संकरा द्वार

सन्त लूकस का सुसमाचार
13:22-30

ईसा नगर-नगर, गाँव-गाँव, उपदेश देते हुए येरुसालेम के मार्ग पर आगे बढ़ रहे थे। किसी ने उन से पूछा, ''प्रभु! क्या थोड़े ही लोग मुक्ति पाते हैं?' इस पर ईसा ने उन से कहा, ''सँकरे द्वार से प्रवेश करने का पूरा-पूरा प्रयत्न करो, क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ-प्रयत्न करने पर भी बहुत-से लोग प्रवेश नहीं कर पायेंगे। जब घर का स्वामी उठ कर द्वार बन्द कर चुका होगा और तुम बाहर रह कर द्वार खटखटाने और कहने लगोगे, 'प्रभु! हमारे लिए खोल दीजिए', तो वह तुम्हें उत्तर देगा, 'मैं नहीं जानता कि तुम कहाँ के हो'। तब तुम कहने लगोगे, 'हमने आपके सामने खाया-पीया और आपने हमारे बाज’ारों में उपदेश दिया'। परन्तु वह तुम से कहेगा, 'मैं नहीं जानता कि तुम कहाँ के हो। कुकर्मियो! तुम सब मुझ से दूर हटो।' जब तुम इब्राहीम, इसहाक, याकूब और सभी नबियों को ईश्वर के राज्य में देखोगे, परन्तु अपने को बहिष्कृत पाओगे, तो तुम रोओगे और दाँत पीसते रहोगे। पूर्व तथा पश्चिम से और उत्तर तथा दक्षिण से लोग आयेंगे और ईश्वर के राज्य में भोज में सम्मिलित होंगे। देखो, कुछ जो पिछले हैं, अगले हो जायेंगे और कुछ जो अगले हैं, पिछले हो जायेंगे।''

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