
1818 में उन्हें आर्स नामक कुख्यात गाँव में पुरोहित के रूप में भेजा गया। आरम्भ में ही उन्होंने देखा कि उनके पल्लीवासी प्रार्थना एवं मिस्सा पूजा में कोई रुचि नहीं दिखा रहे है। अतः वे नियमित रूप से अपनी पल्ली के हर विश्वासी से मिलने, उनकी समस्याएं सुनने और उन्हें परामर्श देने लगें। फादर जौन ने अपनी मेहनत एवं अथक परिश्रम से उस कुख्यात गाँव को एक आदर्श गाँव बना दिया। जिससे उसकी पवित्रता और उसकी अलौकिक शक्तियों की खबरें जल्द ही दूर-दूर तक फैल गईं। और कुछ ही दिनों में लोगों ने जान लिया कि उनके बीच एक संत पुरोहित पधारे है। फादर जौन की दूसरी विशेषता थी- उनका प्रवचन। उन्होंने अपने प्रवचन के द्वारा समाज में व्याप्त बुराई को जड़ से उखाड़ फेंका। उन्होंने लोगों को बुरी आदतों से मुक्त कर उनको प्रार्थनामय जीवन और भले कार्य की ओर अभिमुख कर दिया। कुछ ही वर्षो में आर्स की वह कुख्यात पल्ली अपनी धार्मिकता के लिए फ़्रांस में सुविख्यात हो गयी। रोगियों को स्वस्थ करने का वरदान भी प्रभु उन्हें प्रदान किया था।
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