बच्चे हमारी सुनते कहाँ है!!

Father and son using tablet

दिल्ली मेट्रो ट्रैन में एक महिला अपने आठ साल के बच्चे के साथ बैठी किताबे पढ़ रही थी , और वह बच्चा भी किताब पढ़ रहा था। तभी वहां उपस्थित एक सज्जन में उस महिला से पूछा इस आधुनिक युग में भी आपका बच्चा किताब पढ़ रहा है, जबकि आजकल के बच्चे पूरा समय स्मार्टफोन में लगे रहते है। आपने कैसे अपने बच्चे के हाथ में स्मार्टफोन की जगह किताब दे दी ? तो उस महिला ने बड़े इत्मीनान से जवाब दिया- "आज कल के बच्चे हमारी सुनते कहाँ है ? वो तो बस हमारी नक़ल करते है।"

जी हां साथियो ! उस महिला ने बिलकुल ठीक ही कहा की - आज कल के बच्चे हमारी सुनते कहाँ है! वो तो बस हमारी नक़ल करते है। आज के इस दौर में हम बच्चो के बिगड़ने पर टेक्नोलॉजी , मोबाइल फ़ोन , इंटरनेट आदि को दोष देते है।  लेकिन इन सब चीज़ो में इन सबका कोई दोष नहीं है। क्योंकि बच्चे हमे देखकर सीखते है। या यूँ कहें की वो सिर्फ हमारी नक़ल करते है। हम जैसे कार्य करेंगे हमारे बच्चे भी वो ही सीखेंगे। बच्चे दिन के छः घंटे स्कूल में रहते है। और बाकि समय समय माता पिता या परिवार वालो के साथ बिताते है, और उन्ही से सबकुछ सीखते है। बच्चे का पहला स्कूल उसका अपना घर ही है, और घर के माहौल का ही बच्चे पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है। माता पिता बच्चे को जो संस्कार देंगे बच्चा वो ही सीखेगा। धर्मग्रंथ हमे बतलाता है की- “फल से पेड़ की पहचान होती है।’’ माता पिता एवं पालको को इस बात का ध्यान देना चाहिए की वो किस प्रकार का उदाहरण अपने बच्चो से सामने रख रहे है? आपके द्वारा किया गया प्रत्येक कार्य आपके बच्चो के लिए एक उदाहरण होगा। क्योंकि बच्चे बड़ो को देखकर ही सीखते है। यदि हम ही पूरा दिन सोशल मीडिया एवं स्मार्टफोन के साथ बिता रहे है तो हमारा बच्चा भी वही कार्य करेगा। आप अपने बच्चे को जैसा बनाना चाहते है, पहले आप वैसे बनिए। यदि आप चाहते है कि आपका बच्चा लोगो की इज्जत करे तो सर्वप्रथम आपको लोगो की इज्जत करना होगा क्योंकि बच्चा आपको देखकर ही सीखेगा। सिर्फ अपने शब्दों से नहीं बल्कि अपने कार्यो के द्वारा अपने बच्चो  को शिक्षा दे। क्योंकि मनुष्य जो सुनता है उसे भुला देता है लेकिन जिसे देखता है उसे सदा स्मरण रखता है। इसलिये शब्दों के द्वारा नहीं बल्किकार्यो के द्वारा उन्हें सिखाये।

ईश्वर ने हमे मौखिक रूप से आज्ञा दी, और हमने उसे भुला दिया और पाप किया। तभी ईश्वर ने मूसा को पत्थर पर दस आज्ञाएँ अंकित करने को कहा। ताकि उस आज्ञा का स्मरण सदैव हमारे बीच में बना रहे। और अंत में प्रभु येशु ने आपने शिष्यों के पाँव धोकर एवं क्रूस पर मरकर सेवा भाव सिखाया, ताकि उसका स्मरण हमारे हृदयो में सदा बना रहे।

टेक्नोलॉजी हमारे काम आसान करने के लिए है, हर बात में टेक्नोलॉजी को दोष देना सही नहीं होगा। टेक्नोलॉजी का उपयोग करना हमारे हाथ में है। हम जैसा चाहे उसका उपयोग कर सकते है। अच्छा या बुरा ! दोनों तरह से! यह हम पर निर्भर करता है। परिवर्तन तो संसार का नियम है। माँ पुकारने वाला बेटा अब मम्मी बोलता है, चिट्ठी भेजने वाली बेटी अब वीडियो कॉलिंग करती है। भाषा बदल गयी है लेकिन भावनाएं कभी नहीं बदलती है। वक्त बदला, दुरी बढ़ गयी, लेकिन प्यार के रिश्ते वही के वही  है। यह कभी नहीं बदलेंगे। इसलिए अपने बच्चो के मन में अच्छाई की भावना उत्पन्न करे।क्योंकि यही अच्छाई  की भावना भविष्य में उसे एक अच्छा व्यक्ति बनने में मदद करेगी।

बच्चे माता पिता की छाया (परछाई ) होते है ,लोग बच्चो को देखकर उनकी परवरिश एवं पारिवारिक माहौल के बारे में आसानी से बता सकते है। बच्चे अपने परिवार का प्रतिनिधित्व करते है। तो फिर यह हमारी जिम्मेदारी बनती है की हम अपने बच्चो को अच्छी परवरिश दे। हम ईश्वर के प्रतिरूप है। और हम ईश्वर का प्रतिनिधित्व कर रहे है , हमारी भाषा, बोली, व्यवहार, रहन-सहन आदि भी ईश्वर के सामान होना चाहिए। सर्वप्रथम हमे अपने स्वभाव को ईश्वर के स्वभाव के अनुरूप बनाना होगा तभी हम सही मायनो में ईश्वर के सदृश्य बन पाएंगे।

 

शुक्रिया!

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