धर्माध्यक्ष क्रिसोस्तम बिना देरी कलीसिया में अनेक बुराइयों को दूर करने का प्रयास करने लगे। उन्होंने धर्माध्यक्षीय आवास के ठाट-बाट एवं फिजूलखर्ची को बंद किया और अत्यंत सदा जीवन बिताने लगे। उन्होंने अपने प्रवचनों में सम्राट के दरबार के विलासमय जीवन एवं धन के दुरूपयोग के विरुद्ध उनको चेतावनी दी। इससे आम जनता बहुत प्रसन्न हुई; किन्तु साम्राज्ञी तथा दरबारीगण और कई पुरोहित भी धर्माध्यक्ष क्रिसोस्तम के शत्रु बन गए। उन्होंने साम्राज्ञी के साथ मिलकर क्रिसोस्तम के विरुद्ध षड़यंत्र रचा और उन्हें पदच्युत करके देश से बाहर निर्वासित कर दिया। इस पर सारी ख्रीस्तीय जनता ने इस अन्याय का घोर विरोध किया। अतः साम्राज्ञी को विवश होकर क्रिसोस्तम को वापस बुलाना पड़ा। इस पर उनके कुछ शत्रुओं ने उनकी हत्या का प्रयास किया; किन्तु वे सफल नहीं हुए। तब क्रिसोस्तम को पहले अर्मेनिया में तथा बाद में काले सागर के जंगलों में निर्वासित किया गया और उन्हें अनेक प्रकार की यातनाए दी गयी।
इन सब अत्याचारों के बीच वे सदा संत पिता के प्रति विश्वस्त बने रहे और प्रभुवर ख्रीस्त के प्रेम से सभी अत्याचारों को धैर्यपूर्वक सहते हए प्रसन्न बने रहे। संत पिता इन्नोसेंट प्रथम उनके मित्र थे और उन्होंने क्रिसोस्तम को बचने का हर संभव प्रयास किया। किन्तु शत्रुओं कठोरता के संमुक्ज उन्हें सफलता नहीं मिल सकी; और वहीं निर्वासन में 13 सितम्बर सं 407 को क्रिसोस्तम का देहांत हो गया। उनके अंतिम शब्द थे -"सब कुछ में ईश्वर की महिमा हो।" संत क्रिसोस्तम, धर्मोपदेशकों के संरक्षक संत है। उनका पर्व 13 सितम्बर को मनाया जाता है।

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