क्लेयर्वो के संत बर्नार्ड का पर्व

Bernard of Clairvaux

सिस्टर्सियन मठवासियों के प्रमुख प्रवर्तक एवं धर्माचार्य संत बेर्नाड का जन्म फ्रांस देश के बरगंडी प्रान्त के एक कुलीन परिवार में सन 1090 में हुआ। उनके पिता थेसलिन फोर्टेन के राज्यपाल थे। उनकी माता एलेथ भी बरगंडी के ड्यूक की सम्बन्धी थी। माता-पिता दोनों बड़े धर्मपरायण, दयालु एवं उत्तम ख्रीस्तीय थे। बेर्नाड पर अपनी माता का गहरा प्रभाव पड़ा। वे अपनी माता को बहुत प्यार करते थे। 

एलेथ सच्ची ख्रीस्तीय माता थी। वे अपने बच्चों को ईश्वर के प्रेमपूर्ण दान मानतीं थी। ईश्वर ने उन्हें छः पुत्र और एक पुत्री प्रदान किया था। माँ अपने तीसरे पुत्र बेर्नाड को बहुत प्यार करती थी। क्योंकि एक मठवासी के द्वारा उसे यह बताया गया था कि उसका तीसरा पुत्र ईश्वर का विशेष चुना हुआ पात्र है। 

बेर्नाड बाल्यावस्था से ही बड़े प्रखर-बुद्धि एवं प्रभावशाली थे। अध्ययन में वह बहुत ही तीव्र थे। उन्होंने प्रारम्भ से ही उसमे इतनी रूचि दिखाई कि उनके माता-पिता ने उन्हें काटिलोन के सैनिक स्कूल में भेज दिया ताकि वह पढ़-लिखकर अच्छा सैनिक बने और अपने देश एवं धर्म की रक्षा करें जैसे की उन दिनों की प्रथा थी। वहाँ उन्होंने सामाजिक विषयों के साथ-साथ धर्मग्रन्थ ईश-शास्त्र का भी गहन अध्ययन किया और उसमे दक्षता प्राप्त की।

बेर्नाड 22 वर्ष की अवस्था में अपने पांच भाइयों तथा तीस मित्रों के साथ ‘सिटो’ नामक स्थान में संत बेनेडिक्ट के नियमों के अनुसार संचालित सिस्टर्सियन मठ में भर्ती हो गये। संत स्टेफन उस मठ के संचालक थे। वे बेर्नाड की आध्यात्मिक उन्नति से बहुत प्रभावित हुए। तीन वर्ष बाद उन्हें बारह सदस्यों का प्रमुख बना कर 'क्लेयर्वो' में एक मठ स्थापित करने के लिए भेजा। उनके तीव्र ईश्वर प्रेम, सौम्यता एवं प्रेरितिक जोश से अनेकों लोग प्रभावित हुए और वे मठवासी जीवन बिताने के लिए उनके मठ में भर्ती हो गए। बेर्नाड 37 वर्षों तक क्लेयर्वो में मठाध्यक्ष रहे और उन्होंने उस क्षेत्र में 136 मठों की स्थापना की। क्लेयर्वो यूरोप का आध्यात्मिक केंद्र बन गया। अंत में उनके वृद्ध पिता स्वयं भी वहाँ आ कर भर्ती हो गए। क्लेयर्वो से उनके मठवासी जर्मनी, स्वीडन, आयरलैंड, पुर्तगाल, इटली और स्विट्ज़रलैंड गए और सभी लोगों को सच्ची ख्रीस्तीय जीवन और धार्मिक मूल्यों को अपनाने की शिक्षा दी। इस कारण बेर्नाड को सिस्टर्सियन धर्मसंघ का द्वितीय प्रवर्तक माना जाता है। वे आजीवन अत्यंत विवेक, संयम तथा सादगी का आदर्श बने रहे। अंत में कठिन परिश्रम, रोग एवं कठोर तपस्याओं के कारण उनका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया था; और 20 अगस्त 1153 को वे स्वर्गधाम में बुला लिए गए। 

संत पिता अलेक्ज़ैंडर तृतीय ने 19 जनवरी सन 1174 को उन्हें संत घोषित किया और संत पिता आठवें ने उन्हें कलीसिया के आचार्य की उपाधि से विभूषित किया। 20 अगस्त को संत बेर्नाड का पर्व मनाया जाता है।

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