूर्ण क्षण होता है। वहीं ऐसा भी हो सकता है कि आंतरिक शांति, हमारी वातावरण की अनुकूलनता को व्यक्त करती हो जो हमारे विवेक से मेल खाता है, जो हमारे लिए एक सच्ची आध्यात्मिक स्वतंत्रता नहीं है। बहुत बार ईश्वर हमारे लिए “विरोधाभास के संकेत” होते हैं (लूका.2.34-35) जो हमारी नकली सुरक्षा के मनोभावों को हिला देते, जिसे वे हमें मुक्ति प्रदान कर सकें। ऐसी परिस्थिति में हम अपने में बेचैनी का अनुभव करते हैं लेकिन ईश्वर जो हमें इस तरह की राह में ले जाते जिससे वे हम शांति प्राप्त कर सकें, हमें स्वयं शांति से भर देते हैं।
ईश्वरीय शांति का स्वरुप
संत पापा ने कहा कि ईश्वर की शांति देने के तरीके मानवीय सोच और विचार, दुनिया से विपरीत है, “मैं तुम्हें लिए शांति छोड़ा जाता हूँ अपनी शांति तुम्हें प्रदान करता हूँ। वह संसार की शांति जैसी नहीं है।” (यो. 14.27)। ईश्वर की शांति हमारे लिए दुनिया की शांति से एकदम भिन्न है, यह एक अलग ही शांति है।
हम अपने आप में यह पूछें, दुनिया की शांति हमारे लिए कैसी आती हैॽ यदि हम युद्ध भरी परिस्थिति के बारे में विचार करें, यह अपने में दो तरीकों से खत्म होती है, दो दलों में से एक या तो हारता है या फिर दूसरा शांति स्थापना हेतु एक पहल की जाती है। हम प्रार्थना करते हुए केवल यही आशा कर सकते हैं कि दूसरे मार्ग का चुनाव सदैव किया जाये, यद्यपि हम मानव इतिहास में इस बात को पाते हैं कि शांति स्थापना हेतु पहल के बावजूद असंख्य युद्धों ने शांति संधियों को नकार दिया है। हमारे समय में भी, छोटे-छोटे टुकड़ों में युद्ध की असंख्य परिस्थितियाँ विभिन्न स्थानों में बनी हुई हैं। सभी आर्थिक या वित्तीय हितों के संदर्भ में वर्तमान वैश्वीकरण की स्थिति, हममें तनिक भी संदेह उत्पन्न नहीं करती कि कुछेक हेतु “शांति” दूसरों के लिए “युद्ध” का कारण है। और यह ख्रीस्त की शांति नहीं है।
संत पापा ने कहा कि वास्तव में येसु ख्रीस्त “कैसे हमें” अपनी शांति प्रदान करते हैंॽ इस संदर्भ में संत पौलुस हमें एफेसियों के पत्र में कहते हैं कि येसु ख्रीस्त की शांति दो को “एक” बनाना है (ऐफि.2.14) जहां हम अपने बीच से वैमनस्य दूर करते हुए मेल-मिलाप हेतु बुलाये जाते हैं। वे इसे अपने शरीर के द्वारा पूरा करते हैं। वास्तव में, मसीह ने क्रूस पर जो रक्त बहाया, उसके द्वारा ईश्वर ने शांति की स्थापना की। (कलो. 1.20)
सच्ची शांति के स्थापक
मैं यहां अपने में आश्चर्य करता हूँ, हम सभी अपने में पूछ सकते हैं, शांति के स्थापक कौन हैंॽ सातवां धन्य वचन अपने में सक्रिया है, यह मौखिक अभिव्यक्ति उस रचना के अनुरूप है जिसका उपयोग बाईबल के पहले पदों में सृजन हेतु किया गया था, और यह हमें पहल तथा परिश्रम का संकेत देती है। प्रेम अपनी प्रकृति में सृजनात्मक है, यह सदैव सक्रिया है जो सभी चीजों को अपने में एक साथ मिला लेने की चाह रखता है चाहे उसकी कीमत कितनी भी क्यों न हो। संत पापा ने कहा कि जिन्होंने मेल-मिलाप की बातों को सीख लिया और उन्हें अपने कार्यों में परिणत किया है वे ईश्वर की संतान कहलायेंगे। वे जानते हैं कि अपने जीवन की आहूति बिना मेल-मिलाप संभंव नहीं हैं, हम इस बात को न भूलें। यह हमारी योग्यता का प्रतिफल नहीं है वरन यह येसु ख्रीस्त की कृपा को हममें अभिव्यक्त करता है, जो हमारी शांति हैं जिसके द्वारा हम सभी ईश्वर की संतान बनते हैं।
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