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चक्रवात अम्फन से सबसे अधिक प्रभावित बरोईपुर धर्मप्रांत
चक्रवाती तूफान अम्फन ने लाखों लोगों को बेघर कर दिया हैं तथा उनकी फसल एवं जीविका को नष्ट कर दिया है। भारत के तटीय क्षेत्र में करीब 86 लोगों को मौत का शिकार होना पड़ा है। 20 मई को आई इस प्राकृतिक आपदा के 5 दिनों बाद भी गाँव के लोग अपने घरों से दूर हैं, उनके पास आवागमन के कोई साधन नहीं हैं, बिजली और संचार की सुविधाएँ भी ठप हो गई हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार लाखों घर ध्वस्त हो गये हैं, 1 लाख हेक्टर जमीन की फसल बर्बाद हो चुकी है और 1 मिलियन से अधिक पालतू जानवार आंधी से मर गये हैं।
पश्चिम बंगाल के बारोईपुर धर्मप्रांत के समाज सेवा विभाग के निदेशक फादर परिमल कंजी ने कहा, "यह केवल शुरूआती आकलन है, क्षति इससे भी अधिक हो सकती है।" फादर ने कहा कि हमारे लोगों ने सब कुछ खो दिया है। चक्रवात ने 24 पल्लियों के लोगों के घर, फसल और जीविका को नष्ट कर दिया है। यहाँ तक कि गिरजाघर भी क्षतिग्रस्त हो गये हैं। ये पल्लीवासी गरीब हैं अपनी जीविका मुख्य रूप से मछली पकड़ने, खेती-बारी, मधुमक्खी पालन और जंगल से प्राप्त अन्य संसाधनों से जुड़ी है।"
पश्चिम बंगाल सरकार ने कहा कि चक्रवात ने राज्य के 9 जिलों में 13 मिलियन लोगों को प्रभावित किया है जो कुल 90 मिलियन आबादी के साथ 23 जिलों में विभाजित है। फादर कंजी ने सभी भारतीयों से अपील की है कि वे प्रभावित लोगों को सामान्य जीवन में लौटने हेतु उदारतापूर्वक मदद करें। भारत की काथलिक कलीसिया अपनी काथलिक राहत सेवा एवं कारितास इंडिया के द्वारा स्थानीय धर्मप्रांतों में चक्रवात पीड़ितों की मदद करना शुरू कर चुकी है।
कोलकत्ता महाधर्मप्रांत द्वारा पीड़ितों की मदद
कोलकत्ता महाधर्मप्रांत के समाज सेवा विभाग के निदेशक फादर फ्रेंकलिन मेनेजेस ने कहा, "हमने कमजोर क्षेत्र में करीब 2000 लोगों को भोजन देना शुरू कर दिया है। शहर में अनेक लोग भूखे और प्यासे हैं जबकि पेय जल का भी अभाव है। बाढ़ के पानी ने खुले कुँओं और अन्य जल स्रोतों को दूषित कर दिया है तथा बिजली के अभाव के कारण बोरिंग कुँआ से पानी खींचना भी असंभव हो गया है।
कोलकत्ता के कई गिरजाघरों, कॉन्वेंट और अन्य काथलिक संस्थानों को भी भारी नुकसान हुआ है। धर्मप्रांत भोजन जमा करने की कोशिश कर रहा है ताकि भूखे लोगों को भोजन दिया जा सकते। फादर ने कहा, "हम कम से कम 10,000 लोगों को भोजन देना चाहते हैं किन्तु जब तक हम सामान्य स्थिति में नहीं आ जाते इसके लिए समय लगेगा। सड़कों पर पेड़ के गिर जाने से रास्ते बंद हो गये हैं जिसके कारण सरकारी और कलीसिया की ओर से की जाने वाली मदद को सुदूर गाँवों तक पहुँचाने में बहुत कठिनाई हो रही है।"
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