हम दूसरों का फायदा ना उठाये: पोप फ्रांसिस। 

 

संत पिता फ्रांसिस ने 01 अगस्त को संत पेत्रुस महागिराजाघर के प्रांगण में जमा हुए विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के संग देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने सभों का अभिवादन करते हुआ कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।
यह न केवल ईश्वर से संग अपितु हमारे मानवीय और सामाजिक जीवन के संबंध में भी लागू होता है, जब हम पहले अपने लिए चीजों की खोज करते और उन्हें पाने की चाह रखते तो हम लोगों और परिस्थितियों का अपनी जरुरतों के लिए दुरूपयोग करते हैं। हमने कितनी बार लोगों को यह कहते हुए सुना है,“वह लोगों का उपयोग करता और उसके बाद उन्हें भूल जाता है”। लोगों का उपयोग अपने फायदे के लिए करना अपने में खराब है। और एक समाज जो लोगों को महत्व देने के बदले अपनी अवश्यकताओं को ध्यान में रखता है वह समाज जीवन उत्पन्न नहीं करता है। आज हमारे लिए सुसमाचार का निमंत्रण यह है कि हम भौतिक रोटियों की चिंता करने के बदले जो हमें जीवन देती है, येसु से मित्रता करते हुए उनका स्वागत करने को बुलाये जाते हैं, जो हमारे लिए जीवन की रोटी हैं। हम येसु के द्वारा दूसरों को स्वतंत्र रुप से और बिना तोल-मोल किये प्रेम करना सीखते हैं। वे हमें मुफ्त में बिना हिसाब किये, दूसरों का बिना उपयोग किये स्वतंत्रता, उदरता और बहुतायत में अपने को देना सीखलाते हैं।
संत पिता फ्रांसिस ने कहा कि यहाँ हम अपने लिए प्रथम सवाल को पूछ सकते हैं- हम क्यों ईश्वर की खोज करते हैंॽ मैं ईश्वर को क्यों खोजता हूँॽ मेरे विश्वास का, हमारे विश्वास उद्देश्य क्या हैॽ हमें इस बात पर विचार-मंथन करने की जरुरत है क्योंकि जीवन की बहुत सारी परीक्षाएं जिसका सामना हम अपने जीवन में करते हैं, उन परीक्षाओं में एक मूर्तिपूजा की परीक्षा हो सकती है। कहीं ईश्वर की खोज करने के पीछे हमारा उद्धेश्य यह तो नहीं कि हम उन्हें अपने लिए उपयोग करने की चाह रखते हैं, अपने तकलीफों के समाधान हेतु, उनका शक्रिया अदा करने हेतु क्योंकि हम अपनी लाभ की चीजों को स्वयं में प्राप्त नहीं कर सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो हमारा विश्वास अपने में छिछला रह जाता है, हमारे यह सोचने के बावजूद कि विश्वास चमत्कारी है, हम ईश्वर की खोज अपनी जरुरतों की पूर्ति हेतु करते हैं और एक बार संतुष्टि प्राप्त करने के उपरांत हम उन्हें भूल जाते हैं।  विश्वास के इस छिछले केन्द्र-विन्दु में ईश्वर नहीं होते लेकिन हमारी जरूरतें होती हैं। हम अपनी आश्वय़क्ताओं के बारे, बहुत-सी चीजों के बारे में सोचते हैं। संत पिता फ्रांसिस ने कहा कि हमारी जरुरतों को ईश्वर के हृदय के सामने प्रस्तुत करना उचित है लेकिन ईश्वर जो हमारी आशाओं के अतीत कार्य करते हैं, हम से यही चाहते हैं कि हम सर्वप्रथम उनके संग एक प्रेम के संबंध में बने रहें। सच्चा प्रेम अपने में स्वार्थी नहीं होता, यह स्वतंत्र होता है यह बदले में कोई चीज पाने हेतु प्रेम नहीं करता है। यह व्यक्तिगत-स्वार्थ है जिसकी पूर्ति हेतु हम बहुत बार अपने जीवन में दूसरों से प्रेम करते हैं।
एक दूसरा सवाल जिसे भीड़ येसु से पूछती है हमारी मदद कर सकता है, “ईश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए हमें क्या करना चाहिए”ॽ यह ऐसा प्रतीत होता है कि लोग येसु से प्रभावित होकर यह पूछते हैं, “हम अपने में ईश्वर की खोज को कैसे परिशुद्ध कर सकते हैंॽ हम चमत्कारिक विश्वास से परे जो केवल हमारे जरूरतों की पूर्ति के लिए होती है, कैसे उस विश्वास की ओर अग्रसर हो सकते हैं जो ईश्वर को प्रिय है”ॽ इस भांति येसु मार्ग दिखलाते हुए कहते हैं कि ईश्वरीय कार्य उसका स्वागत करना है जिसे पिता ने भेजा है अर्थात स्वयं येसु ख्रीस्त का स्वागत करना। यह अलग से किसी धार्मिक रिवाजों को या विशेष नियमों का अनुपालन करना नहीं है बल्कि येसु का स्वागत करना, हमारे जीवन में उनका स्वागत करना,यह येसु के संग अपने जीवन को एक प्रेम कहानी के रुप में व्यतीत करना है। संत पापा ने कहा कि ये येसु ख्रीस्त हैं जो हमारे विश्वास को परिशुद्ध करते हैं। हम अपने में ऐसा नहीं कर सकते हैं। येसु हम से यही चाहते हैं कि हम उनके संग एक प्रेम के संबंध में बने रहें, इसके पहले की हमें उनसे कुछ मिले, हमारे लिए वे कुछ करें, हमें उन्हें प्रेम करने की जरुरत है। उनके संग हमारे प्रेम का संबंध हमारी चाहतों के तर्क और तोल-मोल से परे जाती है।
हम कुंवारी मरियम से निवेदन करें, जिन्होंने ईश्वर के संग अपने जीवन की प्रेम कहानी को अति सुन्दर रुप में जीया, हमारे लिए कृपा की याचना करें जिससे हम अपने को उनके बेटे से मिलन हेतु खोल सकें।

Add new comment

20 + 0 =