धीरे-धीरे उनकी शारीरिक दुर्बलता बढ़ती गयी और सन्त लॉरेन्स पर्व दिवस पर वे अत्यधिक कमजोरी एवं तेज बुखार से पीड़ित हुए। उन्हें स्पष्ट अनुभव हुआ कि उनके जीवन का अंत निकट आ गया है। इस उन्होंने अपनी स्वर्गीय माँ मरियम एक पत्र लिखा, यह निवेदन करते हुए कि माँ के महिमामय स्वर्ग उद्ग्रहण का महान समारोह वे माँ के साथ स्वर्ग में मना सकें। अपनी स्वर्गीय माता के प्रति स्तनिस्लाउस के हृदय में तीव्र भक्ति एवं गहरा विश्वास था। उनकी प्रार्थना सुन गयी। 15 अगस्त 1568 को प्रातः चार बजे जब स्तनिस्लाउस का हृदय माँ मरियम के स्तुतिगान में लीन, था,तब मरियम अपने स्वर्दूतों के साथ आयी और अपने इस पुत्र की पावन आत्मा को अपनी बाहों में भरकर स्वर्ग ले गयी। उनका चेहरा एक दिव्य आभा से चमक उठा। स्तनिस्लाउस की आयु उस समय केवल सत्रह वर्ष थी। उनके देहान्त होते ही रोम के सारे विश्वासीगण सन्त के रूप में उनका सम्मान करने लगे।
सन 1726 को सन्त पिता ने उन्हें सन्त घोषित किया। वे धर्मसंघियों के विशेष मध्यस्थ माने जाते है।
माता कलीसिया सन्त स्तनिस्लाउस का पर्व 13 नवम्बर को मनाती है।

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