
बेर्नाड 22 वर्ष की अवस्था में अपने पांच भाइयों तथा तीस मित्रों के साथ ‘सिटो’ नामक स्थान में संत बेनेडिक्ट के नियमों के अनुसार संचालित सिस्टर्सियन मठ में भर्ती हो गये। संत स्टेफन उस मठ के संचालक थे। वे बेर्नाड की आध्यात्मिक उन्नति से बहुत प्रभावित हुए। तीन वर्ष बाद उन्हें बारह सदस्यों का प्रमुख बना कर 'क्लेयर्वो' में एक मठ स्थापित करने के लिए भेजा। उनके तीव्र ईश्वर प्रेम, सौम्यता एवं प्रेरितिक जोश से अनेकों लोग प्रभावित हुए और वे मठवासी जीवन बिताने के लिए उनके मठ में भर्ती हो गए। बेर्नाड 37 वर्षों तक क्लेयर्वो में मठाध्यक्ष रहे और उन्होंने उस क्षेत्र में 136 मठों की स्थापना की। क्लेयर्वो यूरोप का आध्यात्मिक केंद्र बन गया। अंत में उनके वृद्ध पिता स्वयं भी वहाँ आ कर भर्ती हो गए। क्लेयर्वो से उनके मठवासी जर्मनी, स्वीडन, आयरलैंड, पुर्तगाल, इटली और स्विट्ज़रलैंड गए और सभी लोगों को सच्ची ख्रीस्तीय जीवन और धार्मिक मूल्यों को अपनाने की शिक्षा दी। इस कारण बेर्नाड को सिस्टर्सियन धर्मसंघ का द्वितीय प्रवर्तक माना जाता है। वे आजीवन अत्यंत विवेक, संयम तथा सादगी का आदर्श बने रहे। अंत में कठिन परिश्रम, रोग एवं कठोर तपस्याओं के कारण उनका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया था; और 20 अगस्त 1153 को वे स्वर्गधाम में बुला लिए गए।
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