बाल सुरक्षा नीति लागू करने के लिए भारत के धर्माध्यक्षों से अपील

जर्मनी बाल यौन दुराचार

नाबालिगों एवं कमजोर वयस्कों की रक्षा हेतु गठित परमधर्मपीठीय समिति की सदस्य सिस्टर एरिना गोनसेल्स ने भारत के धर्माध्यक्षों से अपील की है कि वे अपनी देखरेख में सभी संस्थानों में बाल सुरक्षा नीति को अनिवार्य रूप से लागू करें।येसु एवं मरियम को समर्पित धर्मसमाज (आर.जे.एम) की सिस्टर एरिना चाहती हैं कि धर्माध्यक्ष, देश के सभी धर्मप्रांतों के पुरोहितों एवं धर्मसमाजियों को नीति के पालन हेतु प्रेरित करने के लिए एक प्रणाली गठित करें।वाटिकन में कार्यरत धर्मबहन ने कहा, "प्रशिक्षण केंद्रों में गुरूकुछ छात्रों एवं धर्मसमाज के उम्मीदवारों की मानवीय प्रशिक्षण को महत्व दिया जाना चाहिए ताकि पुरोहितों, गुरूकुल छात्रों और धर्मसमाजी आवासों में अश्‍लील साहित्य की चीजों को रोका जाए।"सिस्टर एरिना ने 17 फरवरी को भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन की 34वीं आमसभा को सम्बोधित किया। उन्होंने कुछ ऐसे मामलों को प्रस्तुत किया जिनमें यौन दुराचार से पीड़ित लोगों को लम्बे समय तक इसका दुष्प्रभाव झेलना पड़ रहा है। उन्होंने उन दुष्प्रभावों को भावनात्मक और व्यवहारिक समस्या, असामान्य यौन व्यवहार, मानसिक विकार, आत्महत्या की प्रवृत्ति, नशीली दवाओं के प्रयोग और दर्दनाक तनाव विकार के रूप में सूचीबद्ध किया।वाटिकन में सेवा देने के पूर्व सिस्टर एरिना मुम्बई महाधर्मप्रांत में बल सुरक्षा हेतु विशेषज्ञ दल के सदस्य थे। उनके अनुसार स्कूलों में और यहां तक कि अनाथालयों में भी नाबालिगों के साथ दुर्व्यवहार होता है।मुम्बई महाधर्मप्रांत ने 2016 में नाबालिगों की सुरक्षा हेतु समिति का गठन किया था। जिसका उद्देश्य था, 2012 के यौन अपराध अधिनियम के तहत बाल सुरक्षा एवं 2013 के कार्यस्थल अधिनियम में महिलाओं के यौन उत्पीड़न पर जागृत लाना।वाटिकन में अपने कार्य की शुरूआत करते हुए धर्मबहन ने कहा था कि उनका मिशन है जागृति लाकर, बच्चों एवं कमजोर वयस्कों की रक्षा करना एवं हिंसा दूर करना। उन्होंने कहा था कि काथलिक कलीसिया सचमुच बच्चों की मदद करना चाहती है और हमें नाबालिगों की सुरक्षा हेतु हरसंभव प्रयास करना चाहिए।सिस्टर एरिना ने आमसभा में भाग ले रहे धर्माध्यक्षों से आग्रह किया कि उन्हें नाबालिगों एवं दुर्बल वयस्कों पर हो रहे यौन दुराचार को रोकना चाहिए।उन्होंने उन्हें यौन शोषण के प्रति शून्य सहिष्णुता अपनाने की सलाह दी, उन्हें अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने, यौन दुराचार से पीड़ितों को सहानुभूति पूर्वक सुनने एवं उनकी चिंता करने, उसे रोकने का उपाय करने, आवश्यक बुनियादी ढांचे के साथ उपयुक्त प्रणाली का गठन करने, यौन शोषण के मामलों के निवारण के लिए समयबद्ध प्रक्रिया अपनाने और सिविल अधिकारियों द्वारा अभियोजन पक्ष से दुराचार के किसी मामले को नहीं ढंकने का परामर्श दिया।भारतीय धर्माध्यक्षों ने दावा किया था कि वे याजक यौन दुराचार मामलों के लिए वाटिकन द्वारा पुष्टिकृत मार्गदर्शन का अनुपालन कर रहे हैं। भारतीय धर्माध्यक्षों का दस्तावेज़, "नाबालिगों के यौन शोषण से जुड़े मामलों से निपटने के लिए प्रक्रियात्मक मानदंड," 1 अक्टूबर, 2015 को जारी किया गया था और 1 नवंबर 2015 को प्रभावी हुआ था।दो साल बाद, धर्माध्यक्षीय सम्मेलन ने पुरोहितों द्वारा नाबालिगों के दुर्व्यवहार से निपटने के लिए कड़े मानक जारी किए। मानक निर्धारित है कि ऐसे मामलों से निपटने के लिए धर्मप्रांतीय और धर्मसमाजी समुदायों में समितियाँ गठित की जाएँ।संत पापा फ्रांसिस के आह्वान पर पिछले साल 21-24 फरवरी को वाटिकन में, नाबालिगों की रक्षा के लिए विशेष सम्मेलन का आयोजन किया गया था।

 

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