व्हाई सो गंभीर ?

रिश्तों में तुलना कभी मत कीजिए। इसमें तुलना के बजाय समझदारी जरुरी होती है, लेकिन हम वही करते हैं जिसके चलते जिंदगी तो बदमजा हो जाती है, बल्कि रिश्ते भी खटाई में पड़ जाते हैं। फिर चाहे रिश्ता दोस्त, माता-पिता, पति-पत्नी का क्यों न हो और कड़वा सच तो यह है कि तुलना के चलते इंसान बुढा जल्दी होता है, लेकिन समझदार होने में देर लगती है। समझदारी के चलते आप किसी भी समस्या या परेशानी को आसानी से हल कर सकते हैं और रिश्तों में समझदारी की ऐसी ही पेशकश रहा सिटकॉम और फोर्मुले पर आधारित एक नाटक 'व्हाई सो गंभीर?', जिसके लेखक गिरीश दातार। हैं।

जिंदगी में तेजी से बढ़ना हो तो रास्ता हमेशा अकेले तय करें, लेकिन जब सफ़र लंबा तय करना हो तो साथ जरुरी है। उस पर सफ़र दुनियादारी का हो तो साथी को समझते-समझते सहेजते हुए आगे बढ़ने में ही समझदारी है। इसे नाटक में लेखक ने पेश किया, लेकिन आज की नौजवान पीढ़ी के लिए दुनियादारी के फेर में पड़ने के बाद एक-दुसरे पर शक के चलते मोबाइल चेक करना तक आम बात है। फिर वे कितने ही हाई एजुकेटेड क्यों न हों, पत्नी का अधिक बुद्धिमान होने के साथ वेतन और ओहदे में बीस होना पुरुष मानसिकता को चोट पंहुचा देता है, लेकिन यही बात पत्नी पर भी तो लागु होती है। इसके चलते कई समस्याएं और परेशानियां पैदा होना लाजमी है। ऐसे तमाम छोटी-छोटी बातों को लेखक ने बेमालूम अंदाज में 'व्हाई सो गंभीर?' में रचा है।  जो व्यक्ति रेखाओं के बोल-बर्ताव और समस्याओं पर तंज करते नजर आता है। समस्याओं पर प्रकाश डालते लेखक ने शब्द प्रधान विनोद का जिस तरह इस्तेमाल किया वह उनकी कल्पनाशीलता को दर्शाता है। इसके चलते नाटक कहीं भी रेंगता नहीं बल्कि रफ्तार के साथ जाता हुआ नजर आता है। विनोदी नाटक अलहदा मिजाज के होते है हैं कभी संजीदा तो कभी हल्के-फुल्के। 'व्हाई सो गंभीर ?' न तो रिव्यु है और न ही प्रश्नात्मक व्यंग नाटक बल्कि सिटकॉम यानी सिचुएशनल कॉमेडी है। 1950 तक यह बहुत चलन में नहीं था, लेकिन बाद में इंग्लैंड में रेडियो टीवी पर शुरू होकर अब नाटकों में इस्तेमाल होने लगा जिसमें आमतौर पर पात्र वहीँ होते हैं, लेकिन कथानक बदल जाता है।

यही सिटकॉम की खासियत है। व्हाई सो गंभीर? के दो अंकों में दो अलग-अलग कथानक 'कामधेनु' और 'धूमकेतु'  हैं लेकिन पात्र वही हैं। सिचुएशनल कॉमेडी 'व्हाई सो गंभीर?' मनोरंजन के साथ जिंदगी में समझदारी के नजरिए की सीख देने में कामयाब है। यह नाटक गंभीर के बजाए मनोरंजन के साथ जिंदगी को समझदारी से देखने की सीख देता है।

- चार्ल्स सिंगोरिया

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