निर्मल हृदय ईश्वरीय दर्शन के योग्य, संत पापा

संत पापा फ्राँसिससंत पापा फ्राँसिस

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह मेें ईश धन्य वचन पर अपनी धर्मशिक्षा माला देते हुए निर्मल हृदय होने का अर्थ स्पष्ट किया। संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन प्रेरितिक निवास के पुस्तकालय से सभों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एव बहनों सुप्रभात आज हम छवें धन्य वचन का पाठ करेंगे जो निर्मल हृदय वालों के बारे में कहता है जो ईश्वर के दर्शन करेंगे।

हमारी अभिलाषा
एक स्तोत्र हमें कहता है, “प्रभु मेरी पुकार पर ध्यान दे। मुझ पर दया कर औऱ मेरी सुन। यही मेरे हृदय की अभिलाषा रही कि मैं तेरे दर्शन करूँ।” (27. 8-9) यहाँ हम ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत संबंध की प्यास का जिक्र पाते हैं जिसकी चर्चा योब का ग्रंथ भी हमारे लिए करता है जो एक निष्ठापूर्ण संबंध की निशानी है। योब का ग्रंथ कहता है, “मैंने दूसरों से तेरी चर्चा सुनी थी। अब मैंने तुझे अपनी आंखों से देखा है।” (योब. 42.5) संत पापा ने कहा, “बहुत बार मैं सोचता हूँ हमारे जीवन की राह, ईश्वर से हमारा संबंध ऐसा ही है। हम दूसरों से ईश्वर के बारे में सुनते हैं लेकिन उनका व्यक्तिगत ज्ञान और अनुभव हमें जीवन में सदा आगे ले चलता है, यह तब होता है जब हम उनके प्रति विश्वासी बने रहते हैं...यह हमारे आत्मा की परिपक्वता है।”

ईश्वर संग हमारा संबंध
संत पापा ने कहा कि हम कैसे इस अंतरंग संबंध में प्रवेश कर सकते हैंॽ इस संदर्भ में, उदाहरण के लिए हम उन शिष्यों के बारे में सोच सकते हैं जो एम्माउस की राह में थे जिनके साथ येसु चल रहे थे, “लेकिन उनकी आंखें उन्हें पहचानने में असमर्थ थीं।”(लूका.24.16) येसु ख्रीस्त उनकी यात्रा के अंत में उनकी आंखों को खोलते हैं जो रोटी तोड़ने में अपनी चरम पर पहुंचता है। येसु उन्हें फटकारते हैं, “निर्बुद्धियो, नबियों ने जो कुछ कहा है, तुम उस पर विश्वास करने में कितने मंदमति हो।” (24.25) हम उनके हृदय की मंदमति और मूर्खता को देखते हैं जो उनमें अंधेपन को व्यक्त करता है। “अपने हृदय की मूर्खता और विश्वास की कमी के कारण हम चीजों को नहीं देख पाते हैं। हमारे जीवन की चीजें धूमिल हो जाती हैं...।”

अपने में प्रवेश कर ईश्वर को देखें
यहां हम विवेकपूर्ण आनंद को देखते हैं, ईश्वर को देखने हेतु हमें उनके लिए एक स्थान तैयार करते हुए अपने जीवन में प्रवेश करने की जरुरत है जैसे कि संत अगुस्टीन कहते हैं, “ईश्वर मुझे में मुझसे अधिक अंतरंग हैं” ("इंतेरियोरे इंतीमो मेयो”, कोन्फेसियोनी III, 6.11) संत पापा ने कहा कि ईश्वर को देखने हेतु हमें अपने चश्मे या दृष्टिकोण बदले की जरुरत नहीं है और न ही हमें ईशशस्त्रियों को जो हमें जीवन की राह बतलाते और ईश ज्ञान की शिक्षा देते हैं। हमें अपने हृदय के झूठेपन से अपने को बरी करने की जरुरत है जो हमारे लिए एक अति विशिष्ट मार्ग बनता है।

हमारा शुत्र हमारे हृदय में
यह हमारे लिए एक निर्णायक परिपक्वता है जहाँ हम अपने में यह अनुभव करते हैं कि हमारा सबसे बड़ा शत्रु हमारे हृदय में छिपा हुआ है। हमारा संघर्ष हमारे आंतरिक झूठेपन से होता है जो हमारे लिए पाप उत्पन्न करता है। क्योंकि यह पाप है जो हमारे दृष्टिकोण को बदल देता, जिसके फलस्वरुप हम चीजों का मूल्याकंन सही रुप में नहीं करते, उन्हें वैसे नहीं देखते जैसे कि वे हैं या वे वैसे नहीं हैं।

हृदय के निर्मल होने का अर्थ
संत पापा ने कहा कि इसीलिए यह जरुरी है कि हम “हृदय के निर्मल” होने के अर्थ को समझें। इसे समझने हेतु हमें धर्मग्रंथ के उन बातों को याद करने की जरुरत है जो हमें कहते हैं कि हृदय अपने में केवल अनुभवों को वहन नहीं करता है वरन यह अपने में मानव को भी धारण करता है, अपने अंतस्थल में जहाँ व्यक्ति स्वयं अपने को वहन करता है। धर्मग्रंथ के आधार पर यह हमारी मानसिकता है।

हमारी आंखें हमारे दृष्टिकोण
संत मत्ती रचित सुसमाचार हमें कहता है,“यदि तुम्हारी आंख बीमार है, तो तुम्हारा सारा शरीर अंधकारमय होगा। इसीलिए जो ज्योति तुममें है, यदि वह अंधकार है तो यह कितना घोर अंधकार होगा।” (मत्ती. 6.23) यह “ज्योति” हृदय की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट कराती है जो हमारे दृष्टिकोण से संबंधित है जिसके फलस्वरुप हम चीजों का अवलोकन करते हैं।

निर्मल हृदय ईश्वर का मिलन स्थल
संत पापा ने कहा कि “निर्मल” हृदय का अर्थ क्या हैॽ यह वह हृदय है जो ईश्वरीय उपस्थिति में जीवनयापन करता है। यह इस बात से वाकिफ होना है कि हृदय के लिए क्या जरूरी है जो हमें ईश्वर से संयुक्त रहने में मदद करता है। इस तरह हम अपने सरल जीवन के द्वारा ईश्वर से “एकीकृत” रहते हैं।

निर्मल हृदय इस भांति एक प्रक्रिया है जिसके फलस्वरुप हम अपने में स्वतंत्रता और मुक्ति को पाते हैं। निर्मल हृदय की उत्पति यूं ही नहीं होती वरन यह आंतरिक जीवन में सरलता की अनुभूति है, अपने में बुराइयों का परित्याग है जिसे धर्मग्रंथ बाईबल हृदय का खतना निरूपित करता है (विधि,10.16.30.6, एज्रा.44.9. येरि.4.4)।

यह आंतरिक शुद्धिकारण हमें अपने जीवन में बुराई को जानने और समझने में निहित है जिसकी शिक्षा हमें पवित्र आत्मा प्रदान करते हैं। पापों के कारण हमारा हृदय सही बातों और चीजों को नहीं देख पाता है। लेकिन पवित्र आत्मा हमें अपनी ज्योति से भर देते और हमारा मार्ग दर्शन करते हैं। अपने हृदय की इस यात्रा द्वारा हम ईश्वर के दर्शन करते हैं।

दिव्य दर्शन के दो आयाम
इस दिव्य दर्शन में हम ईश्वरीय मिलन के दो आयामों को पाते हैं जो सभी धन्य वचनों में सम्माहित हैं- पहला यह हमें स्वर्गीय आनंद की ओर अग्रसर करता है जिसकी ओर हम सभी यात्रा कर रहे हैं। वहीं दूसरा आयाम, ईश्वर को देखने का अर्थ हमारे लिए स्पष्ट करता है कि हम अपने जीवन की घटनाओं में ईश्वरीय योजना को समझने का प्रयास करें, उनकी उपस्थिति को संस्कारों में देखें, ईश्वर को अपने भाई-बहनों में देखें विशेषकर जो दुःखद परिस्थिति में हैं जिसके द्वारा ईश्वर हमें अपने को प्रकट करते हैं।(सीसीसी. 2519)

पवित्र आत्मा के कार्य
यह धन्य वचन इसके पहले आये हुए धन्य वचन का फल है यदि हम अपने जीवन में अच्छे कार्य के भूखे और प्यासे हैं साथ ही हम करुणा में अपना जीवन संचालित करते हैं, तो हमारे लिए मुक्ति की एक यात्रा शुरू होती है जो हममें बनी रही औऱ हमें स्वर्ग की ओर अग्रसर करती है। संत पापा ने कहा कि यह एक गंभीर कार्य है, वह कार्य जिसे पवित्र आत्मा हमारे जीवन में तब सम्पादित करते हैं जब हम उन्हें एक स्थान प्रदान करते हैं। हम पवित्र आत्मा हेतु खुला रहते हैं, क्योंकि अपने जीवन की मुसीबतों और शुद्धिकारण के क्षणों में हम कहते हैं कि ये ईश्वर के कार्य हैं- ईश्वर हमें पवित्र आत्मा में अनन्त खुशी की ओर, शांति में ले चलते हैं जहाँ हम भय का अनुभव नहीं करते हैं। हम अपने हृदय के द्वार को पवित्र आत्मा हेतु खुला रखें जिससे वे हमें शुद्ध करें और पूर्ण खुशी में चे चलें।
इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभों के संग हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सभों को अपने प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

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