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सिस्टम की लापरवाही के कारण एक गर्भवती महिला और उसके पेट में पल रहे बच्चे की मौत
एक मजदूर अपनी गर्भवती पत्नी को लेकर चार दिन तक दो शहरों के सात अस्पतालों में भटकता रहा, लेकिन समय पर इलाज न मिलने के कारण उसकी पत्नी और गर्भ में पल रहे बच्चे की मौत हो गई।
उत्तर प्रदेश निवासी 22 वर्षीय विक्की जालंधर जिले के आदमपुर में रहकर ईंट भट्ठे में मजदूरी करता है। विक्की की 22 वर्षीय पत्नी सीमा गर्भवती थी। 28 मई को उसे अचानक दर्द हुआ। विक्की सीमा को लेकर आदमपुर के सरकारी अस्पताल पहुंचा। डॉक्टरों ने जालंधर रेफर कर दिया। डॉक्टरों ने इलाज से पहले सीमा का कोरोना टेस्ट शुरू कर दिया, जिसमें काफी समय लग गया। इलाज शुरू होने से पहले ही गर्भ में ही बच्चे की मौत हो गई।
सीमा की हालत बिगड़ती देख जालंधर से डॉक्टरों ने उसे अमृतसर रेफर कर दिया। यहां भी डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए। इसके बाद विक्की पत्नी को लेकर जालंधर लौट आया। यहां उसने सीमा को सिविल अस्पतला में भर्ती कराया, लेकिन थोड़ी ही देर बाद उसने दम तोड़ दिया।
डॉक्टरों की लापरवाही सामने आने के बाद जिला प्रशासन ने हाईलेवल इंक्वायरी के आदेश दिए हैं। डीसी का कहना है कि यह एक गंभीर मामला है। इसकी जांच स्मार्ट सिटी की सीईओ, आईएएस शीना अग्रवाल को सौंपी गई है। एक हफ्ते में जांच पूरी करने को कहा गया है।
मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरों ने सीमा को हाथ तक नहीं लगाया
विक्की का कहना है कि 5 मई को जब उसने जच्चा बच्चे का अल्ट्रासाउंड कराया था, तब सीमा की स्थिति सामान्य थी। उसका कहना है कि अमृतसर में उनकी पत्नी को दो दिनों तक भर्ती नहीं किया गया, वहां के डॉक्टरों ने ठीक से इलाज नहीं किया। विक्की का कहना है कि उसने अपनी पत्नी को बचाने के लिए 4 निजी अस्पतालों में भी दिखाया, लेकिन पैसों की कमी के चलते वह प्राइवेट अस्पताल में इलाज नहीं करा पाया।
सिविल सर्जन ने कहा- इलाज में नहीं हुई लापरवाही
सिविल सर्जन डॉ. गुरिंदर चावला का कहना है कि जब विक्की अपनी पत्नी को यहां लेकर आया था तो इलाज में कोई देरी नहीं की गई, उसकी पत्नी के पेट में बच्चा पहले से ही मर चुका था। उसका यहां पर बेहतर ट्रीटमेंट किया गया। हालत बिगड़ने पर उसे किसी अच्छे अस्पताल में ले जाने की सलाह दी गई, जिस पर वह मेडिकल कालेज अमृतसर गया। जब वह फिर वापस आया तो पूछा गया तो उसने बताया कि मेडिकल कॉलेज में अच्छा इलाज नहीं मिलने से वह यहां आ गया।
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