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ख्रीस्त के पावन शरीर एवं रक्त का महापर्व: येसु हमें अपने आपको दे
संत पापा फ्राँसिस ने कोरपुस ख्रीस्ती या ख्रीस्त के पावन शरीर एवं रक्त के महापर्व के पूर्व, विश्वासियों को एक ट्वीट संदेश भेजकर पर्व के रहस्य पर प्रकाश डाला।
संत पापा फ्राँसिस ने संदेश में लिखा, "येसु पापियों का स्वागत करते और उनके साथ खाते हैं। हर गिरजाघर में, हरेक ख्रीस्तयाग में यही हमारे साथ होता है : येसु हमें अपनी मेज पर खुशी से स्वागत करते हैं जहाँ वे हमें अपने आपको अर्पित करते हैं।"
कोरपुस ख्रीस्ती महापर्व 13वीं शताब्दी से ही मनाया जा रहा है। बेल्जियम में, संत जुलियाना डी कॉर्निलन के रहस्यमय अनुभवों के बाद, 1247 में लीज में परमपावन यूखरिस्त को समर्पित एक स्थानीय पर्व की स्थापना की गई थी।
कई सालों बाद सन् 1263 में बोहेमिया के एक पुरोहित जो परमपावन संस्कार में येसु की सच्ची उपस्थिति पर संदेह कर रहा था, इटली की तीर्थयात्रा में, जब वह बोलसेना शहर में ख्रीस्तयाग अर्पित कर रहा था, तब उसने यूखरिस्त के चमत्कार को महसूस किया, जिसमें यूखरिस्त की प्रार्थना के बाद, जब रोटी तोड़ी गयी तब होस्तिया से रक्त की बूंदें टपकें लगीं। उसके दूसरे साल 1264 में संत पापा अर्बन चौथे ने कोरपुस ख्रीस्ती के पर्व को पूरी कलीसिया के लिए घोषित किया।
कलीसिया का डोगमा
ख्रीस्त के पावन शरीर एवं रक्त के महापर्व द्वारा परमपावन संस्कार में येसु की जीवित उपस्थिति को सम्मानित किया जाता है। सच्ची उपस्थिति की पुष्टि 1215 में चौथी लातेरन महासभा में की गई थी। बाद में 1551 में ट्रेन्ट की महासभा में काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा के इस वाक्यांश का हवाला देते हुए इस सिद्धांत को पक्के तौर पर पुष्ट किया गया-
"क्योंकि ख्रीस्त हमारे मुक्तिदाता ने कहा है कि यह सचमुच उनका शरीर है जिसको उन्होंने रोटी के रूप में अर्पित किया है, यह हमेशा से ईश्वर की कलीसिया का दृढ़ विश्वास रहा है और यह पवित्र महासभा पुनः घोषित करता है कि रोटी और दाखरस के कॉन्सेक्रेशन में रोटी का सम्पूर्ण तत्व प्रभु हमारे ख्रीस्त के शरीर में बदल जाता है और दाखरस ख्रीस्त के रक्त में बदल जाता है।"
काथलिक कलीसिया में इस परिवर्तन को "मूल तत्व परिवर्तन" (ट्रांससबस्टंसियेशन) कहा जाता है। (CCC 1376)
कोरपुस ख्रीस्ती महापर्व के अवसर पर 14 जून को संत पापा फ्राँसिस, संत पेत्रुस महागिरजाघर के संत पेत्रुस के आसन की वेदी पर ख्रीस्तयाग अर्पित करेंगे। ख्रीस्तयाग के अंत में पावन संस्कार की आराधना होगी एवं उसकी आशीष (बेनेडिक्शन) दी जायेगी।
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