विश्वास 

येसु ख्रीस्त ने अपने मिशन कार्य का आगाज बहुत ही निर्भयता और दृढ़ता से किया। उनके घोषणा पत्र में यह झलकता है जब उन्होंने नबी इसायस के ग्रन्थ को पढ़ा। उन्होंने परमेश्वर के राज्य के आगमन की उद्घोषणा की और लोगों पर तरस खाकर पूरे संसार के लोगों को एक प्रेममय आमंत्रण दिया कि वे परमेश्वर के प्रेम को पहचान लें। येसु के कथन में आदेश था, निर्भयता थी कि वह कोढ़ियों का स्पर्श कर सकें, लोगों के पाप क्षमा कर सकें, उनके साथ भोजन कर सकें, रूढ़िवादी परम्पराओं की दीवार गिरा सकें। उनके लिए सब कुछ संभव था, क्योंकि वे पिता से जुड़े हुए थे। 
हमारे लिए भी यह संभव है यदि हम ईश्वर से जुड़े रहें और प्रार्थना का सहारा लें।" घुटने टेक कर और हाथ जोड़कर प्रार्थना करने के द्वारा मनुष्य विज्ञान की शक्ति से भी ज्यादा शक्ति पा सकते हैं और साहसी बन सकते हैं" यह कथन है महान् वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्सटाइन का। आज भी हम चंगाई प्रार्थना सभाओं में भाग लेते हैं। हमने कईयों को चंगाई का साक्ष्य देते देखे एवं सुने हैं। यह इसलिए कि चंगाई देने के लिए प्रार्थना करने वाले और चंगाई प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करने वाले दोनों ही ईश्वरीय शक्ति पर विश्वास करते हैं। इसी विश्वास की आज भी हमें जरूरत है।

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