संत पेत्रुस

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सारे गलीलिया, यहूदिया तथा समारिया में तहलका मचा हुआ था | घर-घर योहन बपतिस्ता की चर्चा हो रही थी | दूर-दूर से लोग उसका प्रवचन सुनने आते, पश्चाताप करते तथा यर्दन में बप्तिस्मा ग्रहण करते | इससे अधिक तो वे आने वाले मुक्तिदाता के विषय में चर्चा करते थे | और जब योहन ने बताया कि वे आ गए है और हमारे बीच में हैं तब तो लोग मुक्तिदाता को देखने तथा उससे मिलने के लिये अधिक हो गये |

योहन बपतिस्ता के अनेक शिष्यों में अन्द्रेयस भी एक थे | एक दिन अपने एक मित्र के साथ वे योहन बपतिस्ता के साथ-साथ चल रहे थे | उहोनें कुछ दूर पर येसु को जाते देखा उसने अपने इन दोनों शिष्यों से कहा, “देखो ईश्वर का मेमना” योहन बपतिस्ता की बात सुन अन्द्रेयस अपने मित्र के साथ येसु के पीछे हो लिये | येसु ने उनसे पूछा, “क्या चाहते हो?” उन्होंने उत्तर दिया, “गुरुवर आप कहाँ रहते हैं?” येसु ने कहा, “आकर देखो  |” वे दोनों उनके साथ गए और उस दिन उन्हीं के साथ रहे |

अन्द्रेयस ने अपने भाई पेत्रुस से आकर कहा, “हमें ख्रीस्त मिल गये हैं  |” और वे पेत्रुस को लेकर येसु के पास आये | येसु ने पेत्रुस को देखकर कहा, “तुम योहन के पुत्र सिमोन हो | तुम केफस (अर्थात पेत्रुस)  कहलाओगे | यह पेत्रुस की पेत्रुस से पहली मुलाकत थी | इसके बाद योहन बपतिस्ता द्वारा दी जा रही गवाही और पश्चाताप तथा मार्ग तैयारी की बातें पेत्रुस और अन्द्रेयस बराबर सुनते रहते थे |

येसु ने अपना सार्वजनिक जीवन शुरू कर दिया था | वे लोगों को शिक्षा देने लगे | भीड़ बढ़ने लगी | एक दिन झील के किनारे भीड़ बहुत बढ़ गई | उस पर काबू पाना मुश्किल हो गया | अतः येसु झील के किनारे खड़ी नावों में से एक पर सवार हो गये | यह नाव पेत्रुस की थी | भीड़ और मछुआरे सब उनका प्रवचन सुन रहे थे | इसके बाद येसु ने पेत्रुस और उसके भाई अन्द्रेयस से कहा, “नाव को गहरे पानी में ले चलो," फिर उन्होंने कहा, "अपना जाल फेंकों |" दोनों भाई कहने लगे. “हमने सारी रात परिश्रम किया पर हमें मछलियाँ नहीं मिलीं, अब दिन में क्या आशा करें |” येसु ने कहा, “मैं जो कहता हूँ वही अकरो |” पेत्रुस ने जाल फेंका जब उसे खींचा तो उसमें इतनी मछलियाँ फंसी थी कि जाल फटने को था दोनों भाई डर गए थे बोले, "प्रभु मेरे पास से चले जाइए |” येसु ने कहा, “डरो मत मेरे पीछे आओ | मैं तुम्हें मनुष्यों का मछुआरा बनाऊंगा |” और दोनों भाई अपना सब कुछ छोड़ येसु के पीछे हो लिए | पेत्रुस के मन में तो येसु के प्रति विश्वास उसी समय पैदा हो गया था जब उन्होंने बुखार से पीड़ित उनकी सास को चंगा कर दिया था |

पेत्रुस जरा उतावले स्वभाव के व्यक्ति थे | हर बात में जल्दबाजी दिखाते थे | किसी भी बात अथवा काम पर सोचे बिना उसे कर बैठते थे | अंतिम भोज के समय बड़े जोश में आकर कहते हैं, “प्रभु में इस समय आपके पीछे क्यों नहीं आ सकता? मैं आपके लिए अपने प्राण दे दूँगा |” पर बाद में अपनी निर्बलता के कारण तीन बार इनकार करते हैं | सिपाहियों को येसु की ओर बढ़ते देख तलवार खिंच लेते हैं | एक सिपाही पर वार भी करके उसका कान काट डालते हैं | पर येसु के इस कथन पर की तलवार को म्यान में रखना पड़ता है, पेत्रुस तलवार को म्यान में रखो क्योंकि जो तलवार खींचते हैं, तलवार से मारे जाएंगे |” ये कुछ ऐसी घटनाएँ है जो उनके उतावलेपन को प्रकट करती हैं |

पेंटेकोस्ट के बाद पवित्र आत्मा से पूर्ण हो कर पेत्रुस बड़ी निडरता से यहूदियों की भीड़ को संबोधित करते और ख्रीस्त की साक्षी देते हैं | यहूदी महासभा द्वारा किए गए अत्याचार को साहस के साथ सह लेते हैं | प्रभु उनकी सहायता करता था | येसु के नाम पर उन्होंने अनेक चमत्कार किये | रोगियों को चंगा किया | मृतकों को जिलाया | इसके साथ ही ख्रीस्त की कलीसिया की स्थापना की परन्तु इतना सब होते हुए भी पेत्रुस में कुछ कमी भी थी | ऊँच-नीच के भेद-भाव की सामाजिक बुराई से वे अछूता नहीं थे |

यहूदी ऊँची जाती थी | अन्य दूसरों के घरों में प्रवेश करना तथा उनके साथ भोजन करना या किसी तरह का संबंध बनाना उसकी मर्यादा के खिलाफ माना जाता था | पेत्रुस ने तो उन गैर-यहूदियों के साथ भी भोजन करने से इंकार कर दिया था जिन्होंने ख्रीस्त धर्म स्वीकार कर लिया था | यहूदी केवल अपने को ही शुद्ध और पवित्र मानते थे |

जब स्वर्ग दूत की आज्ञा से इटली के शतपति कारनेलियुस ने पेत्रुस को अपने घर बुलाया उस समय उसके मन में यही विचार उठा, “मैं एक गैर यहूदी के घर में कैसे प्रवेश करूँ?” उसी समय जब वह छत पर प्रार्थना कर रहे थे | तो आत्मा से आवेष्ट हो गये | उन्होंने देखा कि स्वर्ग खुल गया है और लंबी चौड़ी चादर जैसी कोई चीज़ उतर रही है और उसके चहरों कोने पृथ्वी पर रखे जा रहे हैं, उसमें सब प्रकार के चौपाए, पृथ्वी पर रेंगनेवाले जीव-जंतु और आकाश के पक्षी हैं | उसे एक वाणी सुनाई दी, पेत्रुस उठो, मारो और खाओ |” किन्तु पेत्रुस ने उत्तर दिया, “प्रभु! कभी नहीं मैंने कभी कोई अपवित्र अथवा अशुद्ध वास्तु नहीं खायी |” उसे दूसरी बार सुनाई पड़ा, “ईश्वर ने जिसे शुद्ध घोषित किया, तुम उसे अशुद्ध मत कहो |” तीसरी बार ऐसा ही हुआ और इसके बाद वह चीज फिर स्वर्ग में ऊपर उठा ली गई |

पेत्रुस इस दिव्य दर्शन पर विचार कर रहे थे कि शतपति के नौकर आ गए | पेत्रुस उनके साथ गये | कारनेलियुस के घर में यह कहते हुए प्रवेश किया, “आप जानते हैं कि गैर-यहूदी से सम्पर्क रखना अथवा उसके घर में प्रवेश करना यहूदी के लिए सख्त मना है किन्तु ईश्वर ने मुझ पर प्रकट किया है कि किसी भी मनुष्य को अशुद्ध अथवा अपवित्र नहीं करना चाहिए |” इस तरह पेत्रुस उन समय समाज में फैली इस बुराई को दूर करने तथा सही भाई-चारे की भावना का आरम्भ करने की शुरुआत करते हैं |

पुनर्जीवित येसु के सामने वे दृढ़ता एवं विश्वास के साथ उन्हें तीन बार स्वीकार करते हुए कहते है, “जी हाँ प्रभु! आप जानते हैं कि मैं आपको प्यार करता हूँ |" और इस प्रकार अपने पहले तीन बार के इंकार को स्वीकरण में बदल देते हैं | और प्रभु उससे कहते है | “मेरी भेड़ों को चराओ |” पेत्रुस आरंभिक कलीसिया को सफलतापूर्वक मार्गदर्शन देते रहे |

यह तो निश्चित है कि प्रेरित पेत्रुस रोम गये थे | और अपने अंतिम दिनों में वहीँ थे तथा वहीँ लोहुगावाह हुए | रोम सम्राट नीरो के शासन काल में ख्रीस्त अनुयायियों के साथ बड़ा अत्याचार हुआ | उस समय एक भयंकर अग्निकांड में सारा रोम नगर जलकर भस्म हो गया | नगर में आग का दोष ख्रीस्तीयों के सिर मढ़ा गया और इसी धार्मिक सतावट में प्रेरित पेत्रुस को क्रूस पर ठोंक दिया | उसके क्रूस को उल्टा (सिर के बल) गाड़ा गया था |

कलीसिया प्रेरित पेत्रुस एवं पॉल का पर्व एक ही दिन अर्थात 29 जून को मानती है |

- चार्ल्स सिंगोरिया

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