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आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की मदद हेतु प्रेरितिक दिशा-निर्देश
समग्र मानव विकास हेतु गठित परमधर्मपीठीय परिषद के शरणार्थी एवं आप्रवासी विभाग ने आंतरिक रूप से विस्थापन की चुनौतियों का सामना करने हेतु एक नया प्रेरितिक दिशा-निर्देश प्रस्तुत किया है।
मंगलवार को वाटिकन ने आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की स्थिति पर कलीसिया की प्रतिक्रिया के लिए एक दिशा-निर्देश प्रस्तुत किया। यह नई पुस्तिका समग्र मानव विकास को बढ़ावा देने हेतु गठित परमधर्मपीठीय परिषद के शरणार्थी एवं आप्रवासी विभाग की ओर से प्रस्तुत की गई है जिसमें वर्तमान वैश्विक परिदृश्य से उत्पन्न नई चुनौतियों और उसके लिए प्रेरितिक जवाब पर प्रकाश डाला गया है।
पुस्तिका का शीर्षक है, "आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों पर प्रेरितिक दिशा-निर्देश।"
"आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों पर प्रेरितिक दिशा-निर्देश" का उद्देश्य है, प्रमुख विचारों की एक श्रृंखला प्रस्तुत करना, जो प्रेरिताई की योजना बनाने एवं आंतरिक रूप से विस्थापितों की सक्रिय मदद हेतु विकास कार्यक्रम में मददगार हो सकता है। यह चार शब्दों, स्वागत, रक्षा, बढ़ावा देना और एकीकृत करना, के आधार पर कार्रवाई के लिए "सुझाव और मार्गदर्शन प्रदान करता है। संत पापा ने इन शब्दों को आप्रवासियों एवं शरणार्थियों के लिए प्रस्तावित किया है।
स्वागत
प्रेरितिक दिशा-निर्देश आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की जटिल समस्याओं को समझता है। यह गौर करता है कि वे लोग अक्सर समाज द्वारा भुला दिये जाते हैं। यह कलीसिया से आह्वान करता है कि इस मुद्दे पर जागरूकता लाये।
यह स्वीकार करते हुए कि मेजबान समुदाय अक्सर स्वयं अनिश्चित परिस्थितियों में होते हैं इसने सभी से अपील की है कि आंतरिक रूप से विस्थापित एवं उनका स्वागत करनेवाला समुदाय दोनों के लाभ के लिए "मानवीय सहायता हेतु एक संतुलित और व्यापक दृष्टिकोण" को बढ़ावा दिया जाए।
सुरक्षा
आप्रवासियों एवं शरणार्थियों के लिए गठित समिति ने गौर किया है कि आंतरिक रूप से विस्थापित लोग भी एक ही कारण से शरणार्थियों की तरह विस्थापित होते हैं अतः उनकी रक्षा किये जाने की आवश्यकता है। हालाँकि, उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को पार नहीं किया है, उनके पास अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत समान अधिकार या कानूनी स्थिति नहीं है।
दस्तावेज में ध्यान दिया गया है कि राष्ट्रीय अधिकारियों पर उनकी रक्षा की प्राथमिक जिम्मेदारी है... जिन्हें कई बार प्रदान नहीं की जाती है। यह कलीसिया को "स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आंतरिक विस्थापितों के संरक्षण के लिए स्पष्ट व्यवस्थापन की वकालत करने के लिए कहता है।
यह आंतरिक विस्थापितों को विशेष ध्यान देने की मांग करता है, खासकर, जो युद्ध से भाग रहे हैं, शोषित महिलाएँ एवं बच्चे तथा विकलांग लोग एवं जनजाति समुदाय के सदस्य जिनके साथ भेदभाव किया जाता है।
प्रोत्साहन
कलीसिया आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की भौतिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकता की पूर्ति हेतु उन्हें प्रोत्साहन देने के लिए बुलायी जाती है। अस्थायी भलाई के संबंध में, विस्थापित समुदायों के सदस्यों को सहायता प्राप्त होनी चाहिए ताकि वे अपने मेजबान समुदायों के सामाजिक और आर्थिक जीवन में पूरी तरह से भाग ले सकें, जिसमें शिक्षा एवं स्वास्थ्य देखभाल का अपना खास महत्व है।
जबकि कई संगठन भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास करते हैं, लेकिन विस्थापितों के धार्मिक और आध्यात्मिक कल्याण को कभी-कभी उपेक्षित किया जाता है। नया दस्तावेज गौर करता है कि यह आध्यात्मिक आयाम, पूरे मानव विकास के लिए आवश्यक है, जो वास्तव में हर आंतरिक विस्थापन का सामना करने का लक्ष्य होना चाहिए, विशेषकर दस्तावेज स्थानीय धर्माध्यक्षों से अपील करता है कि वे खास प्रेरितिक संरचना एवं कार्यक्रम अपनायें, जिससे कि आंतरिक विस्थापितों के भौतिक एवं आध्यात्मिक जरूरतों को पूरा किया जा सके।
एकीकरण
आप्रवासियों और शरणार्थियों के लिए गठित समिति, नए समुदायों में आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों के एकीकरण के बारे में, जिम्मेदार पक्षों को टिकाऊ समाधान अपनाने का आह्वान करती है।
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