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अंतर-धार्मिक और सांस्कृतिक वार्तालाप
भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। इसलिए यह विश्व के इतिहास में कई दृष्टियों से अहम स्थान रखती है। एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि हज़ारों वर्षों के बाद भी भारतीय संस्कृति आज भी अपने मूल स्वरूप में जीवित है। सहिष्णुता और सहनशीलता इसके मुख्यतः अंग हैं।
भारतीय संस्कृति में हम प्रथाओं, वेशभूषा, रहन – सहन, परम्पराओं, कलाओं, व्यवहार के ढ़ंग, नैतिक – मूल्यों, धर्म, जातियों आदि के रूप में भिन्नताओं को साफ़ तौर से देख सकते हैं। इन्हें सन्तुष्ट करने के लिए हम जो विकास और उन्नति करते हैं, उसे संस्कृति कहते हैं। सौन्दर्य की खोज करते हुए हम संगीत, साहित्य, मूर्ति, चित्र और वास्तु आदि अनेक कलाओं को उन्नत करते है। सुखपूर्वक निवास के लिए सामाजिक और राजनीतिक संघटनों का निर्माण करते है। इस प्रकार मानसिक क्षेत्र में उन्नति की सूचक उसकी प्रत्येक सम्यक् कृति संस्कृति का अंग बनती है।
नैतिक मूल्यों का आचरण ही धर्म है। धर्म वह पवित्र अनुष्ठान है जिससे चेतना का शुद्धिकरण होता है। धर्म वह तत्व है जिसके आचरण से व्यक्ति अपने जीवन को चरितार्थ कर पाता है। यह मनुष्य में मानवीय गुणों के विकास की भावना है, सार्वभौम चेतना का सत्संकल्प है। आज के युग ने यह चेतना प्रदान की है कि विकास का रास्ता हमें स्वयं बनाना है।
हमारा भारत देश बहुल धार्मिक और सांस्कृतिक वाला देश है। इसे सजाना और संवारना प्रत्येक देशवासी का परमकर्तव्य है। रडियो वेरितास एशिया सत्यस्वर हमारे देश की अंतरमन की आवाज़ है और यह इसे कायम रखने के लिए अपने सृजनात्मक कार्यक्रमों के माध्यम से आप श्रोताओं तक आपकी सुविधा के अनुसार आपके साथ हैं।
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