प्रार्थना- जीवन का बीज, संत पापा

बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा फ्राँसिस बुधवारीय आमदर्शन में संत पापा फ्राँसिस

संत पापा ने बुधवार को प्रार्थना पर धर्मशिक्षा देते हुए कहा कि प्रार्थना जीवन को विकसित करती है और इसी कारण हमें बच्चों को छोटी प्रार्थना करने हेतु सीखलाने 

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन के अवसर पर वाटिकन के प्रेरितिक निवास की पुस्तकालय से सभी लोगों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात। आज की धर्मशिक्षा में हम धार्मियों की प्रार्थना पर चिंतन करेंगे।

ईश्वर की योजना मानव के लिए अच्छी है लेकिन हम अपने प्रतिदिन के जीवन में बुराई को पाते हैं, इसे हम अपने रोज दिन के जीवन में अनुभव करते हैं। उत्पत्ति ग्रंथ का पहला अध्याय हमें मानव के कार्यों द्वारा पाप के विस्तार का जिक्र करता है। आदम और हेवा ने ईश्वर के अच्छे विचारों पर संदेह किया, (3.3-7) उन्हें अपने में ऐसा लगा कि ईर्ष्यालु ईश्वर जो उनकी खुशी नहीं चाहते उनसे उनका क्या वास्ता। अतः वे उनके विरूद्ध बागवत करते, वे सृष्टिकर्ता की उदारता में विश्वास नहीं करते जो उनकी खुशी चाहते हैं। उनका हृदय बुराई की ओर झुकता और वे सर्वशक्तिमान होने के इस विचार से भ्रमित हो जाते हैं कि “यदि वे वृक्ष का फल खायेंगे तो ईश्वर की तरह हो जायेंगे।” यह एक प्रलोभन है, एक महत्वकांक्षा जो उनके हृदय में प्रवेश कर जाती है। लेकिन इसका परिणाम ठीक उल्टा होता है, उनकी आंखें खुल गईं और वे अपने को नंगे, सभी चीजों से वंचित पाये। (7) संत पापा ने कहा कि हम इस बात को न भूलें कि प्रलोभन की एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है।

बुराई का हमारे हृदय में प्रवेश
यह बुराई द्वितीय पीढ़ी के साथ और भी गहरी होती जाती है जिसे हम काईन और हाबिल की कहानी में सुनते हैं (उत्प. 4.1-16)। काईन को अपने भाई से ईर्ष्या होती है, ईर्ष्या एक कीड़ा के समान है, यद्यपि वह जेष्ठ पुत्र था परन्तु वह हाबिल को प्रतिद्वंद्वी के रुप में देखता है मानो वह उनकी प्रधानता को कम रहा हो। बुराई काईन के हृदय में पनपती है और वह उसे दबा कर नहीं रख सकता है। संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि बुराई का हमारे हृदय में प्रवेश होते ही हम दूसरों को बुरी निगाहों, शक की नजरों से देखने लगते हैं। और यह उस हद तक पहुँच जाती है जहां हम सोचते हैं, “यह दुष्ट है जो मुझे नुकसान पहुँचायेगा।” यह हृदय में प्रवेश कर जाता... और इस तरह सृष्टि के प्रथम भाइयों में हम हत्या को देखते हैं। यह मेरे जेहन में, भातृत्व की दुनिया में सभी जगह युद्ध की स्थिति को लेकर आती है।

काईन की संतति में शिल्प और कलाओं का विकास होता है लेकिन हम हिंसा को भी बढ़ता हुआ पाते हैं जो लमेक के प्रतिशोध गीत में प्रकट होता है, “मैंने उस पुरूष का वध किया, उस नवयुवक का, जिसने मुझे मारा था, यदि काईन का बदला सात गुणा चुकाया जायेगा, तो लमेक का सत्तर गुणा।” (उत्पि.4.23-24) बदला यदि आपने लिया है तो यह चुकाया जायेगा। यह न्यायकर्ता नहीं कहता अपितु मैं कहता हूँ, संत पापा ने कहा। बुराई जंगली आग के समान फैलती है और सारी चीजों को अपने आगोश में कर लेती है। “प्रभु ने देखा कि पृथ्वी पर मनुष्यों की दुष्टता बहुत बढ़ गई है और उनके मन में निरंतर बुरे विचार और बुरी प्रवृत्तियाँ उत्पन्न होती हैं”, (6.5) इस भांति नूह का जलप्रलय और बाबुल का मीनार हमें ईश्वर द्वारा एक नई सृष्टि, नयी शुरूआत की ओर ध्यान आकृष्ट कराता है जो येसु ख्रीस्त में अपनी पूर्णता को प्राप्त होता है।

ईश्वर से प्रार्थना करनेवालों का जीवन
संत पापा ने कहा कि इस सारी चीजों के बावजूद धर्मग्रंथ बाईबल के प्रथम पृष्टों पर एक दूसरी कहानी अंकित पाते हैं जो अपने में अधिक नम्र और समर्पित है जो हमारा ध्यान आशा में मुक्ति की ओर कराती है। यद्यपि आधे के अधिक लोग अपने में दुष्टता पूर्ण कार्य करते, अपने जीवन के द्वारा घृणा का प्रसार करते और मानव के कार्यों से विजय हासिल करने की चाह रखते हैं, वहीं कुछ सुयोग्य जन हैं जो अपनी निष्ठा में बने रहते हुए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं, वे मानव इतिहास को अपने में दूसरे तरीके से सजाने की क्षमता रखते हैं। हाबिल ईश्वर को अपने प्रथम फल का बलिदान अर्पित करता है। उसकी मृत्यु के उपरांत आदम और हेवा को तीसरा पुत्र, सेत प्राप्त हुआ और सेत से ऐनोस उत्पन्न हुआ जिसका अर्थ नश्वर है, “उस समय से लोग प्रभु के नाम की दुहाई देने लगे।”( 4.26) इसके बाद हनोक उत्पन्न हुआ जिसका अर्थ “ईश्वर से साथ चलना” है जिसका अपहरण स्वर्ग की ओर कर लिया गया। (5.22-23)। इसके बाद हम नूह की कहानी सुनते हैं जो एक धर्मी व्यक्ति था वह ईश्वर के साथ चलता था। (6.9) नहू के सामने ईश्वर ने अपनी सृष्टि को नष्ट करने की घोषणा की। (6.7-8)।

प्रार्थना मनुष्य का ईश्वर में पनाह लेना है
इन कहानियों को पढ़ते हुए एक व्यक्ति इस बात का अनुभव करता है कि प्रार्थना मनुष्य का ईश्वर में पनाह लेना है जो जलप्रलय से पहले की स्थिति बयां करती है। यदि गौर किया जाये तो हम स्वयं के बचाव हेतु प्रार्थना करते हैं। यह हमारे लिए महत्वपूर्ण है। “प्रभु, कृपया मुझे बचाईये, मेरी महत्वकांक्षा से, मेरी प्रबल इच्छाओं से, मुझे स्वयं से बचाईये।” धर्मग्रंथ बाईबल के प्रथम पन्नों की प्रार्थनाओं में मानव को शांति से स्थापक स्वरुप पाते हैं, वास्तव में, प्रार्थना जब सत्य को अपने में धारण करती, हिंसा से स्वतंत्र होती और ईश्वर के चेहरे को निहारती है तो यह मानव के हृदय की देख-रेख हेतु अभिमुख होती है। कलीसियाई धर्मशिक्षा इसे कहती है,“प्रार्थना का यह गुण सभी धर्मों के धर्मी लोगों द्वारा जीया जाता है।”(सीसीसी, 2569) प्रार्थना उन स्थानों में फूलों की क्यरियाँ उत्पन्न करती है जहाँ मानव की घृणा मरूभूमि स्वरुप विस्तृत है। प्रार्थना अपने में शक्तिशाली है क्योंकि यह ईश्वर की शक्ति को आकर्षित करती है और ईश्वरीय शक्ति सदैव जीवन का स्रोत बनती है, हमेशा ही। यह ईश्वर का जीवन है जो पुनर्जीवित करता है।

प्रार्थना सदैव हमारे जीवन से जुड़ी है
संत पापा ने कहा कि ईश्वर का आधिपत्य नर और नारियों की श्रृंखला में फैलता जाता जिसे बहुधा नसमझी का शिकार होना पड़ा या दुनिया के हाशिए में ढ़केल दिया जाता है। लेकिन इसके बावजूद ईश्वरीय शक्ति के कारण दुनिया का विकास होता है और हम इसके लिए ईश प्रजा का धन्यवाद अदा करते हैं जो प्रार्थना की शक्ति को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। प्रार्थनामय व्यक्ति, वे कड़ी हैं जो अपने में उपद्रवी नहीं हैं जो अपने को सुर्खियों में नहीं लाते, यद्यपि वे अपने में अति महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे विश्व को विश्वास से प्रोषित करते हैं। संत पापा फ्रांसिस ने एक महत्वपूर्ण सरकारी व्यक्ति की यादों को साझा करते हुए कहा कि उसके हृदय में धर्म के प्रति कोई भी आस्था नहीं थी। लेकिन एक बच्चे के रुप में उसने अपनी दादी को प्रार्थना करते हुए देखता था जो उसके हृदय में अंकित था। जीवन की कठिन परिस्थिति में वह अपने हृदय में अपनी दादी को प्रार्थना करते हुए याद करता और अपनी दादी के शब्दों में प्रार्थना करते हुए येसु ख्रीस्त का अनुभव करता है। प्रार्थना सदैव हमारे जीवन से जुड़ी हुई है। संत पापा ने कहा कि बहुत से नर और नारियाँ जो प्रार्थना करते और केवल प्रार्थना करते हैं, जीवन को बोते हैं।

प्रार्थना जीवन में विकास लाती है
प्रार्थना जीवन को विकसित करती है और इसी कारण हमें बच्चों को छोटी प्रार्थना करने हेतु सीखलाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि यह मेरे लिए दुःखदायी होता है, जब मैं यह देखता हूँ कि बच्चों को क्रूस का चिन्ह बनाने को कहा जाता और वे उसे नहीं जानते हैं। आप उन्होंने अच्छी तरह क्रूस का चिन्ह बनाने हेतु शिक्षा दें, यह पहली प्रार्थना है। आप उन्हें प्रार्थना करना सीखायें वे उसे शायद भूल भी जायें लेकिन यह उनके हृदय में अंकित रहता है क्योंकि यह जीवन का बीज है, ईश्वर से वार्ता का बीज। ईश्वर का मार्ग, इतिहास में मानव को सम्माहित करता है, जहाँ वे मानव के साथ नियमों में नहीं वरन उनके हृदय की कोमलता में निवास करते हैं (एज्रा.36.26)। यह हमें प्रार्थना करने हेतु मदद करता है क्योंकि प्रार्थना ईश्वर के द्वार को खोलती है, हमारे पत्थर दिलों को मानव हृदयों में परिवर्तित करती है। हमें मानवता की जरुरत है और मानवता के संग हम अच्छी तरह प्रार्थना करते हैं।  

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