शांति की दूत :मदर टेरेसा

मदर टेरेसामदर टेरेसा

मदर टेरेसा को 1979 में आज ही के दिन नोबेल शांति पुरस्कार मिला था।मदर टेरेसा ने गरीबों और बीमारी से पीड़ित रोगियों के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था। मदर टेरेसा दुनिया के लिए शांति की दूत थीं। 45 सालों तक गरीब, बीमार, अनाथ और मरते हुए लोगों की इन्होंने मदद की और साथ ही मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी के प्रसार का भी मार्ग प्रशस्त किया। 26 अगस्त 1910 को अल्बेनिया के स्काप्जे में इनका जन्म हुआ। मदर टेरेसा का वास्तविक नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ था । सिर्फ 12 साल की थी, तब अनुभव हो गया था कि सारा जीवन मानव सेवा में लगाएंगी। 18 साल की उम्र में सिस्टर्स ऑफ लोरेटो में शामिल होने का फैसला लिया। आयरलैंड जाकर अंग्रेजी सीखी। 1929 में कोलकाता में लोरेटो कान्वेंट पहुंचीं। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद बंगाल में भीषण अकाल पड़ा। तब मदर टेरेसा ने गरीबों की सेवा शुरू की।उन्होंने अक्टूबर 1950 में वेटिकन से मिशनरी ऑफ चैरिटी बनाई। 1951 में भारतीय नागरिकता ली। उनकी मौत के वक्त यानी 1997 तक 120 देशों में उनकी मिशनरी 594 आश्रमों में और 3480 सिस्टर के रूप में फैल चुकी थीं। मदर टेरेसा को मानवता की सेवा के लिए भारत सरकार ने पहले 1962 में पद्मश्री और बाद में 1980 में भारत रत्न से सम्मानित किया। मानव सेवा और गरीबों की देखभाल करने वाली मदर टेरेसा को पोप जॉन पॉल द्वितीय ने 19 अक्टूबर 2003 को रोम में धन्य घोषित किया। 15 मार्च 2016 को पोप फ्रांसिस ने कार्डेना परिषद में संत की उपाधि देने की घोषणा की। मदर टेरेसा के विचारों ने समाज में शांति और प्रेम बनाए रखने का काम किया है।

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