कुस्तुन्तुनिया का सम्राट कलीसिया को अपने अधिकार में रखना चाहता था। संत ग्रेगरी ने उसका साहसपूर्वक विरोध किया। कलीसिया के विकास एवं विश्वास निर्माण सम्बन्धी हर बात पर उनका ड़याँ सदैव रहता था और पूरी तत्परता से वे उन्हें निभाते थे।
इस तरह 14 वर्षों तक कठिन परिश्रम करते हुए संत ग्रेगरी में कलीसिया का संचालन एवं मार्गदर्शन किया। निरंतर परिश्रम, कठोर तपस्या एवं त्यागमय जीवन के फलस्वरूप उनका शरीर जर्जर हो गया; और अंत में सन 604 में उनका देहांत हो गया। कलीसिया में उन्हें संगीतज्ञों, विद्वानों तथा शिक्षकों का संरक्षक संत ठहराया गया है। उनका पर्व 3 सितम्बर को मनाया जाता है।

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