स्वार्थहीन प्रेम द्वारा महामारी का सामना करें, पोप फ्रांसिस।

पोप फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में उपस्थित विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को स्वार्थहीन प्रेम के द्वारा कोरोना महामारी का मुकाबला करने हेतु आहृवान किया। महामारी के कारण जिन कठिनाइयों का सामना हम कर रहे हैं हम सभों को प्रभावित करती हैं। यदि हम सबों की भलाई का ख्याल रखेंगे तो हम इससे बाहर निकल पायेंगे। दुर्भाग्यवश, हम पक्षपातपूर्ण हितों को उभरते हुए देखते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ हैं जो महामारी से बचाव हेतु अपने लिए उचित निदान वैक्सीन की चाह रखते हैं। कुछ हैं जो इस परिस्थिति से आर्थिक या राजनीतिक लाभ उठाने हेतु विभाजन लाने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं दूसरे हैं जो दूसरों की तकलीफों से अपने को अप्रभावित पाते हैं और अपने ही दिनचर्या में लगे हैं।

सार्वजनिक भलाई की खोज एक साथ:- इस महामारी के सामाजिक और आर्थिक परिणाम के संदर्भ में हम ख्रीस्तियों का प्रत्युत्तर प्रेम में आधारित है क्योंकि ईश्वर हमारे लिए प्रेम हैं। (1योहन: 4.19) वे हमें शर्तहीन प्रेम करते हैं और जब हम उनके दिव्य प्रेम का स्वागत करते तो हम उन्हीं की तरह प्रेम के योग्य बनते हैं। पोप फ्रांसिस ने कहा कि मैं केवल उन्हें प्रेम नहीं करता जो मुझे प्रेम करते हैं- मेरे परिवार, मेरे मित्र, मेरे दल- लेकिन मैं उन्हें भी प्रेम करता हूँ जो मुझे प्रेम नहीं करते, जो मुझे नहीं जानते या जो अपरिचित हैं यहाँ तक की उन्हें भी जो मुझे दुःख देते या जिन्हें मैं अपना शत्रु समझता हूँ (मत्ती.5.44)। यह ख्रीस्तीय मनोभाव येसु ख्रीस्त के विचार हैं। यह पवित्रता की पराकाष्ठा है जिसे हम निश्चित रुप में कह सकते हैं कि सभी को प्रेम करना, अपने शत्रुओं को भी, अपने आप में कठिन है। यह सहज नहीं है, मैं इसे एक तरह की कला ही कहूँगा। लेकिन यह वह कला है जिसे हम सीख सकते और इसमें बेहतर हो सकते हैं। सच्चा प्रेम हमें स्वतंत्र और फलप्रद बनाता है तथा यह अपने में केवल विस्तृत मात्र नहीं बल्कि समावेशी भी है। यह प्रेम हमारी चिंता, चंगाई और भलाई करता है। बहुधा दुलार तर्क-वितर्क से अच्छा होता है। यह क्षमा करता है जबकि तर्क अपनी सुरक्षा करता है।

प्रेम की सभ्यता का निर्माण:- पोप फ्रांसिस ने कहा अतः प्रेम दो या तीन व्यक्तियों के बीच या मित्रों या परिवार तक ही सीमित संबंध नहीं है। यह अपने में सामाजिक और राजनैतिक संबंधों को सम्माहित करता है। यह संबंध सृष्टि का भी आलिंगन करता है (लौदातो सी. 231)। सामाजिक और राजनीतिक प्राणी के रुप में प्रेम की अभिव्यक्ति मानवीय विकास से है जहाँ हम सभी चुनौतियों का सामना करने हेतु तैयार रहते हैं। हम जानते हैं कि प्रेम परिवार और मित्रता को विकसित करता है वहीं हम इस बात को याद करें कि यह सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनैतिक संबंधों को भी विकसित करता और हमें “प्रेम की सभ्यता” का निर्माण करने में मदद करता है जैसे संत पापा पौल 6वें और संत पापा योहन पौल द्वितीय कहा कहते थे। प्रेम की इस प्रेरणा के बिना अंहकारिता, उदासीनता और फेंकने की संस्कृति बनी रहती है अर्थात् हम जिन चीजों से प्रेम नहीं करते या जो हमें व्यर्थ लगते हैं उन्हें हम फेंक देते हैं। पोप फ्रांसिस ने आमदर्शन समारोह में प्रवेश करते समय एक दंपत्ति से अपनी भेंट में हुई बातों का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी अपंग संतान के लिए प्रार्थना करने का निवेदन किया जिसके लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है। यह हमें प्रेम को दिखलाता है। हमें प्रेम की सभ्यता स्थापित करने की जरुरत है जो सभी चीजों को अपने में ढक लेता है।  

निःस्वार्थ प्रेम:- कोरोना महामारी हमारे लिए इस बात को व्यक्त करती है कि व्यक्ति की भलाई सबों की भलाई है या हम दूसरे शब्दों में कहें तो जनसामान्य की भलाई सही अर्थ में व्यक्ति की भलाई है । यदि व्यक्ति केवल अपनी भलाई की सोचता तो यह स्वार्थ है वहीं यदि बहुतों की भलाई का ध्यान रखा जाता तो यह एक महान कार्य है जो सभी में प्रसारित होता है। स्वास्थ्य व्यक्ति की व्यक्तिगत अच्छाई के साथ भी सभी की भलाई है। एक स्वस्थ समाज प्रत्येक के स्वास्थ्य की चिंता करता है।

एक महामारी किसी सीमा या संस्कृतिक या राजनीतिक भेदों को नहीं पहचानती है हमें इसका मुकाबला प्रेम में, बिना भेदभाव के साथ करने की जरुरत है। यह प्रेम प्रतियोगिता की भावना के बदले हमें सामाजिक स्वरुपों को तैयार करने में प्रोत्साहित करेगा जिसके फलस्वरुप हम अति संवेदनशील लोगों को दरकिनार करने के बदले अपने साथ ले चलेंगे। वास्तव में, जब हम प्रेम में सृजनात्मकता, विश्वास और एकता में बने रहते तो हम ठोस रुप में सामान्य भलाई हेतु पहल करते हैं। यह अति बृहृद और लघुतम दोनों समुदायों के लिए वैश्विक और स्थानीय स्तरों पर फायदेमंद होता है। वे चीजें जो परिवार, पड़ोस, गांवों, शहरों और अंतरऱाष्ट्रीय स्तरों पर की जातीं, सब एक ही हैं। एक ही बीज रोपा जाता जो बढ़ता और फलदायक होता है। यदि आप परिवार, पड़ोस में घृणा की शुरूआत करते तो यह अंत में युद्ध का कारण बनती है। वहीं यदि आप प्रेम, क्षमा से शुरू करते तो यह सबों में प्रेम और क्षमा प्रसारित करता है।

राजनीति की जड़ें नैतिकता में:-  पोप फ्रांसिस ने कहा कि यदि महामारी हममें स्वार्थ के भाव उत्पन्न करती चाहे वह व्यक्तियों, व्यापारों या देशों में ही क्यों न हो तो हम कोरोना के कहर से बाहर तो निकल सकते हैं लेकिन निश्चित ही मानवीय सामाजिक समास्याओं से निजात नहीं पा सकते हैं जिन्हें कोरोना महामारी ने हमारे लिए प्रकाश में लाया है। अतः हम अपने निर्माण कार्य बालू में नहीं वरन् जनसामान्य की भलाई हेतु अपने स्वास्थ्य रूपी निर्माण कार्य, शांतिपूर्ण समाज की नींव चट्टान पर करें (मत्ती.7.21-27)। यह कुछ विशेषज्ञों का कार्य केवल नहीं वरन हम सभों का कार्य है। संत थोमस आक्वीनस इसके बारे में कहते हैं कि सामान्य भलाई न्याय का एक कर्तव्य है जो हर नागिरक के ऊपर निहित है। हर नागरिक जनसामान्य की भलाई हेतु उत्तरदायी है। हम ख्रीस्तियों के लिए यह एक प्रेरिताई है। संत इग्नासियुस लोयोला इसके बारे में कहते हैं कि हमें अपने प्रतिदिन के कार्य में जनसामान्य की भलाई सुनिश्चित करने की जरुरत है जिसके द्वारा ईश्वरीय नाम की माहिमा प्रसारित होती है।

दुर्भाग्यवश राजनीति बहुधा अपने में ख्याति प्राप्त नहीं है और हम इसका कारण जानते हैं। लेकिन राजनीति अपने को इस नकारात्मक परिदृश्य पर न छोड़े वरन यह अच्छे कार्यों के द्वारा इस विचार का खण्डन करे। यह मानव और उसके हित में कार्यों को अपना केन्द्र-विन्दु बनाये जो अपने में संभंव है। ख्रीस्तीय विशेष कर लोकधर्मी करूणा के गुणों को अपने में धारण करते हुए इस संदर्भ में अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करने हेतु बुलाये गये हैं।

सामाजिक प्रेम में बढ़ने का आह्वान:- पोप फ्रांसिस ने कहा कि यह सामाजिक प्रेम को विकसित करने का समय है जहाँ सबों की सहभागिता जरुरी है। यदि हम सभी अपनी ओर से छोटा प्रयास करते हैं, यदि इसमें कोई पीछे नहीं रहता तो हम सामुदायिकता के संदर्भ में, राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और यहां तक कि पर्यावरण के संग पुनः एकता का एक अच्छा संबंध स्थापित कर सकते हैं (एसी 236)। इस भांति अपने कार्यों, जो नम्रता में सबसे छोटा क्यों न हो हममें ईश्वरीय प्रतिरूप को प्रकट करेगा क्योंकि ईश्वर तृत्वमय हैं। ईश्वर प्रेम हैं, ईश्वर के इस स्वरुप को प्रेरित संत योहन जिसे येसु बहुत अधिक प्रेम करते थे हमारे लिए धर्मग्रंथ बाईबल में परिभाषित करते हैं- ईश्वर प्रेम हैं। उनकी सहायता से जनसामान्य की भलाई हेतु कार्य करते हुए हम विश्व को चंगा कर सकते हैं। 

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