संत जॉन पौल द्वितीय की शतवर्षीय जयन्ती पर युवाओं को पोप का संदेश

पौलैंड में संत जॉन पौल द्वितीय के जन्म स्थल पर बना स्मारकपौलैंड में संत जॉन पौल द्वितीय के जन्म स्थल पर बना स्मारक

संत पापा फ्रासिस ने 18 मई को पोलैंड के क्राकॉव एवं विश्व के युवाओं को एक संदेश भेजा जो संत पापा जॉन पौल द्वितीय के जन्म की शतवर्षीय जयन्ती मना रहे हैं।  संत पापा ने संदेश में लिखा, "प्यारे युवाओ, इस साल हम संत जॉन पौल द्वितीय के जन्म का 100वाँ साल मना रहे हैं।" यह मेरे लिए सुन्दर अवसर है कि मैं आप क्राकॉव के युवाओं को सम्बोधित करूँ, यह याद करते हुए कि वे युवाओं को कितना अधिक प्यार करते थे और यह भी याद करते हुए कि 2016 में विश्व युवा दिवस के अवसर पर आपके बीच मेरी उपस्थिति थी।   

संत पापा जॉन पौल द्वितीय कलीसिया और आपकी मातृभूमि पौलैंड के लिए ईश्वर के एक वरदान थे। पृथ्वी पर उनकी जीवन यात्रा जो 18 मई 1920 को वाडोवाईस में शुरू हुई थी और 15 साल पहले रोम में समाप्त हुई, वह जीवन के लिए उत्साह एवं ईश्वर के रहस्य, विश्व एवं मानव जाति के लिए सम्मोहन से पूर्ण थी।   
मैं उन्हें करुणा के एक महान व्यक्ति के रूप में याद करता हूँ, मैं उनके प्रेरितिक विश्व पत्र दिवेस इन मिसेरिकोरदिया, संत फौस्तीना की संत घोषणा और दिव्य करुणा रविवार की स्थापना की याद कर रहा हूँ।  

ईश्वर के करुणावान प्रेम के आलोक में उन्होंने महिलाओं एवं पुरूषों के बुलाहट की विशेषता और सुन्दरता को पहचाना। उन्होंने बच्चों, युवाओं एवं वयस्कों की आवश्यकताओं को समझा तथा सांस्कृतिक एवं सामाजिक स्थिति पर ध्यान दिया। इस तरह सभी लोगों ने उनका अनुभव किया या हर किसी ने उन्हें महसूस किया।

आज आप भी उन्हें महसूस कर सकते हैं और उनके जीवन एवं शिक्षा को जान सकते हैं जो सभी के लिए इंटरनेट के माध्यम से उपलब्ध है। प्यारे युवाओं, आप सभी आनन्द एवं दुःख के साथ अपने परिवार की छाप धारण करते हैं।

प्रेम और चिंता संत पापा जॉन पौल द्वितीय की विशेषता है। उनकी शिक्षाएँ कठिनाइयों का ठोस समाधान खोजने और आधुनिक दौर के परिवारों के सामने आनेवाली चुनौतियों का एक सुरक्षित बिंदु है।

व्यक्तिगत एवं पारिवारिक समस्याएँ पवित्रता और आनन्द के मार्ग पर उनके लिए बाधक नहीं थीं। न ही अपनी माता, पिता और भाई को खोने का दुःख उन्हें रोक सका।  

एक विद्यार्थी के रूप में उन्होंने नाजीवाद के अत्याचार का अनुभव किया जिसने उनके कई मित्रों को ले लिया। युद्ध के बाद एक पुरोहित और धर्माध्यक्ष के रूप में उन्हें नास्तिक साम्यवाद का सामना करना पड़ा। कठिनाईयाँ चाहे बहुत मुश्किल क्यों न हों वे परिपक्वता और विश्वास के प्रमाण हैं जिनपर ख्रीस्त की शक्ति द्वारा ही जीत पाया जा सकता है जो मरे और फिर जी उठे।

संत पापा जॉन पौल द्वितीय ने अपने प्रेरितिक विश्व पत्र रेदेम्पतोर ओमीनीस में पूरी कलीसिया को इस बात की याद दिलायी है, जिसमें उन्होंने कहा है, "व्यक्ति जो अपने आपको पूरी तरह जानना चाहता है वह अपने बेचैन, अनिश्चित और अपनी कमजोरी एवं पापमयता द्वारा अपने जीवन एवं मृत्यु से ख्रीस्त के निकट आता है। कहा जा सकता है कि अपने पूरे अस्तित्व के साथ ख्रीस्त में प्रवेश करना है।"  

संत पापा ने कहा कि प्यारे युवाओं, यही मैं आप सभी से आशा करता हूँ कि ख्रीस्त आपके सम्पूर्ण जीवन में प्रवेश करे और उम्मीद करता हूँ कि संत जॉन पौल द्वितीय के जन्म की शतवर्षीय जयन्ती, आप सभी में येसु के साथ साहस से चलने की चाह उत्पन्न करेगा। जो जोखिम उठाने वाले ईश्वर हैं, जो अनन्त प्रभु हैं। जैसा कि उन्होंने पेंतेकोस्त में किया। प्रभु महान चमत्कार करना चाहते हैं जिसको हम अनुभव कर सकते हैं। वे आपके हाथ, मेरे हाथ, हमारे हाथ को मेल-मिलाप, एकता और सृष्टि के चिन्ह में बदलना चाहते हैं। वे आपका हाथ चाहते हैं ताकि आज की दुनिया का निर्माण करना जारी रख सकें।  

मैं आप सभी को संत जॉन पौल द्वितीय की मध्यस्थता को सिपूर्द करता हूँ और आपको पूरे हृदय से आशीष प्रदान करता हूँ। आप मेरे लिए प्रार्थना करना न भूलें।

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