ईद मुबारक!

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इस ईद सारे मैल धो डालो

भारत विभिन्नताओं वाला देश है। जहाँ हर धर्म, जाति एवं समुदाय के लोग आपस में मिलजुलकर एक साथ रहते है। और आपस मे मिलकर सभी पर्वों को एकसाथ मिलकर मनाते है। एक दूसरे की खुशियों में शामिल होते है एवं एक दूसरे का साथ देते है। मगर एक प्रश्न सदैव मेरे मन में उठता रहता है कि हम त्यौहार या पर्व क्यों मनाते है? या हमें त्यौहार मनाने की क्या आवश्यकता है? जवाब बिल्कुल सीधा सा है कि एकसाथ मिलकर खुशियां मनाने के लिए, मेलजोल बढ़ाने के लिए एवं मन का मैल साफ करने के लिए हम त्यौहार मनाते है। क्योंकि त्यौहार के समय ही सब लोग एकसाथ मिलकर खुशियों को बढ़ा सकते है तथा रिश्तों में मधुरता ला सकते है और गीले शिकवों को भुलाकर एक दूसरे के करीब आ सकते है।
ईद के इस पावन पर्व पर जब मैं सुबह-सुबह सबको ईद की मुबारकबाद दे रहा था। तब मैंने सोशल मीडिया पर एक नामी डिटर्जेंट का विज्ञापन देखा, जिसका टाइटल था- "इस ईद सारे मैल धो डालो।" वह विज्ञापन बेहद अच्छा था, साथ ही समाज को एक साथ जोड़ने का संदेश भी दे रहा है। किस प्रकार कभी कभी कुछ छोटी बातों से रिश्तों मे दरार पड़ जाती हैl और गलतफहमी होने के कारण जो बात एक सॉरी से ख़तम हो सकती थी वो मन मे घर कर जाती हैl साथ ही रिश्तों में दूरियां बढ़ती ही चली जाती है। हम किस प्रकार अपनी गलती मानकर, लोगों से माफी माँगकर पुनः रिश्तों में मधुरता ला सकते है।
विज्ञापन में कुछ इस तरह दिखाया गया है कि ईद के पावन मौके पर एक बीवी अपने शौहर से पूछती है कि "आज दावत पर कौन-कौन आ रहा है?" शौहर जवाब देता है कि- "दोस्त आ रहे है।" तब उसकी बीवी उसे समझाइश देती है कि -एक छोटा सा शब्द है "सॉरी" थोड़ी हिम्मत करो और बोल डालो। तब शौहर उन सभी लोगों को जिनसे उसका मनमुटाव हुआ था सुन सब लोगों को एक एक करके कॉल करता है और उन सभी लोगों से माफी मांगता है। साथ सभी लोगों को शाम को ईद की दावत पर आमंत्रित करता है। शाम को सब लोग अपने सभी गीले शिकवे भुलाकर ईद का जश्न मनाने पहुँच जाते है।
किस प्रकार से दो अक्षर के एक छोटे से शब्द से रिश्तों के बीच की दरार भर जाती है। वाकई ये मुहिम तारीफ के काबिल है अमन भाईचारे और मोहब्बत को बढ़ावा देने वाली सोच जो लोगो को मन का मैल साफ करने के लिए प्रेरित कर रही है। और हमें भी हर नफरत खत्म करने की प्रेरणा दे रही है।
मन के मैल को साफ करने वाली एक और कहानी मैं आपके सामने प्रस्तुत करना चाहूंगा। यह घटना कुछ दिन पहले की है जब प्रवासी मजदूरों के पास कमाने और खाने के लिए कुछ नही होता है तो वह शहर से 1150 किलोमीटर दूर अपने घर जाने के लिए एक सायकिल की चोरी करता है। क्योंकि लॉकडाउन में गाड़ियां नही चल रहे होते हैं। पहले तो वह पैदल ही घर जाने की योजना बनाता है मगर अपने विकलांग बच्चे के लिए जो चलने में सक्षम नही है उसके लिए एक सायकिल चोरी करता है। क्योंकि उनके पास गुजारा करने के लिए और सायकल खरीदने के लिए पैसे नही होते है। सायकिल चोरी करने के बाद उसका मन नही मानता है तो वह सायकिल के मालिक को एक चिट्ठी लिखता है, और उसमें अपने गुनाह के लिए माफी मांगता है। क्योंकि सायकिल चोरी करने के लिए उसकी अन्तरात्मा उसे अनुमति नही देती है मगर मजबूरी में आकर वह सायकिल तो चोरी कर लेता है मगर उसकी अन्तरात्मा बार बार उसे कचोटते रहती है। तो फिर वह व्यक्ति अपने गुनाहों की माफी के लिए अपने मन के मैल को साफ करने के लिए सायकिल के मालिक के नाम एक खत लिखता है और अपनी बेबसी बयाँ करते हुए माफी मांगता है।
अगले दिन जब जब सायकिल के मालिक को बरामदे की सफाई करते वक्त वह खत मिलता है और वह बतलाता है कि चिट्ठी पढ़ने के बाद उसकी आंखें नम हो गई थी। और सायकिल चोरी हो जाने का जो आक्रोश और चिंता थी वह संतोष में बदल गया। वह कहता है कि- उस व्यक्ति के प्रति मेरे मन में कोई द्वेष नही हैं बल्कि यह सायकिल सही मायनों में किसी के दर्द के दरिया को पार करने के काम आ रही है।
वह कहता है कि- उस व्यक्ति ने बेबसी में यह दुस्साहस किया, जबकि बरामदे में और भी कई कीमती चीज़े रखी हुई थी मगर उसने उन्हें हाथ भी नही लगाया।
यह कहानी भी हमें यह सीख देती है कि हम किस तरह अपने मन के मैल को आसानी से धो सकते है। अपनी द्वारा की गई गलती के लिए हम क्षमा माँगकर अपने अपने रिश्तों में और अधिक मधुरता ला सकते है। मैं आप लोगों से अपील करता हूँ कि इन कहानियों से प्रेरित होकर उन लोगों को एक सॉरी ज़रूर बोले जिनके प्रति हमारे मन में किसी भी प्रकार की गलत भावना है या अपनी गलतियों के कारण हम उनसे दूर हो गए है। एक सॉरी आपके रिश्तों के मैल को खत्म करने के लिए काफी है। इस ईद-उल-फितर पर शारिरिक दूरी बनाए रखिये मगर दिलों में दूरी ना बनाये। गले ना मिले मगर दुआ जरूर करे।
आप सभी को ईद-उल-फितर की हार्दिक-हार्दिक शुभकामनाएं।

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