संत रोबर्ट बेल्लारमिन

St Robert Bellarmine

विख्यात येसु समाजी ईश-शास्त्री, लेखक एवं कार्डिनल संत रोबर्ट बेल्लारमिन जन्म इटली के मोन्टेपुलासियानो नगर के एक कुलीन परिवार में 4 अक्टूबर सन1542  को हुआ। परिवार के दस बच्चों में वे तीसरे थे। उनके पिताजी का नाम वीन्सेन्ज़ो था और माँ का नाम सिंथिया सेरवीनी था जो संत पिता मार्सेलुस द्वितीय की भतीजी थी। वह अत्यंत भक्त महिला थी और प्रार्थना, उपवास, तपस्या एवं भिक्षा दान उनके जीवन के नियम थे।

रोबर्ट की प्रारम्भिक शिक्षा उनकी अपनी ही नगर के येसु समाजी विद्यालय में हुई। वे बाल्यावस्था से ही बड़े प्रखर-बुद्धि एवं अध्ययन में अग्रणी थे। साथ ही इटालियन एवं लैटिन साहित्य में उनकी रूचि असाधारण थी। इन भाषाओं में उन्होंने अनेक कविताओं की रचना भी की। उनके पिता चाहते थे कि अध्ययन के पश्चात रोबर्ट प्रशासकीय विभाग में अफसर बने; और परिवार का नाम रोशन करें। किन्तु माँ चाहती थी कि वे येसु समाजी पुरोहित बने। रोबर्ट का जीवन माँ के विचारों से अधिक प्रभावित था, और 20 सितम्बर 1560 को उन्होंने येसु समाज के नवशिष्यालय में प्रवेश   लिया और एक वर्ष बाद उन्होंने धार्मिक व्रत लिए। तीन वर्षों तक रोम में रहने के पश्चात उन्हें पीडमोंट के येसु समाजी भवन में भेजा गया। वहाँ उन्होंने ग्रीक भाषा का अध्ययन किया। अगले तीन वर्षों में उन्होंने रोमन कॉलेज में दर्शनशास्त्र का अध्ययन किया और सन 1567 में पादुआ एवं लुवेन विश्वविद्यालय में ईश-शास्त्र का अध्ययन किया। वहीं उसी वर्ष उनका पुरोहिताभिषेक हुआ। तब वे लुवेन विश्वविद्यालय में प्राध्यापक एवं धर्मोपदेशक के पद पर नियुक्त हुए। उनके सुव्यवस्थित विचार, अद्भुत स्मरण-शक्ति एवं कलीसिया के आचार्यों की रचनाओं के गहरे ज्ञान के कारण हज़ारों की संख्या में लोग उनका प्रवचन सुनने के लिए एकत्र होते थे और महान धर्मोपदेशक के रूप में उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गयी। 

सन 1576 में उन्हें वापस इटली बुलाया गया और रोमन कॉलेज में कलीसिया के विरोधी प्रोटेस्टेंटों के गलत प्रचारों का जवाब देने का कार्य सौंपा गया जिसे उन्होंने बड़ी कुशलता एवं जिम्मेदारी के साथ निभाया और हर विरोधी मत का मुँह तोड़ जवाब दिया। सन १५९० में उन्हें फ्रांस में प्रमुख ईश-शास्त्री के रूप में धर्मविरोधियों के सम्मुख कलीसिया के हितों की रक्षा करने के लिए भेजा गया। वहाँ भी उन्होंने विरोधियों का डटकर सामना किया और कलीसिया में विश्वास की रक्षा की। इस बीच उनके प्रवचनों को पुस्तक के रूप में संग्रह करके प्रकाशित किया गया जिसे संत पिता ग्रेगरी 14 वें ने विशेष स्वीकृति दी। साथ ही फादर रोबर्ट ने युवाओं के विश्वास निर्माण के लिए धर्मज्ञान की एक नवीन पुस्तक की रचना की जिसका अनुवाद यूरोप की अनेकों भाषाओं में किया गया और उसका उपयोग अब तक इटली में होता था। 

तदुपरांत फादर बेल्लारमिन ने फिर से रोमन कॉलेज में आध्यात्मिक संचालक का पद ग्रहण किया। उस समय संत अलोशियस गोनसागा उनके संचालन में रहे जिनका देहांत सन 1591 में हुआ। उनकी धन्य घोषणा में फादर बेल्लारमिन ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। सन 1595 में उन्हें नेपिल्स में येसु-समाजियों के प्रोविंशियल नियुक्त किया गया।  सन 1597 में संत पिता क्लेमेंट आठवें ने उन्हें अपना निजी ईश-शास्त्री एवं परामर्शदाता बनाया और सन 1599 में उन्ही संत पिता ने उन्हें कार्डिनल के पद पर नियुक्त किया, जबकि वे पुरोहित ही थे। क्योंकि वे कलीसिया में सर्वश्रेष्ठ ईश-शास्त्री माने जाते थे; उन्हें कापुआ के महाधर्माध्यक्ष भी नियुक्त किया गया। संत पिता ने स्वयं ही उनका अभिषेक किया जो उनके प्रति संत पिता के विशेष सम्मान का चिन्ह था।

इतना व्यस्त होते हुए भी उनका आध्यात्मिक जीवन अत्यंत गहरा एवं सबके लिए आदर्श था। उनका प्रार्थनामय जीवन, गहरी नम्रता, निर्धनता, गरीबों के प्रति विशेष प्रेम एवं असाधारण कर्तव्यपरायणता को देखते हुए उनके जीवनकाल में ही लोग उन्हें संत मानते थे। इस प्रकार कलीसिया की रक्षा में निरंतर अथक परिश्रम करते हुए सन 1621 में उनका स्वास्थ्य बहुत बिगड़ गया और वे अस्वस्थ रहने लगे। अतः उन्होंने सक्रीय जीवन से विराम लिया और प्रभु से मिलने की प्रतीक्षा में दिन बिताने लगे। अंत में 17 सितम्बर 1621 को 79 वर्ष की आयु में वे अपना अनंत पुरस्कार पाने के लिए बुला लिए गए। 

29 जून 1930 को संत पिता पियूस ग्यारहवें ने उन्हें संत घोषित किया और एक वर्ष पश्चात उन्ही संत पिता ने उन्हें कलीसिया में धर्माचार्य की उपाधि से विभूषित किया। उनका पर्व 17 सितम्बर को मनाया जाता है।

Add new comment

4 + 3 =