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मुंबई में चार मंज़िला इमारत के गिरने का ज़िम्मेदार कौन?
मुंबई के डोंगरी इलाक़े में मंगलवार को एक चार मंज़िला केसरभाई इमारत ढह गयी जिसमें 40 से अधिक लोगों के दबे होने की आशंका है. स्थानीय अधिकारियों ने अभी तक 12 लोगों की मौत की पुष्टि की है।
डोंगरी के इसी इलाक़े में पीर मोहम्मद और उनका परिवार बीते कई सालों से रह रहा है।
मंगलवार को जब यह इमारत गिरी तब पीर मोहम्मद वहीं मौजूद थे. वो मदद करने के लिए तुरंत भागे भी थे. इस हादसे में उनके परिवार के दो सदस्य भी घायल हुए हैं।
पीर मोहम्मद केसरभाई बिल्डिंग गिरने के हादसे के बारे में बताते हैं, "मैं पास में ही रहता हूं. जब बिल्डिंग गिरी तो बहुत तेज़ आवाज़ आयी. मैं बाहर भाग कर आया तो देखा बहुत से लोग मलबे के नीचे दबे पड़े हैं. हमने कोशिश करके कुछ को बाहर निकाला. हम वहां से चार लोगों को ही बाहर निकाल पाए, कई लोग उस मलबे में दबे रह गए थे। "
इस हादसे में कुछ लोगों ने अपने परिजनों को खोया तो कुछ लोगों की मौत हो गई।
मुंबई में हुई हर घटना के बाद जो तस्वीर बनती है वही तस्वीर इस हादसे के बाद भी बनी. लेकिन सवाल ये उठता है कि इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है?
क्या हादसे को रोका जा सकता था?
मंबुई में अन्य कार्यों जैसे सड़कों या पुलों के विकास की तरह इमारतों की ज़िम्मेदारी भी अलग-अलग लोगों के कंधों पर होती है. उसमें रहने वाले, निजी मालिक, महाराष्ट्र आवास एवं क्षेत्र विकास प्राधिकरण (एमएचएडीए) और नगर निगम, सबकी ज़िम्मेदारी होती है।
जो इमारत गिरी है वो महाराष्ट्र आवास एवं क्षेत्र विकास प्राधिकरण (एमएचएडीए) के तहत आती है लेकिन जो हिस्सा गिरा वो अवैध था. चीफ़ पीआरओ वैशाली गडपले ने इसकी पुष्टि की।
एमएचएडीए ने यहां रहने वालों को 2017 में ही एक नोटिस भेज कर जगह खाली करने के लिए कहा था, एएनआई ने एमएचएडीए के उस नोटिस को छापा था।
एमएचएडीए का कहना है कि केसरभाई बिल्डिंग का मूल रूप से निर्मित हिस्सा अब भी खड़ा है । बीबीसी मराठी की इस संवाददाता ने अपने कैमरे में बिल्डिंग के उस हिस्से की तस्वीर कैद की है जिसका कुछ हिस्सा मंगलवार को ढह गया।
अगर ये इमारत एमएचएडीए के भीतर नहीं आती है तो इसके अवैध हिस्से का ख़तरनाक निर्माण कब और कैसे शुरू हुआ? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका अब तक कोई जवाब नहीं मिल पाया है.
पुनर्वास का मुद्दा
मुंबई में सभी ऐसी घटना के बाद त्वरित जांच की जाती है और जो दोषी होते हैं उन पर कार्रवाई भी की जाती है. लेकिन सवाल ये है कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कोई ठोस प्रयास क्यों नहीं किये जाते?
डोंगरी के इस इलाक़े में कई संकरी गलियां है. बहुत सी इमारतें 80-90 साल पुरानी हैं, तो कुछ 100 साल पार कर चुकी हैं. इनमें से कई इमारतें ख़तरनाक स्थिति में है. लेकिन, चेतावनी के बाद भी वहां रहने वाले लोग उन्हीं इमारतों में रहते हैं।
एमएचएडीए के नोटिस के बारे में पीर मोहम्मद कहते हैं, "एमएचएडीए ने नोटिस भेज कर हमें जगह ख़ाली करने के लिए कहा था लेकिन हमें रहने के लिए कोई दूसरी जगह चाहिए होगी. हमें कुछ सहायता चाहिए, वरना अपने परिवार के साथ हम कहां जाएंगे? इसे लेकर हर दिन बैठकें होती थीं लेकिन हम यहां से कहां जा सकते हैं?"
विखेपाटील कहते हैं, "यह मुंबई के प्रमुख जगहों में से एक है. लोग यहां पीढ़ियों से रह रहे हैं. लिहाज़ा वो इन इमारतों में अपने घरों को छोड़ कर जाने के लिए तैयार नहीं हैं. इसलिए पुरानी इमारतों से पुनर्वास और पुनर्विकास के मुद्दे धरे के धरे रह जाते हैं। "
"बुज़ुर्ग लोग यहां तीन-चार पीढ़ियों से रह रहे हैं तो वो यहां से जाने के लिए तैयार ही नहीं होते. मैंने मुख्यमंत्री से निवेदन किया है कि क्या मुंबई पोर्ट ट्रस्ट की कुछ एकड़ ज़मीन हमें दी जा सकती है, ताकि हम वहां ट्रांजिट कैंप लगा सकें. अगर ऐसा होता है तो लोगों को ज़्यादा दूर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी. वे अपनी नौकरियां और पढ़ाई यहां रह कर ही जारी रख सकते हैं। "
लापरवाही क्यों हुई?
टाउन प्लानर और आर्किटेक्ट हर्षद भाटिया ने बीबीसी को बताया, "दक्षिण मुंबई के कई इलाक़ों में इमारतों की हालत डोंगरी के इमारत जैसी ही है. इनमें से कई इमारतों को विरासत का दर्जा भी दे दिया गया है। लेकिन, उनके पुनर्विकास और रखरखाव के लिए कुछ ज़रूर किया जाना चाहिए। "
वे कहते हैं, "इंसान की बनाई हुई चीज़ों का ध्यान भी इंसान को ही रखना चाहिए. किसी भी इमारत का रखरखाव मौसम, उसके अवमूल्यन, उसके इस्तेमाल में बदलाव और वित्तीय स्रोतों पर निर्भर होता है. मुंबई में किराया नियंत्रण अधिनियम लागू होने के बाद मालिकों को इमारतों से बड़ी आय मिलना बंद हो गया. इसलिए इन इमारतों का रखरखाव करना असंभव सा हो गया। "
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