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चलो साथ में प्रार्थना करते है।
मई माह माँ मरियम के आदर पवित्र रोजरी का माह होता है। मई माह के प्रारम्भ होते ही पल्लियों में सामूहिक रोजरी विनती माला की शुरुआत भी हो जाती है। निजी कारणों के चलते मुझे पता था की मैं पुरे माह इस सामूहिक रोजरी विनती माला में भाग नहीं ले पाउँगा, तो मैंने अपने सभी धर्मसंघीय एवं सम्बन्धियों से आग्रह किया की वे मेरे लिए इस पुरे महीने में प्रार्थना करे। और सभी ने कहा की वे मेरे लिए अवश्य ही प्रार्थना करेंगे। दिन ख़त्म होने तक मैं 15-20 ख्रीस्तीय लोगो से प्रार्थना निवेदन कर चूका था, और दिन के आखिरी पहर को जब मैं मेरी एक गैर ख्रीस्तीय मित्र से बात कर रहा था तो मैंने उसे भी कहा की वो भी मेरे लिए इस मई माह में प्रतिदिन माँ मरियम से प्रार्थना करे। यूँ तो वह एक गैर ख्रीस्तीय लड़की है, लेकिन क्रिस्चियन स्कूल एवं हॉस्टल से शिक्षा प्राप्त करने के कारण वह ख्रीस्तीय मूल्यों से भली-भाँति परिचित थी। अन्य लोगो के सामान जब मैंने उससे भी प्रार्थना के लिए निवेदन किया तो उसके जवाब ने मुझे यह लेख लिखने को मजबूर कर दिया।
उसने कहा - "चलो! साथ में प्रार्थना करते है!" उस लड़की के मुँह से यह बात सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा। उस समय उस गैर ख्रीस्तीय लड़की के साथ प्रार्थना करके जो ख़ुशी मिली, वह एक अलग ही प्रकार अनुभूति थी। हम दोनों प्रार्थना में एक मन कब ईश्वर से जुड़ गए पता ही नहीं चला। जो मैंने उस समय अनुभव किया उसे शब्दों में बयां नहीं कर पाऊंगा। उससे बात करने के बाद मैं काफी समय तक इस बात पर विचार करता रहा की किस प्रकार केवल शब्द मात्र से लोग किसी के हृदय में जगह बना लेते है। जहां मैंने कई लोगो से कहा कि मेरे लिए प्रार्थना करना, उन्होंने प्रार्थना के लिए हाँ तो कहा, लेकिन उस लड़की के समान किसी ने नहीं कहा की- "चलो साथ में प्रार्थना करते है।"
उस दिन मैंने महसूस किया की हम कैसे प्रार्थना द्वारा ईश्वर से जुड़ सकते है। उस समय ईश्वर का यह वचन मुझे समझ में आया कि
“जहाँ दो या दो से अधिक मेरे नाम इकट्टे होते हैं, वहाँ में उनके बीच उपस्थित रहता हूँ।"
उस लड़की के विश्वास को देखकर कभी कभी मुझे लगता है की एक ख्रीस्तीय होते हुए भी मेरा विश्वास उसके विश्वास से कम है। या यूँ कहे की वो गैर ख्रीस्तीय होये हुए भी वह ख्रीस्तीय विश्वास में आगे बढ़ गयी। उसका जवाब सुनकर मुझे पता चला की क्यों ईश्वर ने शतपति के विश्वास की प्रशंसा की थी। आज हम ख्रीस्तीय अपने विश्वास में दिन प्रतिदिन कमजोर होते जा रहे है। हम उस विरासत को खोते चले जा रहे जो ईश्वर ने हमे प्रदान की है। उस महिमा से दूर हो रहे है, जिस महिमा का हमे भागी बनना हैं। वास्तव में ईश्वर हमारे बीच में ही सदैव से विराजमान है, बस ज़रूरत है तो उसे खोजने की। या यूँ कहे की हम ईश्वर को खोजने की कोशिश ही नहीं कर रहे है।
अगर हम प्रयत्नशील बने रहेंगे तो ईश्वर की महिमा अवश्य देखेंगे,ना केवल देखेंगे वरन उसके भागी भी होंगे। वचन कहता है- ”तुम सब से पहले ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और ये सब चीजें, तुम्हें यों ही मिल जायेंगी।’’ यह वचन हमे प्रेरित करता है की जीवन की सारी चीज़े हमे ईश्वर के द्वारा आसानी से प्राप्त हो जाएगी। बस आवश्यकता है तो सिर्फ सच्चे हृदय से ईश्वर को खोजने की।
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