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क्षमादान
शाश्वत जीवन की आभा में और जीवन की क्षणभंगुरता को दृष्टि में रखते हुए - क्षमा का दान जो हम दूसरों को अर्पण करते हैं वह अनिवार्य शर्त है - जो हमें प्रभु के क्षमादान को पाने में सम्भव बनाती है। हमें ये प्रार्थना भी अर्थपूर्ण करने में समर्थ बनाती है कि- हमारे अपराध हमें क्षमा कर, जैसे हम भी हमारे अपराधियों को क्षमा करते हैं। आज के तीनों पाठ क्षमादान के वरदान के सूत्र में बंधे हुए हैं। हमारे अपराधी हमें क्षमादान , दया एवं समन्वय का पथ दिखाते हैं और इस पथ पर चलने की चुनौती भी देते हैं। पहले पाठ में श्रोताओं को यह याद दिलाया जाता है कि अगर वे दया और क्षमा नहीं दिखायेंगे तो वे प्रभु से भी दया और क्षमा प्राप्त नहीं कर पायेंगे। दूसरे पाठ में सन्त पौलुस हमें याद दिलाते हैं कि हमें दूसरों को क्षमा करना चाहिए क्योंकि हम येसु के हैं। येसु ने हमें अपने जीवन- उदाहरण से क्षमा करना सिखाया। कूस पर मरते समय उन्होंने अपने शत्रुओं को क्षमा किया। आज के सुसमाचार में दो कर्ज लेने वालों के दृष्टांत से प्रभु हमें वे क्षमा का पाठ पढ़ाते हैं कि दूसरों को क्षमा करने की कोई सीमा या शर्त नहीं होनी चाहिए। हम अपने आपको एक महान कर्जदार के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं, क्योंकि हम तो रोज़ पाप करते हैं इसलिए हमें रोज़ प्रभु की क्षमा की आवश्यकता है । क्या हम हमारे अपराधियों को क्षमा करने के लिए तैयार हैं या क्या खुद और कर्जदार होते जा रहे हैं।
आज का पवित्र सुसमाचार हमें क्षमादान के महत्त्व को बतलाता है। हमें लोगों को उनकी गलतियों के लिए क्षमा करने में पीछे नहीं हटना चाहिए। ईश्वर हमसे कहता है कि हमें सात बार तक नहीं बल्कि सत्तर गुना सात बार तक क्षमा करना चाहिए। इसका यह मतलन कटाई नहीं है कि हम सत्तर को सात के गुणा करके उत्तर लाएं और कहे कि हम सिर्फ 490 बार ही लोगों को उनकी गलतियों के लिए क्षमा करेंगे। इसका मतलब यह है कि हमें उस व्यक्ति के सुधर एवं मन परिवर्तन होने तक उसे क्षमा करना चाहिए।
क्षमा दान ख्रीस्तीय धर्म का एक महत्वपूर्ण भाग है। क्योंकि स्वयं इसा मसीह ने हमें उदाहरण देकर क्षमा करना। इसलिए हमें येसु के पदचिन्हों पर चलते हुए लोगों को उनकी गलतियों के लिए बार बार क्षमा करना चाहिए।
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