सन्त पिता लियो के प्रशासन काल में इटली पर विनाशकारी बर्बर जाति के नेता अटिला ने आक्रमण किया। उत्तरी इटली के सब बड़े नगरों को लूटने और नष्ट करने के पश्चात् रोम नगर पर आसानी से विजय पाने की आशा से वे आगे बढ़ रहे थे। तभी सन्त पिता पवित्रात्मा से परिपूर्ण होकर निर्भीकता से अटिला से मिलने गए। ईश्वरीय शक्ति से सन्त ने अटिला को जो 'ईश्वर का कोड़ा' कहलाता था, कड़े शब्दों में आदेश दिया -"तुरंत यहाँ से लौट जाओ।" सन्त के आदेश से भयभीत होकर अटिला उसी क्षण अपनी सेना के साथ लौट गया। जब उसके सेनापतियों ने बाद में ुब्से पूछा कि आपने क्यों इस प्रकार की कायरता दिखाई ? तो उसने कहा- "मैंने सन्त पिता के दोनों ओर दो सम्माननीय व्यक्तियों को तलवार खींचकर खड़े देखा। वे भयानक इशारों द्वारा मुझे धमका रहे थे कि यदि मैं सन्त पिता के आदेश का पालन न करूँ तो मुझे कड़ा दण्ड मिलेगा। इस कारण विवश होकर मुझे लौटना पड़ा।"
कुछ समय के पश्चात् दक्षिण की ओर से बर्बर जातियों ने रोम पर आक्रमण किया। इस अवसर पर भी सन्त लियो ने अपनी प्रार्थना एवं नैतिक बल के द्वारा नगर को विनाश से बचाया। वे अपने कार्यकाल की सब सफलताओं का श्रेय कलीसिया के मुख्य संचालक सन्त पेत्रुस को देते थे। इस प्रकार सन्त पिता लियो ने बीस वर्षों तक कलीसिया का सफल संचालन किया और अंत में नवम्बर सन 461 को उनका देहान्त हो गया।
माता कलीसिया 10 नवम्बर को संत पिता लियो का पर्व मनाती है।

Add new comment