संत  ग्रेगरी महान

कलीसिया के महान आचार्यों में संत ग्रेगरी का नाम अत्यंत सम्मानपूर्वक लिया जाता है। कलीसिया के प्रथम दस सदियों में जितने भी संत पिता हुए हैं, उनमें ग्रेगरी महानतम माने जाते है। 
ग्रेगरी का जन्म रोम के एक कुलीन परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम पेट्रीशियुस तथा माता का नाम सिल्विया था जो बाद में कलीसिया में संत घोषित हुई। ग्रेगरी बचपन से ही बड़े प्रतिभावान एवं परिश्रमी थे। उनकी प्रतिभा एवं लोकप्रियता इतनी अधिक थी कि मात्र 33 वर्ष की अवस्था में वे रोम के प्रशासक बनाए गए। किन्तु वे इस सम्मानपूर्ण पद के कर्तव्यों को निभाते हुए संतुष्ट न थे। उनकी आत्मा प्रभु के साथ एकांत में रहने एवं तपस्यामय जीवन के लिए तरसती थी। अतः उन्होंने इस पद को सहर्ष त्याग दिया और अपनी पैतृक संपत्ति को गरीबों में बाँटकर स्वयं संत बेनेडिक्ट के मठ में भर्ती हो गए। संत पिता पेलाजियुस द्वितीय ने उन्हें छः व्यक्तियों के साथ रोम का उपयाजक बनाया। इस कार्यभार को सँभालते हुए वे कुस्तुन्तुनिया में वेटिकन के राजदूत भी रहे। 
संत पिता के देहांत के बाद कलीसिया के सञ्चालन का कार्यभार ग्रेगरी पर आ गया। ईश्वर की योजना से वे संत पिता निर्वाचित हुए। संत पिता के रूप में अपनी अद्भुद प्रतिभा, असाधारण दूरदर्शिता, सूझबूझ एवं कार्यकुशलता के द्वारा उन्होंने कलीसिया में अनेक सुधर एवं नवीनीकरण के कार्य किये। 
उनके शासनकाल में इटली, स्पेन, फ्रांस, इंग्लैंड आदि देशों में फैले हुए एरियन विधर्म को मिटाने के लिए संत ग्रेगरी ने बड़े जोश एवं उत्साह से कार्य किया। विशेषकर लोम्बार्डी के निवासी जो एरियस के विधर्म को मानते थे। उनके मनपरिवर्तन के द्वारा एरियानो के आक्रमण से उन्होंने इटली की रक्षा की। संत अगस्तिन के साथ चालीस मिशनरियों को सन 596 में उन्होंने इंग्लैंड भेजा ताकि वहाँ के लोगों को कलीसिया में वापस लाये। इंग्लैंड के बच्चे जो अन्य देशों में गुलाम बनाये गए थे उनकी आज़ादी एवं शिक्षा का भी उन्होंने प्रबंध किया। 
संत  ग्रेगरी ने कलीसिया की पूजन पद्धति में अनेक आवश्यक सुधर किये। उन्होंने स्वयं सरल शब्दों तथा राग युक्त गीतों की रचना की और उन्हें लागू किया जिनकी सरलता के कारण सभी विश्वासीगण आसानी से एक स्वर में गए सकते थे। इससे पूजन विधि सभी के लिए सुग्राह्य हो गयी। उन्होंने अपने लेखों, प्रवचनों एवं सर्वोपरि अपनी प्रार्थना एवं तपस्यामय जीवन के आदर्श के द्वारा कलीसिया के पुरोहितों तथा धर्माध्यक्षों को विशेष प्रेरणा प्रदान की और सदियों तक कलीसिया में उसका अनुसरण  होता रहा। उनकी प्रसिद्द पुस्तक "संवाद" जिसमे उन्होंने कई संतों के उज्जवल उदाहरण देते हुए एरियन विधर्म के गलत सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से उजागर किया,  अत्यंत लोकप्रिय बन गयी। इसके फलस्वरूप संत पिता और आक्रमणकारी एरियानो के बीच संधि हो गयी। इंग्लैंड के राजा ने अपने लोगों के लिए इस पुस्तक का अंग्रेजी में अनुवाद किया। 

कुस्तुन्तुनिया का सम्राट कलीसिया को अपने अधिकार में रखना चाहता था। संत  ग्रेगरी ने उसका साहसपूर्वक विरोध किया। कलीसिया के विकास एवं विश्वास निर्माण सम्बन्धी हर बात पर उनका ड़याँ सदैव रहता था और पूरी तत्परता से वे उन्हें निभाते थे। 
इस तरह 14 वर्षों तक कठिन परिश्रम करते हुए संत  ग्रेगरी में कलीसिया का संचालन एवं मार्गदर्शन किया। निरंतर परिश्रम, कठोर तपस्या एवं त्यागमय जीवन के फलस्वरूप उनका शरीर जर्जर हो गया; और अंत में सन 604 में उनका देहांत हो गया। कलीसिया में उन्हें संगीतज्ञों, विद्वानों तथा शिक्षकों का संरक्षक संत ठहराया गया है। उनका पर्व 3 सितम्बर को मनाया जाता है।

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