
रोमी सम्राट डोमिशयन के समय ईसाईयों पर बहुत अत्याचार हुए। सम्राट के आदेशनुसार योहन को उबलते हुए तेल के कड़ाह में दाल दिया गया। किन्तु प्रभु ने अद्भुद रीती से उनकी रक्षा की और उन्हें कोई हानि नहीं हुई। सम्राट ने क्रुद्ध होकर उन्हें पातमोस द्वीप में निवासित कर दिया। वहाँ पर उन्हें कलीसिया एवं संसार के अंत के विषय में प्रकाशना प्राप्त हुई जिनका वर्णन उन्होंने प्रकाशना ग्रन्थ में किया है। सम्राट की मृत्यु के पश्चात् वे एफेसुस लौटे और वहाँ की कलीसिया की देख-रेख की।
संत योहन ने तीन पत्र भी लिखे है जिनका विषय भी ईश्वर का महान प्रेम है जो कि ख्रीस्त के रूप में उन्होंने हमें दिया है। इसलिए हमें ईश्वर को और अपने पडोसी को प्यार करना चाहिए। योहन वृद्धावस्था में ही केवल यही उपदेश देते थे- "बच्चों, एक दूसरे को प्यार करो।"
रोमी सम्राट ट्रोजन के समय के लगभग सन 100 ईस्वी में 97 वर्ष की अवस्था में योहन की मृत्यु हुई। बारह प्रेरितों में से वे ही एक ऐसे रहे जो शहीद न होकर स्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त हुए।
माता कलीसिया 27 दिसम्बर को प्रेरित सन्त योहन का पर्व मनाती है।
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