संत दोमिनिक

Saint Dominic

संत संत दोमिनिक कलीसिया में दोमिनिक समाज के संस्थापक मरियम भक्ति के प्रचारक के रूप में प्रसिद्ध है। साथ ही साथ कलीसिया के संकट-काल में, विशेष कर 'अलबिजेन्सियन' नामक विधर्म के कारण जब यूरोप की कलीसिया का बहुत बड़ा भाग भटक गया था, उन भटके हुए विश्वासियों को सही मार्ग पर वापस लाने में उनका योगदान सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहा है।

संत दोमिनिक का जन्म  सन 1170 में स्पेन देश में ओसमा धर्मप्रांत के 'कालरुएगा' नामक नगर में हुआ। उनके माता-पिता स्पेनिश कुलीन वर्ग के सदस्य थे और शासक परिवार से संबंधित थे। उनके पिता फेलिक्स गाँव के शाही वार्डन थे। और उनकी मां जोआना अपने आप में एक पवित्र महिला थी।

दोमिनिक की बुद्धि बचपन से ही अत्यंत प्रखर थी और ज्ञान प्राप्ति में उनकी विशेष रुचि थी। प्रारम्भ में 14 वर्षो तक उनकी शिक्षा अपने चाचा की देख-रेख में हुई जो पलेन्सिया के पल्ली पुरोहित थे। दोमिनिक ने 25 वर्ष की उम्र तक पलेन्सिया विश्वविद्यालय में कला, दर्शन एवं ईश-शास्त्र का अध्ययन किया। तत्पश्चात उनका पुरोहिताभिषेक हुआ। ओसमा के धर्माध्यक्ष ने फादर  दोमिनिक की असाधारण प्रतिभा, कार्यकुशलता एवं पवित्र जीवन को देखते हुए उन्हें अपने महा गिरजाघर के मुख्य पुरोहित नियुक्त किया। अपनी दक्षिण-फ़्रांस की यात्रा के दौरान उन्हें अत्यंत दुःख और आश्चर्य हुआ जब उन्होंने देखा कि वहाँ की कलीसिया के हज़ारो लोग "अलबिजेन्सियन" विधर्म का अनुसरण करते हुए सच्चे विश्वास से भटक गए है। 

इस विधर्म का मुख्य सिद्धांत यह था कि साड़ी सृष्टि में दो विपरीत शक्तियों के बीच का संघर्ष है; अर्थात सच्चाई, भलाई और ज्योति जो प्रभु येसु एवं नए व्यवस्थान के ईश्वर से सम्बंधित है; दूसरा था - बुराई, अन्धकार तथा सभी सृष्ट पदार्थ; धन-सम्पति, भोजन जहाँ तक की मानव-शरीर भी बुरा एवं घृणित है- मनुष्य की आत्मा को शैतान ने उसके शरीर में कैद कर रखा है। मानव-मुक्ति का एकमात्र उपाय है - भला और सच्चा आध्यात्मिक जीवन जीना। वे प्रभु येसु ख्रीस्त को ईश्वर मानते थे। किन्तु उनके मानव शरीर को माया-मात्र समझते थे। इस प्रकार वे कलीसिया की शिक्षा का विरोध करते थे। कलीसिया पर छाये इस भारी संकट का अनुभव करते हुए संत दोमिनिक के ह्रदय पर गहरा आघात हुआ। उन्होंने अपना जीवन उन विधर्मियों के मन- परिवर्तन तथा सच्चे विश्वास की रक्षा के लिए समर्पित करने का संकल्प किया। 

उन्होंने इस विधर्म के बारे में संत पिता से भी चर्चा की। और संत पिता ने उन्हें दक्षिण-फ़्रांस के लोगो को सच्ची कलीसिया में वापस लाने के लिए नियुक्त किया। उस समय दोमिनिक मात्र 35 वर्ष के थे। उन्होंने इस कार्य के लिए सर्वप्रथम निरंतर प्रार्थना एवं तपस्यामय जीवन प्रारम्भ किया। साथ ही उन्होंने धर्मोपदेश देना शुरू किया। और सन 1215 में टुलुस में एक धर्मसंघ की स्थापना कीऔर उसे माता मरियम के संरक्षक में सौंप दिया। साथ ही संत दोमिनिक ने महिलाओ के एक धर्मसंघ की भी स्थापना की जिसका उद्देश्य था कि अपनी प्रार्थनाओ, तपस्या एवं सरल के द्वारा पुरोहितो को सहायता करना तथा महिलाओं एवं बालिकाओं को इस 'विधर्म' के प्रभाव से बचाने के लिए कार्य करना। 

प्रारम्भ से ही दोमिनिक माता मरियम के अनन्य भक्त थे। वे प्रतिदिन अपने प्रवचन से पहले एक घंटे तक माँ मरियम के सम्मुख मननपूर्वक माला-प्रार्थना करते हुए तैयारी करते थे। उस प्रार्थना के दौरान माँ मरियम उन्हें बताया करती थी कि प्रवचन में उन्हें क्या कहना है। तब से दोमिनिक ने अपने प्रवचन में सभी विश्वासियों को प्रोत्साहित किया कि वे गहरे विश्वास एवं भक्ति के साथ यह प्रार्थना करे और इसके द्वारा 'अलबिजेन्सियन' विधर्म पर विजय पाएं। 

दोमिनिक संघ के सभी पुरोहितगण अपने संस्थापक की शिक्षा के अनुसार बड़े उत्साह एवं उमंग के साथ माला-विनती सहारे प्रवचन देते थे और असंख्य लोगों को कलीसिया के सच्चे विश्वास में लौटा लाने में सफल हुए। यह संस्था शीघ्र ही फ़्रांस, इटली, स्पेन, इंग्लैंड तथा यूरोप के सभी देशो में फ़ैल गयी। 

इस प्रकार 16 वर्षो तक संत दोमिनिक अपने साथी पुरोहितों के साथ माला-प्रार्थना, त्याग, तपस्या एवं धर्मोपदेशों द्वारा अथक परिश्रम करते हुए लाखों लोगों को कलीसिया में वापस लाये। दोमिनिक ने पापियों को ख्रीस्त की ओरआकर्षित किया। प्रभु की शक्ति से उन्होंने बीमारों को चंगा किया और कई मृतकों को पुनर्जीवित  किया। मात्र 51 वर्ष की आयु में 6 अगस्त सन 1221 इटली के बोलोग्ना नगर में उनका देहांत गया। 

मरियम भक्ति के सबसे उत्तम साधन के रूप में माला-विनती के प्रचार का श्रेय संत दोमिनिक और उनकी संस्था के पुरोहितो को है। उन्होंने अपने प्रवचनों द्वारा सारे यूरोप में इस भक्ति को फैलाया। संत पिता पियूष ग्यारहवें है- "माला-विनती ही दोमिनिक समाज की नींव और जीवन नियम है। यही उनके  लिए जीवन की पूर्णता तक पहुँचने और दुसरो को मुक्ति की कृपा दिलाने का साधन है। " संत दोमिनिक का पर्व 8 अगस्त को मनाया जाता है।

Add new comment

11 + 2 =