मदर काब्रीनी ने अपनी धर्मबहनों को यही शिक्षा दी कि जिन लोगों की हम सेवा करते हैं- उनका कल्याण हम पर निर्भर नहीं हैं, बल्कि ईश्वर पर निर्भर है जो हमारे द्वारा उनके लिए कार्य करते है। अतः आप सदा प्रार्थना कीजिये और प्रभु से निरंतर माँगते रहिये कि वह हमें प्रार्थना भाव प्रदान करें ताकि हमारा मन व हृदय सदा प्रभु में रहे और हम हर क्षण उनकी इच्छा पूर्ण करने में लगे रहे। मदर काब्रीनी ने अमेरिका के विभिन्न नगरों तथा बस्तियों में अनाथालयों, विद्यालयों तथा अस्पतालों के रूप में 67 सेवा-संस्थाओं की। 1909 में उन्होंने अमेरिकी नागरिकता प्राप्त की। संयुक्त राज्य अमेरिका के अलावा उन्होंने इंग्लैंड, फ्रांस, स्पेन तथा मध्य एवं दक्षिणी अमेरिका में भी अपनी सेवाएं अर्पित की। तब भी वे निरंतर प्रार्थना एवं परिश्रमपूर्ण जीवन बिताती रही।
अंत में निरंतर यात्राओं तथा कठिन परिश्रम से थक कर वे शिकागो के अपने मठ में कुछ दिनों के आराम के लिए रुकी; और वही पर 22 दिसंबर 1917 को 67 वर्ष की आयु में उनका देहान्त हुआ। तब तक उनकी संस्था की धर्मबहनों की संख्या चार हज़ार से भी अधिक हो चुकी थी, हज़ारों बच्चों तथा अनाथों की स्नेहमयी माँ थी।
सन 1946 में सन्त पिता पियुस 12वें ने मदर काब्रीनी को सन्त घोषित किया। वे प्रवासियों की संरक्षिका मानी जाती है। माता कलीसिया 22 दिसंबर को सन्त फ्रांसेस ज़ेवियर काब्रीनी का पर्व मनाती है।

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