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कार्लो पेत्रीनी एवं लौदातो सी से उत्पन्न नई मानवता।
समग्र पारिस्थितिकी का विचार जो पर्यावरणीय एवं मानवीय पीड़ा के बीच गहरे संबंध को दिखता है, एक महान एवं असाधारण चिंतन है जिसको संत पिता फ्रांसिस ने प्रेरितिक विश्व पत्र "लौदातो सी" के द्वारा दुनिया को दिया है। स्लो फूड के संस्थापक, अंतरराष्ट्रीय भूमि माता एवं लौदातो सी समुदाय को शुरू करनेवाले पेत्रीनी ने गौर किया है कि किस तरह हर चीज से लाभ प्राप्त करने की मानसिकता से बाहर निकलने जबकि आम एवं संबंधपरक चीजों पर विचार करने का समय आ गया है।
संत पिता फ्रांसिस ने कार्लो पेत्रीनी को "सच्चा अज्ञेयवादी" कहा है क्योंकि वे "प्रकृति के प्रति सहानुभूति" की महान मनोभाव से प्रेरित हैं।
वे पहले कम्युनिस्ट थे जिनसे पूछने पर कि क्या कभी परिवर्तन संभव है जवाब देते हैं, "ईश्वर की कृपा कभी सीमित नहीं हो सकती।" फिर भी इस बात को नहीं छिपाते है कि वे संत पिता फ्रांसिस के प्रेरितिक विश्व पत्र "लौदातो सी" से पूरी तरह प्रभावित है। कार्लो पेत्रिनी "स्लो फूड", गैर लाभकारी संगठन के संस्थापक हैं। वे 1986 से ही भोजन के उचित मूल्य, उसके उत्पदकों के प्रति सम्मान, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र के साथ सामंजस्य के लिए प्रतिबद्ध है।
पेत्रीनी ने आमघर की देखभाल पर प्रेरितिक पत्र से अपने संबंध के बारे वाटिकन न्यूज को बतलाया। उन्होंने कहा, "यह एक दस्तावेज हैं जो पारिस्थितिक दृष्टिकोण में गहराई से परिवर्तन लाता है। यह केवल पारिस्थितिक प्रेरितिक विश्व पत्र नहीं है बल्कि एक बहुमुखी सामाजिक विश्व पत्र है।"
स्लो फूड के संपादक एवं जुनती के संपादक द्वारा प्रकाशित तेर्रा फुतूरा के लेखक ने कहा है कि समग्र पारिस्थितिकी का विचार जो पर्यावरण की पीड़ा एवं मानव की पीड़ा के बीच गहरा संबंध दिखता है, एक असाधारण चिंतन है जिसमें वह खुद को और "दुनिया" को पोप द्वारा प्रेरित महसूस करता है।
पेत्रीनी अंतरराष्ट्रीय भूमि माता तथा लौदातो सी समुदाय के भी संस्थापक हैं जो किसानों, मछुआरों, और छोटे उत्पादकों को आवाज और दृश्यता देता है। वे मानते हैं कि पोप फ्राँसिस का विश्व पत्र, "एक नए मानवतावाद का संस्थापक दस्तावेज" है। जो एक ऐसी आवश्यकता है जिसको हम सभी महसूस कर रहे हैं कि हम न केवल पर्यावरण विनाश को बल्कि एक अस्थिर सामाजिक स्थिति का भी अनुभव कर रहे हैं। स्लो फूड के संस्थापक का आग्रह है "एक खास तरह की अर्थव्यवस्था" जिसमें हर चीज के पर लाभ पाने के विचार के बदले हमें आम एवं संबंधपरक चीजों पर विचार करना है।
उन्होंने कहा, "चल रहे कोरोनोवायरस आपातकाल ने हमारे सामने दृढ़ चुनाव करने की स्थिति को रख दिया है। यदि कोई सोचता है कि वह महामारी से पहले मौजूद प्रतिमानों और मूल्यों का पुनर्निर्माण करके, इस स्थिति से बाहर निकल जायेगा तो मेरे अनुसार वह गलत है और पर्यावरण के अधिक अनुकूल विकल्प, अलग अर्थव्यवस्था, व्यक्तिगत एवं सामूहिक जिम्मेदारी एवं वार्ता करने तथा सुनने की नई क्षमता के गहरे परिवर्तन के अवसर को नहीं ले रहा है।"
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