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कोरोना: डॉक्टरों की दुविधा, किसका इलाज करें किसका नहीं?
अगर आप कोरोना वायरस के मरीज़ों वाले किसी अस्पताल में जाएं, तो वहां का मंज़र आपको हिला देता है. अस्पतालों में बिस्तर, वेंटिलेटर और दवाएं नहीं हैं। मरीज़ों की भरमार है। आख़िरी सांस तक किसी भी मरीज़ की जान बचाने की कोशिश करना हर डॉक्टर का धर्म है।
लेकिन इन दिनों डॉक्टरों को एक मुश्किल फ़ैसला करना पड़ रहा है. अस्पताल के सीमित संसाधनों पर किस मरीज़ को तरज़ीह दें. यानी किसे भर्ती करें और किसे जाने दें।
ऐसा सख़्त फ़ैसला करना किसी भी डॉक्टर के लिए आसान नहीं हो सकता. हालांकि डॉक्टर ये फ़ैसला न्यू इंग्लैंड जरनल ऑफ़ मेडिसिन (NEJM) की तयशुदा गाइडलाइंस के तहत ही ले रहे हैं. फिर भी कुछ मरीज़ों को जाने देने के डॉक्टरों के इस फ़ैसले की काफ़ी आलोचना हो रही है।
23 मार्च 2020 में सारी दुनिया के जाने-माने डॉक्टरों और वैज्ञानिकों ने इस बारे में नैतिक दिशा निर्देश जारी किए थे. ये दिशा निर्देश न्यू इंग्लैंड जरनल ऑफ़ मेडिसिन में प्रकाशित हुए थे।
इसके तहत बताया गया था कि इस महामारी के दौरान कैसे मेडिकल संसाधनों का किफ़ायत से इस्तेमाल किया जाए। किसी भी मरीज़ के लिए 'पहले आओ पहले पाओ' वाला फ़ॉर्मूला नहीं अपनाया जाएगा. बल्कि मरीज़ की हालत देखते हुए उसका इलाज करना होगा. फिर चाहे वो बुज़ुर्ग हो या बच्चा।
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