सन्त जेन फ्रांसेस डी शन्ताल

गरीबों तथा असहायों की सेवा में समर्पित 'विसिटेशन' धर्मसंघ के संस्थापिका सन्त जेन फ्रांसेस डी शन्ताल का जन्म फ़्रांस देश के दिजोन नगर में एक कुलीन परिवार में  सन 1572 में हुआ। उनके माता-पिता बड़े ही धार्मिक ख्रीस्तीय थे। उन्होंने जेन को बचपन से ही उत्तम ख्रीस्तीय शिक्षा प्रदान की। फलस्वरूप उनके हृदय में बाल्यावस्था से ही गरीबों तथा दुःखियों के प्रति बहुत प्यार एवं सहानुभूति थी। 
बीस वर्ष की अवस्था में जेन का विवाह एक कुलीन युवक ख्रिस्टोफर शन्ताल से हुआ। उनका पारिवारिक जीवन अत्यंत प्रेममय एवं सुखी। था उनकी चार संतान भी हुई। एक पुत्र तथा तीन पुत्रियाँ। किन्तु केवल नौ वर्षों के पश्चात् उनके भविष्य के सारे सुनहरे सपने अचानक टूट गए। ख्रिस्टोफर अपने साथियों के साथ शिकार के लिए जंगल में गए। वहाँ शिकार खेलते समय उनके एक साथी की गोली भूल से ख्रिस्टोफर  के वक्ष पर आ लगी और वहीं उनका दर्दनाक देहान्त हो गया। जेन विधवा हो गयी। 
किन्तु इस अपार दुःख में भी जेन निराश न हुई; बल्कि ईश्वर पर अटूट विश्वास एवं भरोसा रखते हुए उन्होंने स्वयं को प्रभु के हाथों में सौंप। दिया अपने पति की मृत्यु का कारण बने उस साथी को उन्होंने पूर्ण हृदय से क्षमा किया और प्रभु से निरंतर याचना करती रही कि उनके आगे के जीवन के लिए वे उन्हें मार्ग दिखाए। प्रभु ने उनकी प्रार्थना सुनी और जेनेवा के धर्माध्यक्ष सन्त सन्त जेन फ्रांसेस डी सेल्स को मार्गदर्शक एवं आध्यात्मिक संचालक के रूप में उन्हें प्रदान किया।
जेन ने सन्त फ्रांसिस के मार्गदर्शन में अपने विषय में ईश्वर की योजना को पहचान लिया। अपने बच्चों की शिक्षा पूर्ण होने तथा बड़ी पुत्री का विवाह होने तक उन्होंने प्रतीक्षा की। तब  प्रेरणा के अनुसार गरीबों तथा अनाथों की सेवा के लिए 'विसिटेशन' नामक धर्मसंघ की स्थापना के लिए वह अपना घर-परिवार छोड़कर निकल पड़ी। उनकी दोनों छोटी पुत्रियाँ भी धर्मबहन बनने की इच्छा से उनके साथ जाने के लिए तैयार हो गयी। किन्तु उनके एकलौते पुत्र को अपनी प्यारी माँ का यह वियोग असहनीय प्रतीत हुआ। अपनी माँ को रोकने की इच्छा से वह उनके सामने घर की देहली पर लेट गया। किन्तु उस पवित्र माँ ने असाधारण धैर्य के साथ ईश्वर की इच्छा को शिरोधार्य किया और अपने लड़के के शरीर को लांघते हुए वह आगे बढ़ गयी।

जेन ने सन्त फ्रांसिस के सहयोग के फ़्रांस के अन्नेसी नगर में सन 1610 में पवित्रतम त्रित्व के पर्व के दिन 'विसिटेशन' नामक संस्था की नींव डाली जिसकी सदस्याएं गरीबों, अनाथों व परित्यक्तों की सेवा के लिए समर्पित है। नगर की अनेक भक्ति युवतियां तथा विधवाएं इस संस्था में भर्ती होकर दीन-दुःखियों की सहायता के लिए आगे आयी। यह संस्था ईश्वर की इच्छानुसार शीघ्र फलती-फूलती गयी और जेन ने अपनी संस्था के विकास को देखा और ईश्वर को निरंतर धन्यवाद देते हुए अंत तक दीन-हीनों की सेवा में तल्लीन रही। अंत में 12 दिसंबर 1641 को 69 वर्ष की आयु में उनका देहान्त हुआ। 
सन 1767 में सन्त पिता क्लेमेंट 23वें ने दीन-दुःखियों की माँ, जेन को सन्त घोषित किया। सन्त जेन फ्रांसेस डी शन्ताल निरन्तर कहा करती थी "हम अपने सारे दिल से ईश्वर को प्यार करें और ईश्वर के प्यार से अपने पड़ोसियों को भी अपने समान प्यार करें।"
माता कलीसिया सन्त जेन फ्रांसेस डी शन्ताल का पर्व 12 दिसम्बर को मनाती है।

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