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सुसमाचार लेखक संत मत्ती
लेवी, नाकेदार, सुसमाचार लेखक तथा प्रेरित आदि नाम से पुकारे जाने वाले संत मत्ती, का जन्म कफरानाहुममेंहुआ था | पिता का नाम अल्फेउस था | शहर में बिकने वाले माल पर कर (टैक्स) वसूल करने के लिए उस समय चुन्गिनाकों की नीलामी होती थी | अल्फेउस के पास अनेक नाके थे जहाँ उसका बेटा मत्ती चुंगी वसूल करता था | अल्फेउस के पास धन की कमी नहीं थी | अतः इस धंधे में उतारने के पहले उसने मत्ती को उच्च शिक्षा दिलायी थी | फिर कुछ दिन अपने साथ रखकर उसे धंधे के सारे हथकंडे भी सिखा दिए थे |
पिता से अच्छी तरह प्रशिक्षण प्राप्त कर मत्ती अब चुंगी नाकों पर बैठने लगे | इस काम में सहायता के लिए उनके नौकर भी थे | मत्ती के पास मौके के नाके थे हर नाके से प्रतिदिन अच्छी खासी आमदनी हो जाती थी |
मत्ती ने खूब धन कमाया | वे बड़े ऐश-आराम का जीवन बिता रहे थे | एक बात जरुर याद करने की है चुंगी वसूल करने में दया, न्याय और प्रेम को कोई स्थान नहीं होती | बड़ी कठोरता और क्रूरता के साथ चुंगी वसूल हो जाती है | बड़े-बड़े व्यापारियों के साथ-साथ बेचारे गरीब मछुआरों को भी उस समय बड़ा अत्याचार और अन्याय सहना पड़ता था | यही कारण है कि उस समय यहूदी लोग नाकेदारों को बड़ी घृणा की दृष्टि से देखते थे | उन्हें“पापी” कहकर पुकारते थे | उनके साथ किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नहीं रखते थे | यहाँ तक की उनके घर जाना या उनके साथ भोजन करना बड़ा पाप मानते थे |
मत्ती के पास धन-दौलत सब कुछ था | नौकर-चाकर उनकी सेवा में लगे रहते थे | आलिशान मकान थे | पर इतना सब होते हुए भी उनके मन में शान्ति नहीं थी | कारण कि कोई भी व्यक्ति उनसे बात करना पसंद नहीं करता था | न कोई भी उनके घर नहीं आता था | मत्ती जब कभी एकांत में बैठे होते थे तो उनके कानों में गरीब मछुआरों की चीख सुनाई पड़ती थी, जिनसे वे चुंगी के रूप में अच्छी-अच्छी मछलियाँ छीन लेते और अपने रसोई में भेज देते थे | कभी-कभी उनके कानों में किसी बड़े व्यापारी के नौकर के गिड्गिड़ाने की आवाज आती,“मेरे हुजुर, मेरे मालिक! आपके पैर पड़ता हूँ मुझ पर दया कीजिए | इतनी अधिक चुंगी वसूल मत कीजिए | पाँच सौ रूपये बहुत होते हैं | मेरे स्वामी ने हिसाब लगाकर सारे माल के लिए नियम के अनुसार दो सौ रूपये ही दिए हैं | बाकी ये तीन सौ रुपये मुझे अपनी जेब से भरने पड़ेंगे | मैं बहुत गरीब हूँ | मुझ पर रहम कीजिए वरना मेरे बच्चे भूखे मर जाएंगें |”
मत्ती विचारों में डूब जाते थे | एक दिन उन्होंने येसु का सन्देश सुना | येसु लोगों को शिक्षा दे रहे थे | मत्ती अपने नाके पर जा रहे थे | वे रुक गये | येसु का प्रवचन सुनने लगे | येसु कह रहे थे,“मनुष्य को क्या लाभ यदि वह पृथ्वी की साड़ी धन संपत्ति कमा ले परन्तु अपनी आत्मा खो दे | मैं तुमसे सच कहता हूँ कि धनवान व्यक्ति का स्वर्ग में प्रवेश करना उतना ही कठिन है जितना सुई के छेद में ऊंट निकालना |” इन शब्दों ने मत्ती के ह्रदय में उथल-पुथल मचा दी | उन्हें अपने आपसे घृणा होने लगी | अपने किए पर उन्हें बड़ा पश्चाताप् होने लगा | वे सच्ची शान्ति के लिए बैचेन हो उठे |
एक बार उन्होंने यह सूना कि येसु नाकेदारों के घर जाते और साथ खाना भी खाते हैं | इस समाचार से उन्हें कुछ आशा बंधी | एक दिन चुंगी घर में उन्हें बैठा देख येसु ने कहा, “मेरा अनुसरण करो |” मत्ती येसु के पीछे चल पड़े और बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ येसु से कहा,“गुरु जी, मैं पापी नाकेदार हूँ | क्या आप मेरे घर चलकर भोजन कर सकते है ?” येसु ने ख़ुशी ख़ुशी उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया | पापियों का उद्धार करने के लिए ही तो वे आये थे | मत्ती ने येसु का बड़ा सत्कार किया| उस समय येसु के साथ उनके चार-पाँच शिष्य भी थे | यह देखकर फरीसी और शास्त्री प्रेरितों से कहने लगे,“तुम्हारा गुरु कैसा है जो नाकेदारों के घर जाता और भोजन भी करता है |”
मत्ती मन ही मन यहूदियों के गुरु और गुरुवर ख्रीस्त के बीच के अंतर को समझ रहे थे | उनका मस्तक झुक गया और मन ही मन उन्होंने गुरुवर ख्रीस्त को नमन किया |
पेंटेकोस्ट के दिन पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर अन्य प्रेरितों के समान मत्ती भी सारे यहूदिया प्रांत में घूम-घूमकर ख्रीस्त के सुसमाचार का प्रचार करने लगे | अन्य प्रेरितों के समान इन्हें भी चमत्कार करने की शक्ति प्राप्त हुई थी | यहूदिया में उनके कई शिष्य बन गए थे | मत्ती ने अब यहूदिया के बहार सुसमाचार करने का विचार किया अपने नए शिष्यों के लिये उन्होंने “इब्रानी” में अर्थात उस समय की बोलचाल की भाषा “अरमेक” में पहला सुसमाचार लिखा | संभवतः सन 42 से 50 के बीच उन्होंने येसु की जीवनी लिखकर अपने शिष्यों को दी और धर्म-विस्तार के लिए निकल पड़े | इन्होंने युथोपिया, पार्थिया तथा परसिया आदि देशों में ख्रीस्त-धर्म का प्रचार किया |
मत्ती का लिखा सुसमाचार प्रारंभिक कलीसिया का बड़ा प्रिय सुसमाचार माना गया है कारण कि इसमें धर्म संबंधी पाठ एवं शिक्षा का वर्गीकरण पाँच प्रवचनों (प्रबंधों) में बड़ी खूबसूरती से किया गया है | यह विवरण अकेले मत्ती के सुसमाचार में मिलता है कि ख्रीस्त पेत्रुस को स्वर्गराज्य की कुंजियाँ प्रदान करते है उसे चट्टान कहकर पुकारते हैं जिस पर वे अपनी कलीसिया स्थापित करते | केवल उन्हीं के सुसमाचार में मिलता है कि पेत्रुस येसु के बगल में समुद्र पर चलते हैं | और पेत्रुस अपना और येसु दोनों का कर चुकाता है | उनके सुसमाचार का अंत कलीसिया में इस महान घोषणा के साथ होता है “विश्वास रखो, पृथ्वी के अंत तक मैं तुम्हारे साथ रहूँगा |” कलीसिया प्रेरित मत्ती को लोहुगावाह मानती है |
प्रतिवर्ष 12 सितम्बर को सन मत्ती का पर्व मनाया जाता है |
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