सन्त फ्रांसेस काब्रीनी

सन्त फ्रांसेस ज़ेवियर काब्रीनी संयुक्त राज्य अमेरिका के नागरिकों में से प्रथम घोषित सन्त एवं पवित्र हृदय की मिशनरी धर्मबहनों की संस्थापिका है। 
फ्रांसेस्का काब्रीनी का जन्म इटली के लोम्बार्डी प्रान्त में मिलान नगर के निकट सान्त आंजेला नामक ग्राम में सन 1850 में हुआ। वे एक सम्पन्न कृषक परिवार के 13 बच्चों में सबसे छोटी थी बपतिस्मा में उनको फ्रांसेस्का नाम दिया। गया था। उनके पिता का नाम अगस्तीनो काब्रीनी और माता का नाम स्टेल्ला था। वे दोनों अत्यंत धार्मिक थे, और उनका पूरा परिवार उत्तम काथलिक जीवन बिताते थे। 
13 वर्ष की अवस्था में फ्रांसेस्का को पवित्र हृदय की धर्मबहनों द्वारा संचालित विद्यालय में भेजा गया। वहाँ उन्होंने बड़ी सफलतापूर्वक अपना अध्ययन पूर्ण किया और साथ ही शिक्षक-प्रशिक्षण का कोर्स भी कर लिया। क्योंकि बचपन से ही उसकी इच्छा थी कि किसी दूर देश में मिशनरी बनकर जाए और ग़रीबों की सेवा करे। अतः उन्होंने उन्हीं धर्मबहनों के साथ भर्ती होने क लिए अपनी इच्छा प्रकट की। किन्तु फ्रांसेस्का के कमजोर स्वास्थ्य के कारण उन्हें प्रवेश नहीं मिल सका। अतः वे घर में ही रहकर परिवार के कार्यों में मदद करती रही। जब वह 24 वर्ष की थी तब उनके गाँव के पल्ली पुरोहित के आग्रह पर उन्होंने निकट के एक ग्रामीण विद्यालय में अध्यापन का कार्य प्रारम्भ किया। कुछ समय पश्चात् गोडोग्नो नगर के पल्ली पुरोहित ने एक अनाथालय के संचालन के लिए उनसे अनुरोध किया। फ्रांसेस्का ने उनके आग्रह को स्वीकार किया और वहाँ उन्होंने मातृ-तुल्य प्रेम से उन अनाथ, गरीब बालिकाओं की देखरेख एवं शिक्षा का उत्तम प्रबंध किया और उनके भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए हर संभव प्रयास किया। अन्य कई सेवातत्पर युवतियों ने इस कार्य में उनकी सहायता की। वहाँ उन्होंने छः वर्ष उन बालिकाओं की सेवा में बिताया। उनकी कार्यकुशलता, सेवा-तत्परता  प्रार्थनामय जीवन से प्रभावित होकर वहाँ के धर्माध्यक्ष ने उनसे आग्रह किया कि उनके धर्मप्रांत में गरीब बच्चों की सेवा करने के लिए मिशनरी धर्मबहनों की एक संस्था की स्थापना करे। तदनुसार उन्होंने अनाथालय में अपनी सहायता करने वाली छः युवतियों को साथ लेकर सन 1880 में "पवित्रतम हृदय की मिशनरी धर्मबहनें" नामक संस्था की स्थापना की। सिस्टर काब्रीनी की कार्यकुशलता एवं मिशनरी मनोभाव से प्रेरणा पाकर शीघ्र ही अनेक युवतियों ने इस संस्था में प्रवेश लिया और उनकी संख्या बढ़ती गयी। उन्होंने काब्रीनी को अपनी संस्था की अध्यक्षा चुना और वह अपने जीवन के अंत तक उस पर बनी रही।
मदर काब्रीनी ने कुछ ही वर्षों के अन्दर इटली में रोम तथा अन्य कई स्थानों में गरीब बक्सों को निःशुल्क शिक्षा देने के लिए विद्यालयों की स्थापना की और असहाय बच्चों की देखरेख के लिए अनाथालय भी खोले। इन संस्थाओं के कार्यों से उनके धर्माध्यक्ष एवं सन्त पिता भी बहुत प्रभावित हुए। सन 1889 में सन्त पिता लियो 13वें ने मदर काब्रीनी से आग्रह किया कि संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवासी इटालियनों के बीच कार्य करने के लिए अपनी कुछ धर्मबहनों के साथ वे अमेरिका जाए। अतः कुछ ही दिनों पश्चात् वे अपनी छः धर्मबहनों के साथ अमेरिका के न्यूयार्क नगर में जा पहुंची। उस समय वे 39 वर्ष की थी। वहाँ इटली से आये लाखों प्रवासियों की दशा अत्यंत शोचनीय थी। मदर काब्रीनी ने उन गरीब, अशिक्षित एवं शोषित लोगों के बीच कार्य करना प्रारम्भ किया। उन्होंने उनके बच्चों  जगह-जगह विद्यालयों, अनाथालयों तथा अस्पतालों की स्थापना की। इसके लिए उन्हें हर तरह की मुसीबतें झेलनी पड़ी। फिर  अपने प्रभु पर पूर्ण आसरा रखते हुए दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ी और उन उपेक्षित लोगों की सेवा में स्वयं को पूर्ण रूप से समर्पित किया।

मदर काब्रीनी ने अपनी धर्मबहनों को यही शिक्षा दी कि जिन लोगों की हम सेवा करते हैं- उनका कल्याण हम पर निर्भर नहीं हैं, बल्कि ईश्वर पर निर्भर है जो हमारे द्वारा उनके लिए कार्य करते है। अतः आप सदा प्रार्थना कीजिये और प्रभु से निरंतर माँगते रहिये कि वह हमें प्रार्थना भाव प्रदान करें ताकि हमारा मन व हृदय सदा प्रभु में रहे और हम हर क्षण उनकी इच्छा पूर्ण करने में लगे रहे। मदर काब्रीनी ने अमेरिका के विभिन्न नगरों तथा बस्तियों में अनाथालयों, विद्यालयों तथा अस्पतालों के रूप में 67 सेवा-संस्थाओं की।  1909 में उन्होंने अमेरिकी नागरिकता प्राप्त की। संयुक्त राज्य अमेरिका के अलावा उन्होंने इंग्लैंड, फ्रांस, स्पेन तथा मध्य एवं दक्षिणी अमेरिका में भी अपनी सेवाएं अर्पित की। तब भी वे निरंतर प्रार्थना एवं परिश्रमपूर्ण जीवन बिताती रही।
अंत में निरंतर यात्राओं तथा कठिन परिश्रम से थक कर वे शिकागो के अपने मठ में कुछ दिनों के आराम के लिए रुकी; और वही पर 22 दिसंबर 1917 को 67 वर्ष की आयु में उनका देहान्त हुआ। तब तक उनकी संस्था की धर्मबहनों की संख्या चार हज़ार से भी अधिक हो चुकी थी,  हज़ारों बच्चों तथा अनाथों की स्नेहमयी माँ थी। 
सन 1946 में सन्त पिता पियुस 12वें  ने मदर काब्रीनी को सन्त घोषित किया। वे प्रवासियों की संरक्षिका मानी जाती है। माता कलीसिया 22 दिसंबर को सन्त फ्रांसेस ज़ेवियर काब्रीनी का पर्व मनाती है।

Add new comment

10 + 10 =