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सन्त आग्नेस
सन्त आग्नेस
"आप मेरे रक्त से अपनी यह तलवार रंग सकते हैं, किन्तु प्रभुवर को समर्पित मेरी इस काया को कलंकित कदापि नहीं कर सकेंगे।"
यह है सन्त आग्नेस के शब्द जिन्होंने अपने कौमार्य की रक्षा के लिए खुशी से अपने प्राण दे दिये। सन्त आग्नेस का जन्म तीसरी शताब्दी के अन्त में रोम नगर के एक कुलीन एवं सम्पन्न परिवार में हुआ था। उसके माता- पिता प्रभु येसु के परम भक्त थे। अतः बचपन से ही आग्नेस के हृदय में येसु के प्रति गहरा प्रेम था और उसने स्वयं को कुँवारी के रूप में प्रभु को समर्पित कर लिया था। आग्नेस बहुत ही सुन्दर बालिका थी। अतः किशोरावस्था से ही रोम के अनेक कुलीन नवयुवक उससे विवाह करना चाहते थे। किन्तु जो भी आग्नेस से विवाह का प्रस्ताव रखता, उन सबको वह एक ही उत्तर देती- “ईश्वर का पुत्र ख्रीस्त येसु जो स्वर्ग के राजा है, वही मेरा पति है। मैंने अपना कौमार्य उन्हीं को अर्पित कर दिया है। शरीर की आँखों से उन्हें कोई नहीं देख सकता।" जब उन नवयुवकों ने देखा कि आग्नेस किसी भी तरह उनके वश में नहीं आ रही है तो उन्होंने राज्य के उच्च अधिकारियों से उसकी शिकायत कर दी कि आग्नेस ख्रीस्त की अनुयायी है और वह उसकी आराधना करती है।
उन दिनों रोम में सम्राट डायोक्लेशियन का शासन था। वह ईसाईयों का कट्टर विरोधी था और बड़ी निर्दयता से उन पर अत्याचार करता था। यह जानकारी पाते ही सम्राट के आदेश से आग्नेस को पकड़ कर राज्यपाल के पास ले जाया गया। राज्यपाल ने सोचा- "लड़की कम उम्र की है, नादान है। डराने धमकाने से जल्द ही राह पर आ जाएगी।" किन्तु उसका विचार गलत निकला। आग्नेस ने स्पष्ट शब्दों में घोषणा की “प्रभुवर ख्रीस्त के सिवा कोई भी मेरा पति नहीं होगा। मैं उन्हीं के चरणों की दासी हूँ, वही मेरे स्वामी हैं।" राज्यपाल को बड़ा क्रोध आया। उसने आग्नेस को कड़े शब्दों में धमकाना शुरू किया। किन्तु आग्नेस टस से मस नहीं हुई। इस पर राज्यपाल ने आदेश दिया कि आग्नेस को जिन्दा जला दिया जाए। उन दिनों ईसाइयों को सताने के बड़े क्रूर और निर्मम तरीके अपनाये जाते थे- जैसे शिकंजे में बाँध कर खींचना, गर्म सलाखों से जलाना, काँटेदार कोड़ों से मार- मार कर शरीर का माँस उधेड़ डालना इत्यादि। इसके लिए सामग्री एक- एक करके लायी जा रही थी। लोगों के दिल काँप रहे थे। किन्तु आग्नेस के चेहरे पर प्रसन्नता थी। वह कह रही थी- “मैं कितनी भाग्यशाली हूँ कि शीघ्र अपने प्रियतम से मिल जाऊँगी।'' येसु के साथ स्वर्गीय आनन्द पाने की कल्पना से वह हर्ष- विभोर हो उठी। तब वे दुष्ट अत्याचारी आग्नेस को किसी देवता की मूर्ति के सम्मुख ले गये और उसकी आराधना करने की माँग की। किन्तु आग्नेस ने केवल क्रूस का चिन्ह बनाने के लिए हाथ उठाये। इस पर राज्यपाल ने आग्नेस को धमकाया “यदि तुम मेरी बात नहीं मानोगी तो तुम्हें वेश्यालय में भिजवा दूंगा। वहाँ शहर के आवारा नौजवान तुम्हारे कौमार्य को कुचल डालेंगे, जिस पर तुमको इतना गर्व है।" आग्नेस ने बड़ी निर्भीकता से उत्तर दिया- "ईसा मसीह मेरे रक्षक और प्रभु है। मुझे दृढ़ विश्वास है कि वे मेरी रक्षा करेंगे। आप मेरे रक्त से अपनी यह तलवार रंग सकते हैं। किन्तु प्रभुवर को समर्पित मेरी इस काया को कंलकित कदापि नहीं कर सकेंगे। " यह सुनकर राज्यपाल आग- बबूला हो उठा। उसने जैसा कहा था, वैसा ही किया और आग्नेस को वेश्यालय में ले जाने और वहाँ उसका कौमार्य नष्ट करने का आदेश दिया। यह आदेश सुनकर नगर के अनेक आवारा युवक उसकी ओर लपके। किन्तु जो भी आग्नेस के सामने आता, उसके चेहरे पर झलकती पवित्रता को देखकर एक अजीब- भय से कॉप उठता और किसी को यह साहस नहीं हुआ कि आग्नेस को छू सके। एक दुष्ट युवक आग्नेस को पकड़ने के लिए आगे बढ़ा ही था कि उस पर आकाश से बिजली गिरी और वह अन्धा हो कर वहीं गिर पड़ा और जोर- जोर से रोने लगा। किन्तु आग्नेस अपने प्रभु की महिमा गा रही थी। इस पर उस युवक के साथी उसे लेकर आग्नेस के पास आये और उससे निवेदन किया कि वे उस युवक को क्षमा कर दें और अपने प्रभुवर से प्रार्थना करें कि वह फिर देख सके। आग्नेस ने युवक को क्षमा कर दिया और प्रभु से प्रार्थना की; और वह युवक तुरन्त चंगा हो गया। इस पर लोगों में भय छा गया और अनेकों ने प्रभु में विश्वास किया। जब राज्यपाल को इसकी सूचना मिली, तो उसने तुरन्त आग्नेस का सिर धड़ से अलग कर देने का आदेश दिया। यह सुनकर आग्नेस पुलकित हो उठी। उस निर्मम हत्याकाण्ड के लिए नगर के बीचों बीच एक मंच बनवाया गया। वहाँ जल्लाद हाथ में नंगी तलवार लिये खड़ा था। आग्नेस हाथ- पैरों में हथकड़ियाँ और बेडियाँ पहने खुशी से मंच की ओर बढ़ी जैसे कोई वधु बड़ी उमंग के साथ विवाह मंडप की ओर बढ़ रही हो।
मंच पर पहुँच कर वे घुटनों के बल बैठ गयी और उसने यो प्रार्थना की- “मेरे स्वामी, मेरे राजा, तुझे लाखों धन्यवाद। तूने अपनी इस दीन दासी पर बड़ी कृपा की है। तूने मेरे कौमार्य को जो तुझे समर्पित है, बचा लिया। अब मैं तेरे पास आ रही हूँ। अपनी इस दीन दासी को अपने चरणों में स्थान देना।” यह कह कर उसने सिर झुका दिया। तुरन्त उसकी फूल- सी कोमल काया पर जल्लाद की तलवार पड़ी और एक ही वार से उसका सिर धड़ से अलग हो कर गिर पड़ा। इस प्रकार आग्नेस प्रभु को समर्पित अपने कुँवारेपन की रक्षा के लिए शहीद हो गयी और उसकी निर्मल आत्मा तुरन्त अपने प्रभुवर के चरणों में अनन्त महिमा पाने के लिए पहुँच गयी। यह माना जाता हैं कि शहादत के समय उसकी आयु मात्र तेरह वर्ष ही थी।
रोम नगर के बाहर नोमेन्टाइन पथ के किनारे इस सन्त कुँवारी एवं शहीद की समाधि बनी हुई है। सन्त आग्नेस कुँवारियों की संरक्षिका मानी जाती है। कलीसिया में प्रतिवर्ष 21 जनवरी को इस सन्त का पर्व मनाया जाता है।
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