सन्त पिता लियो महान

कलीसिया के इतिहास में पाँचवी सदी अत्यंत संकटमय रही। क्योंकि पश्चिम में रोमी साम्राज्य का विघटन हो रहा था और पूर्वी कलीसिया में धर्म-सिद्धांतों के सम्बन्ध में परस्पर-विरोधी विवाद जोर पकड़ रहा था। ऐसे कठिन समय में प्रभु येसु ने सन्त पेत्रुस के स्थान पर अपनी कलीसिया की रक्षा एवं संचालन के लिए एक ऐसे दूरदर्शी, विवेकी एवं प्रभावशाली व्यक्ति को चुना जिनका नाम है- सन्त पिता लियो प्रथम। वे उन तीन सन्त पिताओं में से भी प्रथम हैं जिनको हम 'महान' की उपाधि से सम्मानित करते है।
सन्त पिता लियो महान का जन्म रोम में हुआ। पुरोहित बनने के पश्चात् उन्हें सन्त पिता सेलेस्तिन ने रोम की कलीसिया का उप धर्माध्यक्ष बनाया। सन्त पिता सेलेस्तिन एवं सन्त पिता सिक्सतुस दोनों के  शासन काल में उप धर्माध्यक्षलियो ने कलीसिया के संचालन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सन्त पिता सिक्सतुस के देहान्त के पश्चात् सन 440 में लियो ही सन्त पिता चुने गए और मिखाएल महादूत के पर्व के दिन बड़े सम्मानपूर्वक रोम के धर्माध्यक्ष के रूप में उनका अभिषेक हुआ।
उन दिनों कलीसिया अनेकों प्रकार की कठिनाइयों से घिरी हुई थी। बर्बर एवं हूण जाति के आक्रमणकारी रोमी साम्राज्य के विभिन्न प्रांतों में लूटमार एवं आगजनी कर उन्हें उजाड़ रहे थे। साथ ही नेस्तोरियस तथा पेलाजियुस के अनुयायी और अन्य विधर्मी लोग अपने झूठे सिद्धांतो के द्वारा कलीसिया को विनाश के गर्त की ओर ढकेल रहे थे। ऐसी भारी मुसीबत में जब सन्त पिता लियो इनका सामना कर ही रहे थे कि एयुतिकुस नामक एक यूनानी मठवासी ने प्रभु येसु के मानव स्वभाव के सम्बन्ध में यह भारी भ्रम फैलाया कि येसु का शरीर धारण होते ही उनका मानव स्वभाव ईश्वरीय स्वभाव में विलीन हो गया। अतः प्रभु येसु वास्तव में मानव नहीं थे। यह भ्रामक शिक्षा इटली, स्पेन और पूर्वी कलीसिया में दूर-दूर तक गुप्त रूप से फ़ैल गयी थी। अतः अनेकों विश्वासी कलीसिया से भटक गए। इस भ्रमपूर्ण सिद्धांत को झूठा सिद्ध करने तथा कलीसिया के धर्मसिद्धांत को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए सन्त पिता ने सुदृढ़ कदम उठाया। उन्होंने इस विषय में अपने सुप्रसिद्ध प्रेरियिक पत्र कुस्तुन्तुनिया के महाधर्माध्यक्ष सन्त फ्लेवियन को भेजा। उसमे सन्त पिता ने कलीसिया के सिद्धांत को स्पष्ट करते हुए बताया कि ख्रीस्त एक ही व्यक्ति है; किंतु उनमे दो पृथक स्वभाव है; अर्थात ईश्वरीय स्वभाव और मानवीय स्वभाव। प्रारंभिक कलीसिया में विश्वास के सिद्धांतों की घोषणा में सन्त पिता की अचूकता का यह प्रमुख उदाहरण है। सन 451 की कलसिदोन की चौथी महासभा जिसमें पूर्वी कलीसिया के करीब 600 धर्माध्यक्षगण, जो सन्त पिता के प्रतिनिधि की अध्यक्षता में उपस्थित हुए थे, उन्होंने आधिकारिक रूप से सन्त पिता के इस महत्वपूर्ण प्रलेख को कलीसिया की सच्ची शिक्षा के रूप में घोषित करते हुए कहा- "सन्त पिता लियो के द्वारा सचमुच पेत्रुस ही बोले है।"
सन्त पिता लियो ने कलीसिया के अनुशासन में यथेष्ट सुधार किया और रोम की प्राथमिकता को बनाये रहा। फ्रांस की कलीसिया में एर्ल्स के महाधर्माध्यक्ष हिलेरियुस संत पिता के प्रतिनिधि के रूप में विशेष अधिकार प्राप्त व्यक्ति थे। किन्तु वे धीरे-धीरे अपने अधिकार को बढ़ा कर सीमा का उल्लंघन करने लगे। तब सन्त पिता ने उन्हें नियम के अधीन रहने का परामर्श दिया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। सम्राट ने भी सन 445 में एक आदेश-पत्र जारी कर सन्त पिता के कार्यों का समर्थन किया और उनकी श्रेष्ठता को विधिवत मान्यता दी।

सन्त पिता लियो के प्रशासन काल में इटली पर विनाशकारी बर्बर जाति के नेता अटिला ने आक्रमण किया। उत्तरी इटली के सब बड़े नगरों को लूटने और नष्ट करने के पश्चात् रोम नगर पर आसानी से विजय पाने की आशा से वे आगे बढ़ रहे थे। तभी सन्त पिता पवित्रात्मा से परिपूर्ण होकर निर्भीकता से अटिला से मिलने गए। ईश्वरीय शक्ति से सन्त ने अटिला को जो 'ईश्वर का कोड़ा' कहलाता था, कड़े शब्दों में आदेश दिया -"तुरंत यहाँ से लौट जाओ।" सन्त के आदेश से भयभीत होकर अटिला उसी क्षण अपनी सेना के साथ लौट गया। जब उसके सेनापतियों ने बाद में ुब्से पूछा कि आपने क्यों इस प्रकार की कायरता दिखाई ? तो उसने कहा- "मैंने सन्त पिता के दोनों ओर दो सम्माननीय व्यक्तियों को तलवार खींचकर खड़े देखा। वे भयानक इशारों द्वारा मुझे धमका रहे थे कि यदि मैं सन्त पिता के आदेश का पालन न करूँ तो मुझे कड़ा दण्ड मिलेगा। इस कारण विवश होकर मुझे लौटना पड़ा।"
कुछ समय के पश्चात् दक्षिण की ओर से बर्बर जातियों ने रोम पर आक्रमण किया। इस अवसर पर भी सन्त लियो ने अपनी प्रार्थना एवं नैतिक बल के द्वारा नगर को विनाश से बचाया। वे अपने कार्यकाल की सब सफलताओं का श्रेय कलीसिया के मुख्य संचालक सन्त पेत्रुस को देते थे। इस प्रकार सन्त पिता लियो ने बीस वर्षों तक कलीसिया का सफल संचालन किया और अंत में नवम्बर सन 461 को उनका देहान्त हो गया। 
माता कलीसिया 10 नवम्बर को संत पिता लियो का पर्व मनाती है।

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