
रोज़ रात को घंटो तक अपनी कुटिया में प्रार्थना में लीन रहती थी। इस प्रकार प्रार्थना करते हुए प्रभु कई बार उसे दर्शन देते और स्वर्गीय आनंद से पुलकित कर देते थे। जब वह करीब 20 वर्ष की हुई, तब उसे किसी मठ में प्रवेश करने की इच्छा हुई ताकि वह दुनिया की आँखों से चिप कर प्रार्थना एवं तपस्या का जीवन बिता सकें। इस विषय में ईश्वर की इच्छा जानने के लिए वह जब प्रार्थना कर रही थी, तब माँ मरियम के द्वारा उसे यह अनुभव हुआ कि मठ में नहीं जा कर घर में ही रहे और प्रार्थना और तपस्या का बिताये। तब उसने डोमिनिक-समाजी पुरोहितों के अध्यक्ष की अनुमति से संत डोमिनिक के तृतीय संघ का वस्त्र धारण कियाऔर उनके नियमों का पालन करते हुए घर में ही रहने लगी। साथ ही ईश्वर की इच्छा को पहचान कर गरीबों दुःखियों बीमारों की सेवा करने लगी, विशेषकर गरीब आदिवासियों की जो उनसे मिलने आते थे। इस प्रकार उसने अपने जीवन के पंद्रह वर्ष बिताये और उसकी पवित्रता की चर्चा लोगों के बीच होने लगी।
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